नई दिल्ली. बढ़ती अपराध दर पर अंकुश लगाने के लिए सरकार दुनिया का सबसे बड़ी फेशियल रिकग्निशन सिस्टम बना रही है। यह एक सेंट्रलाइज्ड डेटाबेस होगी, जिसका इस्तेमाल सारे राज्यों की पुलिस आसानी से कर सकेगी। यह डेटाबेस में मौजूद अपराधियों की तस्वीरों को सीसीटीवी की मदद से मैच करेगा। आंध्र प्रदेश, पंजाब समेत कई राज्यों ने अपराध से निपटने के लिए 2018 में फेशियल रिकग्निशन सिस्टम को अपनाया था।
सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक, इस नेटवर्क को बनाने के लिए राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने 172 पेज का दस्तावेज पेश किया है। इसमें अपराधियों की फोटो और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय समेत कई एजेंसियों द्वारा ली तस्वीरों को शामिल किया गया है। नए फेशियल रिकग्निशन सिस्टम से अपराधों को सुलझाने में काफी मदद मिलेगी। इसके जरिए अपराध की रोकथाम और इसके पैटर्न का पता भी लगाया जा सकेगा।
अपराधियों की तलाश आसान होगी
इस प्रोजेक्ट के जरिए पुलिस अखबारों से अपलोड की गई तस्वीरों, यहां तक कि संदिग्धों के स्केचों के आधार पर अपराधियोें की तलाश आसानी से कर करेगी। सिस्टम क्लोज-सर्किट कैमरों के जरिए पुलिस द्वारा ब्लैक लिस्ट किए गए चेहरों की पहचान करेगा और अलर्ट देगा। सुरक्षाबलों को मोबाइल उपकरणों से लैस किया जाएगा। ऐप के जरिए वे डेटाबेस से जुड़े रहेंगे और फोन से ही अपराधियों चेहरों की पहचान कर सकेंगे। एनसीआरबी ने कुछ दिनों पहले कंपनियों से प्रोजेक्ट के लिए बोली लगाने की अपील की थी। इस 11 अक्टूबर बोली लगाने की अंतिम तिथि थी।
रिपोर्ट के मुताबिक, इस प्रोजेक्ट के लिए कितनी कंपनियों ने बोली लगाई है, इसकी जानकारी नहीं है। इस साल जुलाई के अंत में एनसीआरबी के दिल्ली कार्यालय में बोली लगाए जाने से पहले एक बैठक हुई थी। इसमें करीब 80 कंपनियों के प्रतिनिधि शामिल हुए थे। कई विदेशी कंपनियां ने भी भाग लिया था। हालांकि, भारत के सुरक्षा तंत्र के ऐसे महत्वपूर्ण नेटवर्क को स्थापित करने में विदेशी कंपनियों की भागीदारी से राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों के भी उठने की संभावना है।
प्राइसवाटरहाउसकूपर्स इंडिया में साइबर स्पेस का नेतृत्व करने वाले शिवराम कृष्णन ने कहा कि आईबीएम, हेवलेट-पैकार्ड एंटरप्राइज (एचपीई) और एक्सेंचर (एसीएन) उन कंपनियों में शामिल हैं, जिन्होंने प्रोजेक्ट में रुचि दिखाई है।
कुछ लोगों ने चिंता जताई
गोपनीयता की वकालत करने वालों ने इस प्रोजेक्ट पर चिंता जताते हुए कहा कि यह सिस्टम सोशल पुलिसिंग का एक उपकरण बन जाएगा और कुछ समुदायों पर नियंत्रण भी बढ़ेगा। इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन के अपार गुप्ता ने कहा कि भारत में डेटा सुरक्षा कानून नहीं है और फेशियल रिकग्निशन के लिए कोई कानूनी ढांचा अपनाने की योजना नहीं है। इसका मतलब यह होगा कि यह योजना सुरक्षा उपायों से रहित होगी।
चीन पहले से ही फेशियल रिकग्निशन सिस्टम अपना चुका है। इसका इस्तेमाल वह एयरपोर्ट की सुरक्षा, अपराध की रोकथाम और यातायात नियंत्रण के लिए करता है। इस सिस्टम से कानून प्रवर्तन अधिकारियों और अन्य अधिकारियों को काफी सहायता मिलती है। साथ ही लोगों को अच्छा व्यवहार करने के लिए प्रेरित करती है। वहीं, भारत में शहरी क्षेत्रों में अपराध की दर तेजी से बढ़ रही है। हालिया आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 2016 में 19 बड़े शहरों में प्रति 1 लाख लोगों पर 709.1 औसत अपराध हुए। यह राष्ट्रीय औसत 379.3 के मुकाबले कहीं ज्यादा है।
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