दुर्ग. प्रदेश में हर साल 15 % बच्चे मां के पेट से ही कुपोषण की चपेट में आ रहे हैं। पैदाइश के समय ही ऐसे बच्चों के वजन की जानकारी होने के बाद भी सुपोषण के लिए किए जा रहे सभी प्रयास इनपर बहुत असरदार नहीं हो रहे हैं। क्योंकि हष्ट-पुष्ट बच्चों की तुलना में लो वेट वाले बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम होती है।
जिला अस्पतालों में पिछले 10 सालों के दौरान हुई डिलीवरी के आकड़ों को देखें तो इसकी पुष्टि हो रही है। 2010 में प्रदेश के शासकीय जिला अस्पतालों में जहां सम्पूर्ण डिलीवरी के 20 % बच्चों को वजन 2 किलों से कम होता था, 2019 में 15% बच्चों का वजन कम मिल रहा है। स्वास्थ्य विभाग के आकड़ों अनुसार ऐस बच्चों की संख्या औसतन 10,000 हो जाती है।
वर्ष | लो वेट बर्थ | टोटल डिलीवरी | लो बर्थ % |
2010-11 | 6045 | 30316 | 19.5 |
2011-12 | 6411 | 32835 | 19.5 |
2012-13 | 5954 | 36579 | 16.2 |
2013-14 | 3785 | 24072 | 15.5 |
2014-15 | 9143 | 44473 | 20.5 |
2015-16 | 8475 | 49082 | 17.2 |
2016-17 | 7496 | 41980 | 17.8 |
2017-18 | 8671 | 45279 | 19.1 |
2017-18 | 8186 | 56159 | 14.5 |
नोट : आकड़ें जिला अस्पतालों में होने वाली डिलीवरी के हैं।
लो बर्थ के ऐसे आकड़े तब है, जब अस्पतालों में हो रहे शिविर के दौरान गर्भ के छठवें महीने में अल्ट्रासाउंड कराकर बच्चे का वजन पता कर लिया जा रहा है। आंगनबाडिय़ों में बच्चों के साथ ही गर्भवतियों को भी हॉट-कूक व रेडी-टू-ईट के साथ ही चिक्की व मौसमी फल दे रहे हैं।
लो बर्थ के संदर्भ में दस सालों के आकड़े भयावह हैं, इसके बाद भी शासकीय अस्तपालों में गर्भवतियों के हेल्थ चेक-अप में लापरवाही बतरती जा रही है। कई शाषकीय अस्तपालों के डॉक्टर गर्भवतियों का न पेट चेक कर रहे हैं, न ही एंडवांस जांच कराई जा रही है।
लो बर्थ रेट दर्शाने के लिए जिला अस्पतालों में होने वाली डिलिवरी के आकड़ों में अगर सभी अस्पतालों के आकड़े जोड़ दें तो स्थिति भयावह होगी। शासन स्तर पर इसके लिए कोई एकल एक्सरसाइज नहीं होती है। विभाग अलग-अलग डाटा रखते हैं।
स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. किर्ति कौरा के अनुसार गर्भ के छठवें महीने में अल्ट्रासाउंड या पर एब्डोमन से वजन का पता लग जाता है। बच्चे का वजन बढा़ने के लिए हर केस में 2 से 3 माह का समय मिलता ही है। मां को बीपी होने से बच्चे का वजन कम और शुगर के केस में बढ़ने की हिस्ट्री रहती है। समय पर जांच कराने के बाद वजन बढ़ाने के उपाय कर लो बर्थ रेट कम कर सकते हैं।
आंगनबाडिय़ों में गर्भवतियों और बच्चों को पूरक आहार दिया जाता है। शरीर की जरूरत का 75 फीसदी आहार उन्हें स्वयं व्यवस्था करनी होती है। काम के कारण खाना रहते हुए कुछ गर्भवतियां समय से नहीं खा पाती हैं।विपीन जैन, डीपीओ, दुर्ग
गर्भवतियों का हेल्थ चेक के लिए हम उनकी 13जांचों के अलावा अल्ट्रासाउंड कराया जाता है। बच्चे का वजन कम मिलने पर डॉ. गर्भवतियों को वजन बढ़ाने के लिए दवाएं और खान-पान का ध्यान देने की समझाईश देते हैं।डॉ. गंभीर सिंह, सीएमएचओ, दुर्ग
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