रायपुर युवाओं को कारोबार में प्रोत्साहन के लिए पीएम और सीएम के नाम वाली योजनाएं धूम-धाम से शुरू तो हुईं, लेकिन सरकारी तंत्र और बैंकों ने मिलकर इनका बुरा हश्र कर दिया है। इन योजनाओं में लोन के लिए युवाओं को इस बुरी तरह से परेशान किया जा रहा है कि अावेदन कम हो गए हैं।
युवाओं के प्रोत्साहन की हकीकत ये है कि पिछले 5 साल में सिर्फ रायपुर जिले में ही मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना में लोन के लिए युवाओं ने 830 आवेदन दिए। इनमें केवल 158 लोगों के आवेदन मंजूर हुए। इसमें भी बैंक ने कैंची चला दी और केवल 99 को ही लोन दिया गया। यही हाल प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम का है, जिसमें अाए 1535 आवेदनों में से केवल 353 ही मंजूर किए गए और इनमें से भी बैंकों ने 249 को ही कर्ज दिया है। जिला व्यापार एवं उद्योग केंद्र हर साल इन योजनाओं का जमकर प्रचार करता है। लेकिन लोग जैसे ही लोन के लिए पहुंचते हैं, इतने दस्तावेज मांगे जाते हैं कि अधिकांश युवा अावेदन करने से ही पीछे हट जाते हैं।
इस केंद्र में सालभर में औसतन 400 लोग भी विजिट नहीं करते हैं। इस केंद्र के कर्मचारियों और अफसरों का ज्यादातर समय औद्योगिक क्षेत्रों की जांच, उनकी स्थापना, सीएसआर और दूसरे कामों में बीत जाता है। यही वजह है कि ऐसे आवेदनों को लोन देने के लिए अफसरों की बैठक भी 3 से 6 महीने में एक बार हो रही है, जबकि यह हर महीने अनिवार्य है। इस मामले में अफसरों का तर्क ये है कि आवेदन ही कम आते हैं। जब संख्या पर्याप्त हो जाती है तब चयन समिति की बैठक बुला लेते हैं।
पूरी प्रक्रिया सवा 2 माह की : प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम में दो महीने में लोन पास करने का दावा किया जाता है। शेड्यूल ये है कि आवेदन के 5 दिन के भीतर जांच होगी, 45 दिन के भीतर राज्यस्तरीय टास्क फोर्स समिति इस पर विचार कर लेगी। समिति जिन अावेदनों को मंजूर करेगी, उन्हें 5 दिन में बैंक भेजा जाएगा। बैंक को 30 दिन में फैसला करना है, चाहे लोन पास करे या नहीं। कुल मिलाकर यह सवा 2 माह का प्रोसेस है, जिसमें 12 महीने लग ही रहे हैं।
सालभर चक्कर, फिर भी लोन रद्द: अपना कारोबार शुरू करने के लिए इन योजनाओं में बेरोजगार युवकों को 5 से 25 लाख तक का लोन दिया जाता है। लेकिन आवेदन से लोन तक की प्रक्रिया में एक साल लगता है। इसमें भी जरूरी नहीं कि लोन मिल ही जाए, क्योंकि आवेदक के दस्तावेजों की जांच और इंटरव्यू के बाद 80 फीसदी बार बैंक वाले आवेदक का आवेदन निरस्त कर देते हैं। ज्यादातर बैंकों का यही तर्क होता है कि प्रोजेक्ट से इतनी आमदनी नहीं होगी जितना किश्त जमा हो सके।
प्रधानमंत्री रोजगार सृजन
साल- आवेदन- मंजूर- बैंक लोन
2014-15- 276- 255- 42
2015-16- 000- 69- 43
2016-17- 462- 50- 47
2018-19- 349- 52- 48
2019-20- 204- 30- 30
मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार
2014-15 – 68 – 21 – 07
2015-16 – 171 – 23 – 22
2017-18 – 277 – 34 – 21
2018-19 – 219 – 47 – 35
2019-20 – 94 – 19 - 15
केस-1
संतोषीनगर के अचिंत साहू ने ग्रेजुएशन के बाद कारोबार के लिए पीएमईजीपी के तहत लोन का आवेदन किया। उनका इंटरव्यू भी हुआ। लेकिन जब लोन देने की बारी तो उनकी प्रोजेक्ट रिपोर्ट खारिज कर दी गई।
केस-2
सुभाषनगर में रहने वाले मोहम्मद परवेज ने बैट्री का कारोबार शुरू करने के लिए एक साल में दो बार आवेदन किया। दोनों बार जिला उद्योग व्यापार केंद्र ने अावेदन पास किया, लेकिन बैंकों ने लोन नहीं दिया।
ऐसे कारोबार के अावेदन हो रहे हैं रिजेक्ट
स्वरोजगार योजनाओं में प्रदेश के कई कारोबारों के लिए दिए जाने वाले अावेदनों की मंजूरी मना है। इनमें मांसाहार से जुड़े उद्योग, बीड़ी, पान, सिगार, सिगरेट, होटल या ढाबा, तंबाखू का कच्चे माल के रुप में उपयोग करने वाले, ताड़ी चलाना और बेचना, चाय, कॉफी, रबर या फसलों के लिए, रेशम, बागवानी, मतस्यपालन, शूकर, मुर्गी और पशुपालन तथा पॉलीथिन फैक्ट्री को लोन नहीं देने का प्रावधान है। इससे भी आवेदन निरस्त हो रहे हैं।
बेवजह आवेदन निरस्त हो रहे हैं, जांच करवाएंगे
बैंकों को शासन की ओर से लगातार निर्देश हुए हैं कि सरकारी योजनाओं के तहत युवाओं को लोन दिया जाए। मॉनिटरिंग का जिम्मा कलेक्टरों को दिया गया है। बेवजह आवेदन निरस्त हो रहे हैं तो इसकी जांच करवाएंगे। -आरपी मंडल, सीएस-अध्यक्ष राज्यस्तरीय बैंकर्स समिति
अंतिम फैसला बैंकों का
कोशिश की जाती है कि जिनके आवेदन पूरे हैं उन्हें बैंकों की ओर से लोन मिल जाए। लोन देने के लिए अंतिम फैसला बैंकों का होता है। -एसएस त्रिभुवन, डायरेक्टर, खादी और ग्रामोद्योग आयोग
प्रचार-प्रसार करते हैं
लोग ज्यादा से ज्यादा आवेदन करें इसके लिए सभी योजनाओं का प्रचार-प्रसार किया जाता है। लोग दिलचस्पी के अनुसार ही आवेदन करते हैं। -टीआर वैद्य, मुख्य महाप्रबंधक, जिला व्यापार एवं उद्योग केंद्र
सेटिंग के आरोप, जांच कभी नहीं
रायपुर कलेक्टर के साथ ही उद्योग विभाग के आला अफसरों को अक्सर इस बात की शिकायतें मिलती रहती हैं कि बैंकों से लोन पास कराने के लिए दलाल घूम रहे हैं। चर्चा है कि 10 से 20 फीसदी तक कमीशन देना पड़ रहा है। हालांकि यह बातें साबित नहीं हैं। वजह ये है कि राज्यस्तरीय बैंकर्स समिति ने कभी भी जांच नहीं करवाई है।
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