रायपुर . राजधानी के लोगों ने इस बार गणेश प्रतिमाओं की स्थापना से लेकर विसर्जन तक ऐसी जागरुकता दिखाई कि खारुन दी और शहर के लगभग 44 जीवित तालाबों में से किसी में एक मूर्ति विसर्जित नहीं की। सबसे खास बात यह रही कि लोगों ने प्लास्टर अाॅफ पेरिस (पीओपी) की मूर्तियों को पूरी तरह खारिज कर दिया तथा इनकी जगह मिट्टी की प्रतिमाओं को ही तरजीह दी। दैनिक भास्कर के अाग्रह पर नगर निगम के इंजीनियरों तथा विशेषज्ञों ने विसर्जन के बाद गणना की कि इस दफा प्रतिमाओं का कितना अवशेष खारुन नदी तथा तालाबों में जाने से बचा। अलग-अलग अाकार वाली प्रतिमाओं तथा महादेवघाट और मठपुरैना कुंड से जो अवशेष बाहर निकाले गए हैं, उनके अांकलन के बाद अनुमान है कि शहर ने विसर्जन के 185 टन अवशेष या सामग्री प्राकृतिक स्रोतों यानी खारुन नदी और शहर के करीब 44 तालाबों में जाने से बचा ली है, जिनसे पानी दूषित हो सकता था।
नदी और शहर के तालाबों को प्रदूषण से बचाने के लिए दैनिक भास्कर के साथ-साथ नगर निगम और जिला प्रशासन समेत अधिकांश गणेशोत्सव समितियों ने मुहिम चलाई थी, जिसमें राजधानी ने जबर्दस्त जागरुकता दिखाई है। आंकड़ों के अनुसार रविवार की रात तक महादेव घाट कुंड में गणेश जी की 1150 बड़ी प्रतिमाएं और 5594 छोटी प्रतिमाएं विसर्जित हुईं। पहले दिन ही ढाई हजार के करीब छोटी-बड़ी प्रतिमाएं विसर्जन के लिए आई थी।
कुंड में विसर्जन को लेकर नगर निगम, पुलिस व जिला प्रशासन की तरफ से सुरक्षा, लाइटिंग, सीसीटीवी, साफ-सफाई, क्रेन व कर्मचारियों की व्यवस्था की गई थी। शहर में सोसायटी, मोहल्ले, कॉलोनी, पंडाल में स्थापित अधिकतर प्रतिमाओं को कुंड में विसर्जन के लिए लाया गया। विसर्जन के बाद कुंड की सफाई व व्यवस्था में लगे कर्मचारी प्रतिमाओं की मिट्टी घुलने के बाद उसके ढांचों को बाहर निकालते रहे। यह क्रम चौबीसों घंटे चला। इस कुंड के किनारे प्रतिमाओं के ढांचे, बांस और लकड़ियां तथा भूसे का पहाड़ बन गया है। इसी के पास पूजन सामग्री और प्लास्टिक का भी ढेर है, जो खारुन नदी में जा सकता था।
केमिकल से भी बचा पानी : निगम के विशेषज्ञों ने दावा किया कि शहर के किसी भी व्यक्ति ने इस बार एक भी प्रतिमा नदी या तालाबों में विसर्जित नहीं की है। पिछले साल तक खारुन और तालाबों में ही प्रतिमाओं विसर्जित की जाती थीं, जिनमें से ज्यादातर पीओपी की रहती थीं। इनके विसर्जन से नदी-तालाबों में पीओपी के साथ अन्य केमिकल पानी में घुलते रहे और यह इतना घातक होता रहा कि मछलियां तथा जलीय जीव समेत पानी का उपयोग करने वाले मवेशी व लोगों पर असर दिखने लगा था। लेकिन इस बार प्रतिमाएं मिट्टी तथा अधिकांशतया इकोफ्रेंडली तत्वों से बनीं। इसके बावजूद अस्थायी कुंड में विसर्जन से इनके तत्व और अवशेष भी प्राकृतिक स्रोतों में घुलने से बच गए।
लोगों की पहल से हुअा : निगम गणेश प्रतिमाओं के विसर्जन में इस बार शहर ने जबर्दस्त जागरुकता दिखाई है। 7 हजार प्रतिमाएं अस्थायी कुंड में विसर्जित हुईं, तो उनसे ज्यादा लोगों ने अपने घरों-गार्डन में विसर्जित कीं। मूर्तिकारों ने भी पीओपी की एक भी प्रतिमा नहीं बनाई। - पुलिक भट्टाचार्य, अपर आयुक्त नगर निगम
बड़ी प्रतिमाओं की ऊंचाई भी कम : नगर निगम के अपर आयुक्त के मुताबिक इंजीनियरों की एक टीम ने इस बार हुए बदलाव के असर का अध्ययन किया। इस अध्ययन के अनुसार करीब 7 हजार छोटी-बड़ी प्रतिमाएं कुंड में विसर्जित की गईं। इनसे करीब 200 टन सामग्री नदी-तालाबों के पानी में जाने से बचाई गई। जैसे, घर में स्थापित 5594 छोटी प्रतिमाओं मोहल्लों तथा अस्थायी कुंड में विसर्जित की गईं। औसतन 5 किलो वजन के हिसाब से पानी में इनकी 29, 970 किलो सामग्री और वेस्ट कुंड के पानी में मिल गया। चार से अाठ फीट तक की कुल 500 प्रतिमाओं का विसर्जन हुअा।
औसतन 50 किलो वजन के हिसाब से इनकी 25000 किलो सामग्री तथा वेस्ट नदी-तालाबों में नहीं गया। लगभग 200 किलो या ज्यादा वजन वाली 650 बड़ी प्रतिमाओं की 1,30,000 किलो सामग्री भी कुंड में चली गई। इस तरह, पूरी विसर्जित प्रतिमाओं को अगर नदी और तालाबों में विसर्जित किया जाता तो 1.849 टन वेस्ट उनके पानी में मिल जाता। इसमें बांस और लकड़ियां, भूसा, लोहे की छड़ें, बल्लियां, प्लास्टिक, थर्मोकोल अलग हैं जिन्हें कुंड से बाहर रखा गया है। प्रतिमाओं के जो ढांचे कुंड से निकाले गए हैं, कलाकारों का कहना है कि इनका दोबारा प्रतिमा बनाने में उपयोग हो जाएगा।
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