Thursday, 12th June 2025

धर्म / 2600 साल पुरानी परंपरा, 27 किमी लंबे मार्ग पर मदिरा की धार, देवियों को 50 किलो घुघरी और 40 लीटर मदिरा का भोग लगाया

Mon, Oct 7, 2019 4:42 PM

 

  • चौबीस खंभा मंदिर से शुरू हुई नगर पूजा, दोपहर में बारिश में भीगे यात्री, शिप्रा में बाढ़ के बावजूद पूजा की
  • मंदिरों में पहुंची यात्रा, बारिश और बाढ़ के बावजूद पूजा

 

उज्जैन .शारदीय नवरात्रि की अष्टमी पर रविवार को 2600 साल पुरानी नगर पूजा की परंपरा निभाई। 27 किमी लंबे मार्ग पर 50 किलो घुघरी (गेहूं व चना से बना प्रसाद) और 40 लीटर मदिरा बिखेरकर देवियों को महाभोग लगाया। इसके पहले सुबह 8 बजे महाकाल मंदिर के समीप स्थित चौबीस खंभा पर विराजित महामाया और महालया को शासन की ओर से कलेक्टर शशांक मिश्र ने सोलह शृंगार चढ़ाकर पूजन किया। देवी को मदिरा अर्पित की। इसके बाद ढोल-ढमाकों के साथ नगर पूजा यात्रा शुरू हुई।

मान्यता है कि सम्राट विक्रमादित्य ने शारदीय नवरात्रि की अष्टमी पर नगर में विराजमान देवियों को महाभोग और पूजन की परंपरा शुरू की थी। देवियों को प्रसन्न कर उन्होंने नगर की खुशहाली और विपत्तियों से बचाव का वचन लिया था। नगर पूजा की शुरुआत चौबीस खंभा से की जाती है। यहां मौजूदा स्ट्रक्चर परमार कालीन यानी 1000 साल पुराना है लेकिन 1962 में पुराविद् डॉ.विष्णु श्रीधर वाणककर द्वारा कराए सर्वेक्षण में यहां 2600 साल पुराने पुरावशेष मिले थे। विक्रमादित्य का शासनकाल भी इसके समकक्ष ही रहा है। इसलिए यह परंपरा 2600 साल पुरानी मानी जाती है। पुराविद् डॉ.आरसी ठाकुर ने ऐसे सिक्के व अन्य पुरावशेष भी खोजे हैं, जिनसे विक्रमादित्य के शासन की पुष्टि होती है। विक्रमादित्य से जुड़ी इस परंपरा को बाद के राजवंशों ने भी निभाया। मौजूदा शासन व्यवस्था में कलेक्टर को यह जिम्मेदारी दी है। शासन द्वारा ही पूजा की व्यवस्था की जाती है। शासन द्वारा निर्धारित राशि के अलावा होने वाला खर्च राजस्व और आबकारी कर्मचारी मिल कर वहन करते हैं। पूजा के लिए मदिरा देने के लिए आबकारी को पत्र भेजा जाता है। जिस पर अनुमति मिलने पर मदिरा पूजन के लिए मंदिर पहुंचाई जाती है।


चौबीस खंभा पर ढोल-ढमाकों के बीच पूजन कर मदिरा की धार बहाने की शुरुआत की गई। रास्तों पर गेहूं और चने से बना घुघरी का प्रसाद डालते व मदिरा की धार बहाते हुए पटवारी, चौकीदार व अन्य कर्मचारियों का दल एक के बाद एक 40 मंदिर पहुंचा। इनमें देवी, भैरव और हनुमान मंदिर शामिल हैं। इन मंदिरों पर पहुंचने के लिए 27 किमी तक पैदल चले। आगे ढोल, ध्वज, मदिरा बहाने वाला घड़ा और पीछे पूजन सामग्री, प्रसाद लिए कोटवार थे। नगर पूजा यात्रा जब दोपहर दो बजे गऊघाट पाले पर पहुंची तो बारिश शुरू हो गई। इसी बीच यात्रियों ने भोजन और फलाहार किया। बारिश के कारण यहां कुछ देर ठहरना पड़ा। इसके बाद यात्रा फिर चल दी। चित्रेश वाघे ने बताया यात्रियों ने शिप्रा में बाढ़ के बावजूद नदी किनारे छोटे पुल और चक्रतीर्थ स्थित मंदिरों पर पूजन किया गया। भगवानसिंह के अनुसार नगरकोट, गढ़कालिका, चामुंडा, हरसिद्धि और अन्य प्रमुख मंदिरों में अधिकारियों ने आकर पूजन किया। यात्रा का समापन अंकपात द्वार पर हांडीफोड़ भैरव पर किया।

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