Monday, 26th May 2025

छत्तीसगढ़ / दो साल के बच्चे की बलि देने वाले तांत्रिक दंपति को मौत की सजा, भिलाई कांड में सुप्रीम कोर्ट का फैसला

Sat, Oct 5, 2019 8:07 PM

 

  • तंत्र विद्या के लिए 2014 में दो साल के बच्चे की दंपति ने चढ़ा दी थी बलि, लोअर और हाईकोर्ट ने दंपति सहित 7 को सुनाई थी मौत की सजा 
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा अपराधियों के अंदर से इंसानियत नहीं जागी, इनके अंदर आत्मा या मनोभाव नाम की कोई चीज नहीं
  • दोषी पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में अपने बचाव में कहा : हमारे खिलाफ ऐसा कोई साक्ष्य नहीं मिला जिससे पुष्ट हो सके कि हमने नरबलि को अंजाम दिया है 

 

दुर्ग. तंत्र साधना के लिए मासूम की दी गई बली के मामले में सर्वोच्च अदालत ने दोनों अपराधियों को मिली फांसी की सजा को बरकरार रखा है। तांत्रिक दंपत्ति सहित 7 को दुर्ग कोर्ट ने साल 2014 में फांसी दी थी। दो साल के चिराग राजपूत की बली चढ़ाने वाले दोषी ईश्वर लाल यादव और उसकी पत्नी किरण बाई के प्रकरण की सुनवाई के दौरान मानवीय दृष्टिकोण और रिकार्ड में लाए गए साक्ष्यों के आधार पर फैसला दिया। वरिष्ठ अधिवक्ता सुरेश शर्मा ने बताया कि शीर्ष अदालत ने नरबलि के दो प्रकरण में इसे रेयरेस्ट ऑफ रेयर भी करार दिया। 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- असहाय बालक का सिर धड़ से अलग कर दिया, हमारे लिए रेयरेस्ट ऑफ रेयर केस है

  1.  

    दंपति की याचिका पर न्यायमूर्ति रोहिंगटन फली नरीमन, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने सुनवाई की। पीठ के लिए न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि, साक्ष्यों से यह स्पष्ट है कि मुख्य अभियुक्त ईश्वर यादव और किरण बाई ने भगवान को बलि के नाम पर दो साल के बच्चे चिराग की हत्या की है। इस बात को ध्यान में रखा जाना चाहिए कि उस वक्त खुद तीन नाबालिग बच्चे मौजूद थे। 

     

  2.  

    बावजूद उन्होंने दो साल के बच्चे की निर्मम हत्या की। उम्र का ध्यान करके भी इनके अंदर से इंसानियत नहीं जागी, इनके अंदर आत्मा या मनोभाव नाम की कोई चीज नहीं है, जिससे सुधार की कोई गुंजाइश हो। दोनों ने सुनियोजित तरीके से हत्या को अंजाम देते हुए असहाय बालक का सिर धड़ से अलग कर दिया गया। हमारा मत है कि यह रेयरेस्ट ऑफ रेयर मामला है और निचली अदालत द्वारा निर्धारित मौत की सजा हाईकोर्ट ने बरकरार रखकर सही निर्णय दिया है। 

     

  3. रिकॉल : वारदात के दिन कैसा था मंजर और कैसे हुआ खुलासा

     

    अपहरण के तीन दिन बाद मासूम की आरोपियों ने दी बलि : घटना के समय मासूम चिराग राजपूत अपने माता-पिता के साथ साईं मंदिर के सामने कसारीडीह में था। मां उसे शौच कराने के लिए सड़क किनारे ले गई। वापस उसे मंदिर के पास छोड़ दिया। उस समय आरोपियों ने उसका अपहरण किया और गुरुमाता के घर रूआबांधा ले गए। 3 दिन बाद वारदात को अंजाम दिया। 

    खोजबीन में तांत्रिक के घर मिले खून के धब्बों से खुला मामला : नरबलि की घटना 23 नवंबर 2011 की दोपहर दो बजे हुई। सात लोगों ने मिलकर चिराग राजपूत की बलि दी। चिराग के लापता होने से परिजन एवं मोहल्लेवासी तलाश कर रहे थे। दंपति के घर गाना बजने से लोगों को आशंका हुई। 

    ताबीज में लगे खून की जांच से मासूम की हुई पहचान : पुलिस ने मौके पर पहुंचकर तांत्रिक, उसकी पत्नी और चेलों को हिरासत में ले लिया। तांत्रिक की पत्नी किरण बाई ने पुलिस पूछातछ में बताया कि उसे सपना आया था कि बच्चे की बलि देना है। 

     

  4. 2011 में वारदात को दिया था अंजाम 

     

    साल 2011 को रूआबांधा में रहने वाले मासूम चिराग का अपहरण कर नरबलि दी गई। भिलाई नगर पुलिस ने तांत्रिक दंपत्ति ईश्वरी लाल यादव तथा उसकी पत्नी किरण बाई सहित कुल सात लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया। प्रकरण पर जिला सत्र न्यायाधीश गौतम चौरडिय़ा की अदालत में ट्रायल हुआ। जिला कोर्ट ने 27 मार्च 2014 को दिए गए इस फैसले में मामले से जुड़े सभी 7 आरोपियों को धारा 364 के तहत उम्रकैद व हत्या व आपराधिक षड्यंत्र रचने के तहहत फांसी की सजा सुनाई। 

     

  5.  

    दुर्ग कोर्ट के इतिहास का बड़ा फैसला माना गया : जिला कोर्ट के इतिहास में मार्च 2014 को नरबलि देने वाले आरोपियों को सुनाया गया फैसला सबसे बड़ा फैसला माना गया। मिट्टी में लगे खून का मिलान होना व गवाही के आधार पर तत्कालीन न्यायाधीश गौतम चौरड़िया ने सात आरोपियों को फांसी की सजा दी। 
    गिरफ्तारी के बाद मनीषा की बलि का भी खुलासा : चिराग राजपूत की नरबलि मामले में गिरफ्तारी के बाद मनीषा की बलि दिए जाने का खुलासा हुआ था। आरोपियों ने पूछताछ में स्वीकार किया था कि उन्होंने 6 साल की लड़की मनीषा पिता वीरू का भी अपहरण कर उसकी भी तंत्र सिद्ध करने के लिए बलि दी थी।

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