योगेश पाण्डे | भोपाल . मध्यप्रदेश में 33 फीसदी महिला आरक्षण का गुणा-भाग कुछ ऐसा है कि पुरुषों से ज्यादा नंबर हासिल करने वाली महिलाएं भी चयनित नहीं हो पा रही हैं। 2018 पीएससी की अंतिम चयन सूची में पुरुष 946 नंबर लाकर डिप्टी कलेक्टर बने, जबकि महिला उम्मीदवारों को इस पद पर चयन के लिए 954 नंबर लाने पड़े। पीएससी की ज्यादातर परीक्षाओं में ऐसा ही हुआ है। पुरुषों से ज्यादा नंबर लाने के बाद भी महिला उम्मीदवारों का चयन नहीं हो पाया है।
महिला उम्मीदवारों ने मुख्यमंत्री कमलनाथ को पत्र लिखकर महिला आरक्षण खत्म किए जाने की गुहार लगाई है। उनका तर्क है कि आरक्षण के नाम पर उनका वाजिब हक मारा जा रहा है। ज्यादा नंबर लाने के बावजूद चयन नहीं होने पर महिला उम्मीदवारों ने हाईकोर्ट में भी याचिका लगाई है। कोर्ट ने इस मामले में लोकसेवा आयोग से जवाब मांगा है। अगली सुनवाई 18 नवंबर को होनी है।
प्रदेश के अलग-अलग अंचलों में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहीं महिला उम्मीदवारों ने लामबंद होकर महिला आरक्षण का विरोध शुरू कर दिया है। उनका यह भी तर्क है कि सिविल जज परीक्षा में महिलाओं के लिए अलग आरक्षण नहीं होता है, लेकिन चयनित उम्मीदवारों में 50 फीसदी से ज्यादा महिलाएं हैं। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहीं सुनीता जैन कहती हैं कि जब पुरूषों की श्रेणी में ज्यादा नंबर लाने वालों को अनारक्षित श्रेणी में शामिल किया जाता है तो फिर महिलाओं की श्रेणी में यह नियम क्यों लागू नहीं होता? ज्यादा नंबर लाने पर महिलाओं को महिला आरक्षण की श्रेणी में रखकर उनसे भेदभाव क्यों किया जाता है? महिलाओं को भी अनारक्षित श्रेणी के तहत मेरिट क्यों नहीं मिलती?
सरकार की नीति का ही अनुसरण
महिला आरक्षण को लेकर सरकार की जो नीति है, हम सिर्फ उसे ही अनुसरण करते हैं। बस इससे ज्यादा हम इस संबंध में कुछ नहीं कह सकते।
रेणु पंत, सचिव, लोकसेवा आयोग
ऐसा क्यों... पीएससी महिला और पुरुष उम्मीदवारों के अलग-अलग कटऑफ जारी करता है। महिलाओं के लिए आरक्षित पदों की संख्या पुरुषों से ज्यादा नंबर लाने वाली महिला उम्मीदवारों से भर जाती है तो उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिलता। जैसे डिप्टी कलेक्टर के 15 में से 5 पद महिला के लिए रिजर्व हैं और 5 महिलाएं टॉप मेरिट में आ गईं तो अन्य महिलाओं को आरक्षण का लाभ नहीं मिलता।
1 आरक्षित वर्ग का कोई व्यक्ति मेरिट में आता है तो उसकी गणना अनारक्षित पदों पर की जाती है, लेकिन महिला के मेरिट में आने पर उसकी गणना महिलाओं के लिए आरक्षित सीट पर क्यों?
2 यदि एससी-एसटी और ओबीसी के आरक्षित वर्ग में कोई उपयुक्त उम्मीदवार नहीं मिलता है तो वो पद रिक्त रखे जाते हैं, लेकिन उपयुक्त महिला उम्मीदवार नहीं होने पर वह पद पुरुष उम्मीदवार से कैसे भर दिया जाता है?
3 यदि कोई महिला उम्मीदवार मेरिट में हो तो उसे अनारक्षित श्रेणी में न मानकर महिला श्रेणी में गिना जाता है, ऐसा क्यों?
4 अलग-अलग परीक्षाओं में महिलाओं के चयन के कटआॅफ मार्क्स पुरुष उम्मीदवारों से ज्यादा क्यों?
राज्य सेवा परीक्षा कटऑफ के कुछ उदाहरण…
असिस्टेंट प्रोफेसर परीक्षा में विसंगति : पांच में से दो सीटें महिलाओं के लिए, लेकिन सभी पर पुरुषों का हुआ चयन
असिस्टेंट प्रोफेसर परीक्षा में संगीत विषय के घोषित परीक्षा परिणामों में ओबीसी की पांच सीटों में से दो महिलाओं के लिए आरक्षित थी, लेकिन सभी पांचों पद पर पुरुषों का चयन किया गया। इसके विपरीत अजजा वर्ग के दो पद थे पर उपयुक्त उम्मीदवार नहीं होने के कारण रिक्त रखें गए और आगे के लिए कैरी फॉरवर्ड रखे गए।
मेरिट में महिला उम्मीदवारों की संख्या ज्यादा होने से भ्रम
आरक्षण को लेकर महिला उम्मीदवारों में भ्रम की स्थिति है। मेरिट में उनकी संख्या ज्यादा है, इसलिए ऐसा लग रहा है। यदि मेरिट में महिला उम्मीदवार नहीं होती तो फिर हमें 33% प्रतिनिधित्व देने के लिए कम नंबर वाली महिला उम्मीदवारों का चयन करना पड़ता। एक और बात स्पष्ट रूप से समझने की जरूरत है कि सामान्य वर्ग की कोई श्रेणी नहीं है, वह अनारक्षित है। -भास्कर चौबे, कार्यवाहक अध्यक्ष, मप्र लोकसेवा आयोग
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