Friday, 13th June 2025

एनालिसिस / एक्सपर्ट्स का सुझाव- सोशल मीडिया का दुरुपयोग रोकने के लिए मोटर व्हीकल एक्ट की तरह सख्त कानून बने

Wed, Oct 16, 2019 5:17 PM

 

  • सोशल मीडिया के गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को गाइडलाइन बनाने का आदेश दिया
  • इस मुद्दे की बारीकियां समझने के लिए भास्कर APP ने डेटा प्रोटेक्शन कानून के लिए गठित समिति के अध्यक्ष जस्टिस बीएन श्रीकृष्णा, सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता, फैक्ट-चेकिंग वेबसाइट एसएम होक्स स्लेयर के संस्थापक पंकज जैन और आईटी एक्सपर्ट विनीत गोयनका से बात की
  • जस्टिस श्रीकृष्णा का कहना है कि हम तेजी से डिजिटलाइजेशन की तरफ बढ़ रहे, इसलिए अब देश को डेटा प्रोटेक्शन कानून की जरूरत
  • वरिष्ठ वकील विराग गुप्ता कहते हैं- जब प्रिंट, टीवी और अन्य मीडिया के इस्तेमाल के लिए गाइडलाइंस हैं, तो सोशल मीडिया के इस्तेमाल के लिए भी कानून बने
  • विनीत गोयनका का मानना है- सोशल मीडिया अकाउंट को आधार कार्ड या सरकारी आईडी से लिंक किया जाता है, तो दुरुपयोग को रोका जा सकता है

 

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए पिछले हफ्ते केंद्र सरकार को गाइडलाइंस बनाने के निर्देश दिए और 3 हफ्ते के अंदर जवाब भी मांगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सोशल मीडिया का दुरुपयोग बेहद खतरनाक है। सरकार इस मुद्दे पर चुप नहीं बैठ सकती। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद सोशल मीडिया का दुरुपयोग रोकने के लिए गाइडलाइंस या नियम-कानून बनाने की मांग तेज हो गई है। सोशल मीडिया के लिए गाइडलाइंस बनाना कितना जरूरी है? क्या इससे दुरुपयोग रोका जा सकता है? ऐसे सवालों के जवाब जानने के लिए भास्कर प्लस एप ने सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज और डेटा प्रोटेक्शन बिल के लिए गठित समिति के अध्यक्ष जस्टिस बीएन श्रीकृष्णा, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील विराग गुप्ता, फैक्ट-चेकिंग वेबसाइट सोशल मीडिया होक्स स्लेयर के संस्थापक पंकज जैन और आईटी एक्सपर्ट विनीत गोयनका से बात की।

हाईकोर्ट में दायर याचिकाओं के खिलाफ कंपनियां सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं

  1.  

    दरअसल, सोशल मीडिया अकाउंट और फेसबुक के वैरिफिकेशन को लेकर 4 याचिकाएं अलग-अलग हाईकोर्ट में दाखिल की गईं। इनमें से दो याचिकाएं मद्रास हाईकोर्ट, जबकि एक-एक याचिका मध्यप्र देश और बॉम्बे हाईकोर्ट में दाखिल है। मद्रास हाईकोर्ट में जो याचिका दाखिल की गई है, उसमें मांग की गई है कि सोशल मीडिया अकाउंट का आधार कार्ड या किसी दूसरी सरकारी आईडी से वेरिफिकेशन होना चाहिए। मद्रास हाईकोर्ट में इस मामले पर सुनवाई चल ही रही है और जल्द ही फैसला आने की भी उम्मीद थी। लेकिन हाईकोर्ट के फैसले से बचने के लिए फेसबुक और वॉट्सऐप सुप्रीम कोर्ट पहुंच गईं और देश की विभिन्न अदालतों में चल रहे 4 मामलों को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करने की मांग की। सुप्रीम कोर्ट ने फेसबुक की याचिका पर सुनवाई करते हुए सोशल मीडिया के जरिए हो रहे अपराधों पर चिंता जताई और केंद्र सरकार को इसके गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए गाइडलाइंस बनाने के निर्देश दिए। 

     

सुझाव : फेक न्यूज और अफवाहें फैलाने वालों के खिलाफ मोटर व्हीकल एक्ट जैसा सख्त कानून बने

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    फैक्ट-चेकिंग वेबसाइट सोशल मीडिया होक्स स्लेयर के संस्थापक पंकज जैन का कहना है कि सोशल मीडिया के जरिए अफवाह और फेक न्यूज फैलाने वालों को दंडित करने की जरूरत है। हाल ही में सरकार ने यातायात नियम सख्त किए हैं, जिससे बदलाव देखने को मिल रहा है क्योंकि लोग अब यातायात नियम तोड़ने से डर रहे हैं। इसी तरह से फेक न्यूज फैलाने वाले लोगों के साथ भी ऐसा ही होना चाहिए। खासतौर से हिंसा, सांप्रदायिक घृणा आदि फैलाने वालों के लिए सजा और जुर्माना एक समान होना चाहिए, चाहे वे किसी भी राजनीतिक पार्टी या धर्म का समर्थन करते हों।

     

कानूनी विकल्प : जनहित में मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है

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    सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज और डेटा प्रोटेक्शन बिल के लिए बनी कमेटी के अध्यक्ष रहे जस्टिस बीएन श्रीकृष्णा ने भास्कर ऐप से बातचीत में बताया कि दूसरे कई देशों में कंटेंट के मामले में सोशल मीडिया कंपनियों ही जिम्मेदारी होती हैं, लेकिन भारत में कंपनियों की कोई जवाबदेही नहीं है। शायद यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर सरकार को गाइडलाइंस लागू करने का आदेश देने को मजबूर हुआ। जस्टिस श्रीकृष्णा कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में यह बात आई होगी कि सोशल मीडिया पर जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिली है, उसे कानून व्यवस्था, शालीनता और जनहित में प्रतिबंधों के अधीन किया जाना चाहिए। 

     

चुनौती : गाइडलाइंस या नियम बन भी गए, तो क्या विदेशी कंपनियां इन्हें मानेंगी?

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    • इस बारे में जस्टिस श्रीकृष्णा कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट जो भी फैसला करेगा, वह संवैधानिक परिधि में होगा। अगर गाइडलाइंस या कानून को संवैधानिक रूप से वैध माना जाता है, तो हर किसी को इसका पालन करना होगा। हालांकि, कोर्ट ऐसा फैसला देने से पहले निश्चित रूप से संबंधित पक्षों की बात सुनेगा। हालांकि, इस बारे में विनीत गोयनका कहते हैं कि सोशल मीडिया कंपनियों के लिए भारत एक बड़ा बाजार है और अगर उन्हें यहां काम करना है तो यहां के कानून भी मानने पड़ेंगे।
    • वहीं, विराग बताते हैं कि विदेशी कंपनियां जब भारत में व्यापार करती हैं तो उन्हें भारतीय कानूनों का पालन करना जरूरी है। विदेशी सोशल मीडिया कंपनियां भारतीय कानूनों का पालन करें, इसके लिए दो चीजों पर अमल जरूरी है। पहला- विदेशी कंपनियों का भारत में कार्यालय हो और दूसरा- उनके स्थानीय अधिकारी नियुक्त हों, जिन्हें शिकायत अधिकारी, नोडल अधिकारी या अन्य नाम से बुलाया जा सकता है। इनके माध्यम से विदेशी कंपनियों को भारतीय कानूनों को लागू कराना आसान होगा।

     

सवाल : गाइडलाइंस या नियम बने भी तो दुरुपयोग कैसे रोका जाएगा?

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    • विराग कहते हैं कि अगर सोशल मीडिया कंपनियां मोबाइल ओटीपी के माध्यम से वेरिफिकेशन करें तो दुरुपयोग काफी हद तक रोका जा सकता है। इससे सोशल मीडिया कंपनियों को आपत्तिजनक कंटेंट पोस्ट करने वाले व्यक्ति की पहचान कर उस पोस्ट को हटाने के लिए भी कहा जा सकता है। अगर उसके बाद भी कंपनियां पोस्ट नहीं हटाती हैं, तो उनकी जवाबदेही तय की जा सकती है। गाइडलाइंस का पालन कराने के लिए सरकार और सोशल मीडिया कंपनियों दोनों को सिस्टम बनाना होगा।
    • वहीं, विनीत गोयनका बताते हैं कि सोशल मीडिया का दुरुपयोग रोकने के लिए जो गाइडलाइंस लाएगी, उसमें कंपनियों को ऐसी तकनीक लाने का भी कह सकती है जिससे आपत्तिजनक कंटेंट पोस्ट या शेयर करने वालों की पहचान हो सके। 

     Social-Media-Misuse

     

वेरिफिकेशन : सोशल मीडिया को आधार कार्ड से लिंक करने पर क्या दुरुपयोग रुकेगा?

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    • जस्टिस श्रीकृष्णा कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कानूनी और संवैधानिक वैधता का फैसला करने के लिए नोटिस जारी किया है। अगर कोर्ट सोशल मीडिया अकाउंट को आधार कार्ड से लिंक करने की मांग के पक्ष में फैसला देता है, तो निश्चित रूप से सोशल मीडिया का दुरुपयोग बंद हो जाएगा। विनीत भी यही बात कहते हैं कि आधार कार्ड या किसी दूसरी सरकारी आईडी से सोशल मीडिया अकाउंट को लिंक करने से सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोका जा सकता है। क्योंकि जब लोगों को पता होगा कि अगर कुछ गलत पोस्ट या शेयर करने पर उनकी पहचान हो सकती है, तो वे ऐसा करने से बचेंगे। 
    • हालांकि, विराग का इस बारे में कहना है कि आधार दुनिया का सबसे बड़ा डेटाबेस है और अगर इस पर सोशल मीडिया कंपनियों की सेंध लग गई तो करोड़ों लोगों की प्राइवेसी के साथ-साथ राष्ट्रीय सुरक्षा को भी खतरा हो सकता है। सोशल मीडिया कंपनियों के एग्रीमेंट के तहत डुप्लीकेट और बोगस यूसेज पर लगाम लगाने की जिम्मेदारी कंपनियों की है। फेसबुक और ट्विटर में यूजर्स का वेरिफिकेशन करके वेरिफिकेशन मार्क (ब्लू टिक) की व्यवस्था है, लेकिन वेरिफिकेशन प्रक्रिया को आम लोगों तक नहीं पहुंचाया जा रहा। क्योंकि सोशल मीडिया के जितने ज्यादा यूजर्स होंगे, कंपनियों को उतना ही मुनाफा होगा। आधार के बजाय अगर मोबाइल नंबर के माध्यम से सोशल मीडिया यूजर्स का वेरिफिकेशन हो जाए तो लोगों को असुविधा नहीं होगी और फेक अकाउंट का कारोबार रुक जाएगा। 

     

जब टीवी के लिए गाइडलाइंस तो सोशल मीडिया के लिए क्यों नहीं?

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    आईटी एक्सपर्ट विनीत गोयनका कहते हैं कि कोई गाइडलाइंस या नियम नहीं होने की वजह से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कोई भी कुछ भी लिख रहा है, जिससे सामाजिक सौहार्द्र तो बिगड़ता ही है, साथ ही जातिगत भेदभाव और धार्मिक भेदभाव को भी बढ़ावा मिलता है। इसलिए अब इसे रोकने के लिए गाइडलाइंस जरूरी हैं। वहीं, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील विराग गुप्ता कहते हैं कि प्रिंट, टीवी और अन्य मीडिया के इस्तेमाल के लिए नियम और गाइडलाइंस बने हैं। उसी तर्ज पर सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए नियम बनने चाहिए।

     

नियंत्रण जरूरी क्यों?

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    अप्रैल 2019 में फेसबुक ने एक प्रेस रिलीज जारी की थी, जिसमें बताया था कि भारत में होने वाले आम चुनावों में वोटरों को प्रभावित करने के लिए कई लोग फेक अकाउंट का इस्तेमाल करते हैं और कई दूसरे ग्रुप में भी जुड़ते हैं, ताकि अपनी बात ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचा सकें। फेसबुक के मुताबिक, ऐसे लोग फेक अकाउंट का इस्तेमाल स्थानीय समाचार और राजनीतिक पोस्ट करने के अलावा विरोधी पार्टियों की आलोचना करने के लिए करते हैं। वहीं, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट बताती है कि 2019 में 70 देशों की राजनीतिक पार्टियां वोटरों को प्रभावित करने के लिए सोशल मीडिया का गलत इस्तेमाल कर रही हैं। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि भारत में वोटरों को प्रभावित करने के लिए पार्टियां सबसे ज्यादा फेसबुक, ट्विटर और वॉट्सऐप का इस्तेमाल करती हैं।

     

  2. चुनाव आयोग ने गाइडलाइन बनाई थी

     

    विराग बताते हैं कि चुनाव आयोग ने सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर अक्टूबर 2013 में गाइडलाइन बनाई थी। इस पर चुनाव आयोग तो अमल करता है, लेकिन निचले स्तर पर प्रशासन और चुनाव अधिकारियों में जानकारी का अभाव है। सोशल मीडिया कंपनियां भी इसके पालन करने में कतराती हैं, जिससे रिपीटेशन एक्ट के तहत जारी गाइडलाइंस का सही पालन नहीं हो रहा है। 

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