बिलासपुर. पर्यावरण के लिए सबसे बड़ी समस्या बन चुके सिंगल यूज प्लास्टिक का वन विभाग ने विकल्प ढूंढ लिया है। अनुसंधान विस्तार वन मंडल बिलासपुर ने पौधरोपण के लिए नर्सरी में माहुल के पत्ते और वैक्स पेपर से बनी प्राकृतिक झिल्लियां तैयार करवाई हैं। दरअसल डीएफओ मनीष कश्यप ने सिंगल यूज प्लास्टिक को गंभीरता से लिया और उपाय ढूंढ निकाला। नर्सरियों में इसका उपयोग शुरू कर दिया गया है। अगर यह पूरे प्रदेश में लागू हो गया तो हर साल 20 करोड़ पॉलीथिन की झिल्लियां से मुक्ति मिलेगी।
डीएफओ मनीष कश्यप ने बताया कि पॉलीथिन के उपयोग से पर्यावरण दूषित होता है। वैज्ञानिक की खोज से स्पष्ट है कि पॉलीथिन को डिकंपोज होने में 100 वर्ष का समय लगता है। इस समस्या को ध्यान में रखते हुए परंपरागत पद्धति से निजात पाने माहुल के पत्ता और वैक्स पेपर से दोना तैयार करने का काम शुरू किया और अनुसंधान विस्तार वन मंडल की सकरी स्थित केंद्रीय रोपड़ी अरण्यिका में इसका प्रयोग किया जा रहा है। यदि दोना पत्तल से तैयार सामग्री प्रयोग सफल रहा तो भविष्य में वन विभाग के लिए यह अविष्कार प्रदूषण मिटाने में सहायक होगा।
2015 बैच के आईएफएस मनीष बिलासपुर में शामिल हो चुके मंगला के हैं। खड़गपुर आईआईटी से बीई सिविल करने के बाद वे आईएफएस में सिलेक्ट हुए। और 13 सितंबर से यहां वन अनुसंधान विस्तार केंद्र में पदस्थ हैं। उन्होंने बताया कि सरकार ने जब प्लास्टिक पर रोक लगा दी तो मैं सोचता था कि हमारे विभाग में पौधों के लिए ही प्लास्टिक का ज्यादा उपयोग पौधे उगाने में होता है। लोग पौधे रोपने के बाद वहीं प्लास्टिक की झिल्लियां फेंक देते थे। धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रही झिल्लियों को लेकर चिंतित था। सोचता गया और अचानक से ये आइडिया आ गया और काम शुरू कर दिया।
सबसे पहले माहुल के तीन पत्ते लेंगे। इसे मशीन से सिलाई करेंगे। एक पत्ते को गोल काटेंगे और नीचे की ओर लगाएंगे। बीच में वैक्स पेपर लगाएंगे ताकि पेपर पानी को सीधे पत्तों में जाने से रोके। इसे बनाने में दो से ढाई रुपए की लागत लगेगी। जबकि पॉलीथिन की एक झिल्ली एक रुपए में पढ़ती थी। मनीष ने बताया कि थोड़ा मंहगा जरूर है लेकिन हमारे लोगों को रोजगार भी मिलेगा और पर्यावरण प्रदूषित होने से बचेगा। फॉरेस्ट की नर्सरियों के साथ ही खाने-पीने की सामग्री रखने के काम में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
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