वॉशिंगटन. प्राइमरी स्कूल के जिन बच्चों में मोटापे की समस्या होती है, उनकी सोचने की क्षमता कम होती है। यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज के शोधकर्ताओं ने यह खुलासा किया। उन्होंने 9 से 11 साल के मोटे या अधिक वजन वाले करीब 2700 बच्चों पर यह अध्ययन किया। अध्ययन में पाया गया कि मोटे बच्चे किसी भी समस्या को हल करने में धीमे होते हैं। ऐसे बच्चों में कॉर्टेक्स काफी पतले थे। कॉर्टेक्स मस्तिष्क का एक हिस्सा है, जो तार्किक प्रश्नों को हल करने में काफी अहम होता है।
मध्यम आयु वर्ग के लोग जैसे-जैसे बड़े होते हैं, उनके मस्तिष्क में बदलाव होता रहता है। यह उनकी उम्र पर भी निर्भर करता है। जांच के दौरान अधिक वजन वाले बच्चों के कॉर्टेक्स में ग्रे मैटर कम था। इसका कारण अभी भी साफ नहीं है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक, फैटी डाइट लेने से ऐसी समस्या होती है। इससे बच्चों के मस्तिष्क में सूजन हो सकती है। वह भी तब जब बच्चे का मस्तिष्क विकसित हो रहा हो। मोटे होने से पहले बच्चों का दिमाग अलग तरह का होता है।
कैंब्रिज विश्वविद्यालय के नेतृत्व में यह अध्ययन किया गया। इसमें अमेरिकी बच्चों को आकार के क्रम से जानवरों की एक सूची याद करने के लिए और उनका पैटर्न बनाने के लिए कहा गया था। दुबले बच्चों ने मोटे बच्चों की तुलना में करीब छह अंक ज्यादा लाए।
इस अध्ययन का उद्देश्य बच्चों में एग्जीक्यूटिव फंक्शन और जल्दी फैसला लेने की क्षमता जांचना था। कैंब्रिज के मनोचिकित्सा विभाग की लेखिका डॉ. लीसा रोनन ने कहा कि अध्ययन से यह बात सामने आई है कि मोटे और अधिक वजन वाले बच्चों में तुरंत फैसला लेने की क्षमता कम देखी गई।
उन्होंने कहा कि इससे यह पता चलता है कि उन बच्चों को किसी भी योजना, समस्या को सुलझाने और भावनाओं को नियंत्रित करने में संघर्ष करना पड़ता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रिटेन में स्कूल जाने वाले 5 में से 1 बच्चा ज्यादा वजन वाला या मोटा होता है। उन्हें डायबिटीज, हृदय रोग और कैंसर होने का खतरा होता है।
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