भोपाल। मध्य प्रदेश को टाइगर स्टेट के नाम से भी जाना जाता है। इसी साल जुलाई में जारी आंकड़ों के अनुसार मध्य प्रदेश 526 बाघों के साथ देश में पहले नंबर पर है। कर्नाटक 524 टाइगर के साथ दूसरे स्थान पर और उत्तरखंड 442 टाइगर के साथ तीसरे नंबर पर है। वर्ष 2010 में कर्नाटक ने मध्यप्रदेश से प्रतिष्ठित 'टाइगर स्टेट' का दर्जा छीना था जिसे मध्यप्रदेश में लगभग नौ साल के अंतराल के बाद इस साल फिर से हासिल किया है। (पूरे देश में करीब 3000 से अधिक बाघ हैं)
एनटीसीए (राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण) ने दिसंबर 2017 से अप्रेल 2018 के बीच देशभर के सभी संरक्षित और गैर संरक्षित क्षेत्रों में बाघों की गिनती करवाई है। यह गिनती चार साल में एक बार होती है। 2014 की गणना में प्रदेश में 308 बाघों की उपस्थिति के प्रमाण मिले थे।
बाघों की बढ़ती संख्या को देखते हुए राज्य सरकार ने प्रदेश में नए नेशनल पार्क और सेंचुरी के लिए अभ्यारणों को टाइगर रिजर्व बनाने की है। इसके लिए ओंकारेश्वर नेशनल पार्क, मांधाता, सिंगाजी और रातापानी अभ्यारण को टाइगर रिजर्व क्षेत्र बनाने पर विचार कर रहा है। दरअसल, पार्क और सेंचुरी में बाघों की संख्या बढऩे से वे आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में आने लगे हैं। इससे मानव संघर्ष की घटनाओं में तो इजाफा तो हुआ है। तस्करों के लिए इनका शिकार भी आसान हो गया है।
कमलनाथ ने 1991 में दिया था टाइगर स्टेट का दर्जा
तत्कालीन केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री कमलनाथ ने 1991 में फॉरेस्ट इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (आइआइएफएम) में एक कार्यक्रम में प्रदेश को टाइगर स्टेट का दर्जा दिया था। उन्हें वन विभाग के अफसरों ने बताया कि प्रदेश में 900 से अधिक बाघ हैं, तब मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ अलग नहीं हुआ था। कमलनाथ अब प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं।
2010 में छिना था टाइगर स्टेट का तमगा
मध्यप्रदेश से टाइगर स्टेट का तमगा वर्ष 2010 में तब छिन गया था, जब 2006 की गणना के मुकाबले बाघों की संख्या 300 से घटकर 257 रह गई थी। 300 बाघों के साथ यह कर्नाटक टाइगर स्टेट बना था। कर्नाटक ने 2014 की बाघ गणना में 406 बाघों की गिनती कराकर अपनी प्रतिष्ठा को बरकरार रखा। जबकि 2006 में कर्नाटक में 290 बाघ थे और उनकी संख्या लगातार बढ़ती गई। 2014 की गणना में प्रदेश में 308 बाघ पाए गए थे।
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