Tuesday, 10th June 2025

बर्थ एनिवर्सरी / 'इलाज के पैसों के लिए निर्माता में भिड़ गए थे ओम पुरी', दोस्तों ने बताए रोचक किस्से

Fri, Oct 18, 2019 6:27 PM

चॉकलेटी हीरो के जमाने में साधारण से चेहरे वाले ओम पुरी ने अपनी एक अलग ही जगह बनाई थी। उम्दा अभिनय के दम पर ओम ने अवॉर्ड-रिवॉर्ड, दौलत-शोहरत सब कुछ हासिल किया। आज ही के दिन 1950 में हरियाणा के अंबाला में पैदा हुए दिग्गज अभिनेता ने 6 जनवरी 2017 में दुनिया को अलविदा कह दिया। उनके 69वें जन्मदिन पर दैनिक भास्कर से उनकी यादें शेयर कर रहें उनके दो साथी...
 

रजा मुराद बॉलीवुड एक्टर और ओम पुरी के सीनियर

  1.  

    ओम पुरी इंस्टीट्यूट में मुझसे 5 साल जूनियर थे। जब वे इंस्टीट्यूट आए थे, तब चॉकलेटी और लंबे-चौड़े कद-काठी वाले हीरो का जमाना हुआ करता था। वहीं ओम मामूली शक्ल, सूरत और कद-काठी के थे। ताज्जुब की बात यह है कि जिसे लोग शक्ल सूरत वाला एक्टर नहीं मानते थे, उन्होंने रेखा के साथ भी बतौर हीरो 'आस्था' फिल्म में काम भी किया। मुझे याद है जब हम 1979 में साथ में एक फिल्म 'सरहद' कर रहे थे। उसमें ओम ने 15 पाकिस्तानी कैदियों में से एक किरदार निभाया था। वहां का मौसम बहुत ठंडा था तो इस दौरान उनकी तबीयत खराब हो गई। हम देखने गए, तब कान में मफलर बांधकर रजाई ओढ़े जमीन पर लेटे हुए थे। उन्होंने प्रोडक्शन वालों से इलाज के लिए पैसा मांगा, तो दवा के लिए ₹100 रुपए मिले। खैर, तबियत ठीक नहीं हुई तो उन्होंने वापस जाने के लिए पैसे मांगे। इस पर प्रोड्यूसर से झड़प हो गई। प्रोड्यूसर कहने लगे आपने काम ही नहीं किया है, तब आपको किस बात का पैसा दें। ओम बोले, यह आपकी जिम्मेदारी बनती है कि आप मेरा इलाज करवाएं और वापस घर पहुंचाएं। ओम तब तब बड़े एक्टर नहीं बने थे, लेकिन हिम्मत की दात देनी पड़ेगी कि अपने हक के लिए प्रोड्यूसर से भिड़ गए। बहरहाल, किसी तरह मैंने और मिथुन ने उनके टिकट का इंतजाम करवाया और घर भिजवाया।

     

  2. 'मुझसे पूछते थे - ओ बेदी! कोई नया जोक आया कि नहीं': राकेश बेदी

     

    हम सब एक ही फील्ड में हैं तब साथ में काम तो करेंगे, वह इंपोर्टेंट नहीं है। ओम पुरी पुणे एफटीआई में मेरे क्लासमेट्स थे। जब एक ही क्लास में होते हैं, तब स्टूडेंट लाइफ की बहुत सारी यादें जुड़ जाती हैं, जो जिंदगी भर साथ रहती हैं। वहां हॉस्टल में रहना है, बड़ा यादगार है। हम 1974 से लेकर 1976 तक दो साल साथ में रहे। इस दौरान हमारा अच्छा रिश्ता बन गया था। उनको मेरे सुनाए हुए जोक्स बहुत अच्छे लगते थे। मेरा अंदाज-ए-बयां उन्हें बहुत पसंद था। अगर किसी दिन मुलाकात नहीं होती तो मुझे ढूंढना शुरू कर देते थे। वे मुझे बेदी और मैं उन्हें पुरी बुलाया था। मुझसे पूछते रहते थे कि ओ बेदी! कोई नया जोक आया कि नहीं आया। उन दिनों स्टूडेंट लाइफ में घर से बड़े सीमित पैसे मिलते थे। हमें कंजूसी और कम पैसे में गुजारा करना पड़ता था।

    एक बार उनका जन्मदिन आया। मैंने बोला कि पुरी यार आज तुम्हारा बर्थडे है, केक तो खिलाओ। वह कहने लगे- पैसे नहीं हैं, लेकिन मैं जरा दो मिनट में आता हूं। इतना कहकर वे वहां से निकल गए। कुछ समय बाद लौटे तो उनके हाथ में छोटे-छोटे पांच-छह कप केक थे। फिर तो हम सबने उन पांच-छह केक को बीच में रखकर मोमबत्ती जलाकर उनका जन्मदिन मनाया। कॉलेज के दिनों में भी वे बड़े संजीदा किस्म के इंसान थे। हम लोग मस्ती करते थे, वे भी ठहाके लगाकर हंसते जरूर थे पर हमारी तरह मस्तीखोर नहीं थे।
    (...जैसा कि उमेश कुमार उपाध्याय को बताया)

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