Monday, 21st July 2025

दुर्ग / जिले के 179 स्कूलों के 10वीं व 12वीं कक्षा के 8 हजार छात्रों को रोज दी जा रही स्पेशल कोचिंग

Mon, Dec 9, 2019 7:31 PM

 

  • बेहतर रिजल्ट व प्रतिभाशाली बच्चों को मुकाम तक पहुंचाने शिक्षा विभाग ने आरोहण का दिया सहारा 
  • जिन छात्रों को विषयों को समझने में होती है दिक्कत उनको इस क्लासेज में किया गया शामिल

 

दुर्ग. स्कूल में पढ़ने वाले सभी विद्यार्थियों का बौद्धिक स्तर एक जैसा नहीं होता। ऐसे में उनके शिक्षण स्तर में सामंजस्य बिठा पाना शिक्षक के लिए भी मुश्किल होता है। इसके चलते शिक्षा विभाग ने मेधा और आरोहण की पहल की। इसके तहत ऐसे बच्चों के लिए एक्स्ट्रा क्लासेज की व्यवस्था की गई, जिनको विषयों को समझने में कठिनाई होती है। जिले के 179 हाई और हायर सेकंडरी स्कूल के 10वीं व 12वीं कक्षा में पढ़ने वाले करीब 8 हजार बच्चों को इस योजना का फायदा मिल रहा है। 

अर्धवार्षिक परीक्षाओं में ही दिखेगा परिणाम, सप्ताह में दो दिन चलाई जा रही एक्स्ट्रा क्लासेस

  1.  

    कक्षा 10वीं और 12वीं कक्षाओं में पढ़ने वाले बच्चों पर फोकस किया गया है। कक्षा प्रारम्भ होने के 1 घंटे पहले या बाद में एक्स्ट्रा शिक्षण की व्यवस्था की गई है। विषय विशेषज्ञों द्वारा स्टूडेंट्स को अपने-अपने सब्जेक्ट समझने में आ रही दिक्कतों को दूर किया जा रहा है। छात्र-छात्राओं का चयन कर सप्ताह में दो दिन (शनिवार और रविवार) को अलग से करीब साढ़े चार घंटे की क्लासेज लगाई जा रही हैं। दुर्ग में जेआरडी और भिलाई में सुपेला में क्लासेस चल रही हैं। जबकि पाटन और धमधा में बालक उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में कक्षाएं लगाई जाती हैं। 

     

  2. टेस्ट सीरीज के माध्यम से कॉम्पटीशन की तैयारी करा रहे विशेषज्ञ 

     

    मेधा योजना के तहत जिले में कक्षा 10 वीं के 449 और कक्षा 12 वीं के 78 विद्यार्थियों को कोचिंग की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है। कोचिंग के लिए चिह्नांकित मेधावी विद्यार्थियों के लिए शिक्षण सामग्री और टेस्ट सीरिज की भी व्यवस्था की गई है। इस योजना के सफल क्रियान्वयन के लिए मजबूत मानिटरिंग तंत्र भी विकसित किया गया है, जिसमें लगभग 100 विषय विशेषज्ञ अपनी सेवाएं दे रहे है। तीनों ब्लॉकों में यह कोचिंग दी जा रही है। 

     

  3. थ्योरी से ज्यादा प्रेक्टिकल के माध्यम से किया जा रहा फोकस 

     

    कक्षाओं में केवल सैद्धांतिक एवं किताबी ज्ञान की जगह प्रायोगिक ज्ञान पर बल दिया जाता है। ताकि किसी भी प्रक्रिया को खुद देखने से बच्चों को समझने में आसानी हो। इसके चलते अलग-अलग विषय से संबंधित फोटो और वीडियो का इस्तेमाल जाता है। साथ ही विज्ञान के मॉडल एवं प्रदर्शनियों का भी उपयोग किया जा रहा है। इसके अलावा बच्चे कितना सीख रहे हैं कितना समझ रहे हैं इस बात पर भी समय-समय पर चर्चा की जाती है। 

     

  4.  

    बच्चों का तनाव दूर करने के लिए हर माह काउंसलर दे रहा टिप्स

     

    प्रतिभाशाली बच्चों को जिले के चिह्नांकित विषय विशेषज्ञों के द्वारा अध्यापन कराया जा रहा है, साथ ही जिले में संचालित नामी कोचिंग सेंटरों के विषय विशेषज्ञों की सेवाएं भी बीच-बीच में ली जाती हैं। कोचिंग के दौरान माह में एक बार काउंसलर की भी व्यवस्था की की गई है, जो विद्यार्थियों को अध्यापन के दौरान होने वाले तनाव से मुक्त रहने के उपाय एवं कैरियर गाइडेन्स भी देते हैं। इससे छात्रों के परिणाम पर भी बेहतर असर दिखेगा। 

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