खरगोन. पाकिस्तान को परास्त कर बांग्लादेश का गठन करने वाले 1971 के भारत-पाक युद्ध में विजयी दिलाने वाले भारतीय सैनिकों में खरगोन जिले से भी 48 सैनिक शामिल थे। इस युद्ध में शामिल खरगोन जिले के टांडा बरूड़ निवासी सिपाही भगवानसिंह चौहान भी थे। 89 वर्षीय चौहान बताते हैं कि हमारी तैनाती फिरोजपुर सेक्टर के हनुमानगढ़ में थी। मेरा काम खराब युद्ध टैंक, बंदूक व अन्य हथियारों को दुरुस्त करना था। यह काम अंधेरे ही चलता था। सैनिकों को चालू हथियार उपलब्ध कराते थे। भगवानसिंह 1965 में इंजीनियर के तौर पर भर्ती हुए थे। विजय दिवस के अवसर पर सोमवार को टाउनहाल में इन बहादुर सैनिकों का सम्मान किया जाएगा।
जानिए... 1971 के युद्ध में खरगोन जिले के सैनिकों की भूमिका
सैनिकों को पहुंचाई रसद
जैतापुर के बजरंग नगर निवासी बोखार शरद सेना से नायब सूबेदार के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। 72 वर्षीय बोखार बताते हैं कि 1971 के युद्ध के दौरान मेरा काम सैनिकों को रसद (खाद्य सामग्री) पहुंचाने का था। युद्ध में सैनिकों को राशन की कमी न हो इसके लिए हमने सड़क मार्ग, ट्रेन से और हवाई मार्ग से रसद सामग्री भिजवाई थी। बारामूला और पूंछ सेक्टर से युद्ध के दौरान खच्चर से भी भारतीय सेना को राशन पहुंचाया था।
युद्ध जवान नहीं, बल्कि देश जीतता है
संजय नगर निवासी आजाद खान 1971 के युद्ध में शामिल थे। उनका काम सेना पर लड़ाई लड़ने वाले जवानों को गोला-बारूद से लेकर अन्य जरुरत की सामग्री पहुंचाना थी। बारामुला सेक्टर के वर्कशॉप में रहकर वायरलेस पर हर समय कान लगाकर जवानों की मदद के लिए तत्पर रहे। उनके पास आज भी सेना के तमगे हैं। आजाद कहते हैं कि युद्ध जवान नहीं, बल्कि देश जीतता है, जो देश के हर नागरिक को गौरवांवित करता है।
रखी लड़ाकू विमानों पर नजर
कुंदानगर निवासी 71 वर्षीय श्रीकृष्ण बार्चे ने भी भूमिका निभाई थी। आर्टरी रेजीमेंट के अजनाला सेक्टर में गोलाबारी के बीच राडार संबंधी समस्याओं के सहयोग के लिए तैनात जवानों की सहायता की थी। वे बताते हैं कि राडार ऐसी चीज है, जिससे होने वाले हमले का जायजा लगाया जा सकता है। इसके लिए वे अपने अन्य सहयोगियों के साथ हर समय तैनात रहते थे। युद्ध के दौरान पाकिस्तान के एयरबेस लाहौर, कराची और रावलपिंडी से युद्धक विमान उड़ान भरते थे। विमानों की जानकारी देने के साथ ही इन पर एल-70 बंदूक से निशाना लगाते थे।
टांडाबरूड़ से फिलहाल 13 युवा भारतीय सेना में
चौहान बताते हैं टांडाबरूड़ से फिलहाल 13 युवा भारतीय सेना में हैं। यहां के ज्यादातर युवा सेना में ही भर्ती होना चाहते हैं। जबकि गांव में रिटायर्ड सैनिक भी हैं। जिले में करीब 300 रिटायर्ड सैनिक है। जबकि 100 से ज्यादा युवा सैनिक के रूप में देशसेवा कर रहे हैं। सूबेदार महेश शुक्ला बताते हैं 1971 के युद्ध में जिले से करीब 48 सैनिक युद्ध लड़े थे।
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