Sunday, 27th July 2025

व्यापमं / सीबीआई ने व्यापमं के अफसरों को बचाने चपरासी, गार्ड को मोहरा बनाया

Sat, Sep 14, 2019 3:24 PM

 

  • पुलिस विभाग की निम्न श्रेणी लिपिक व शीघ्र लेखक भर्ती परीक्षा मामले में विशेष कोर्ट की तल्ख टिप्पणी
  • सीबीआई जांच पर उठे सवाल, तीन आरोपी बरी, जबकि दो को सात साल जेल की सजा

 

भोपाल. व्यापमं महाघोटाले से जुड़े एक मामले में तीन आरोपियों को बरी करते हुए सीबीआई की विशेष कोर्ट ने शुक्रवार को तल्ख टिप्पणी की। विशेष न्यायाधीश अजय श्रीवास्तव ने 90 पेज के फैसले में  सीबीआई की जांच और व्यापमं की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए।

कोर्ट ने कहा कि सीबीआई ने व्यापमं के बड़े अधिकारियों को बचाने चपरासी और सिक्युरिटी गार्ड जैसे छोटे कर्मचारियों को मोहरा बनाया। सीबीआई अधिकारी यदि गंभीरता से जांच करते तो वास्तविक अपराधियों को दंडित किया जा सकता था।

कोर्ट ने 2013 में व्यापमं द्वारा पुलिस विभाग के लिए आयोजित की गई निम्न श्रेणी लिपिक व शीघ्र लेखक भर्ती परीक्षा के मामले में तीन आरोपियों चपरासी रीतेश कोठे, शंकर सोनी एवं िसक्युिरटी गार्ड आशीष शर्मा को बरी कर दिया, जबकि दो परीक्षार्थी तरुण उमरे और राकेश पटेल को सात साल जेल और जुर्माने की सजा सुनाई।

व्यापमं ने चपरासी, गार्ड समेत पांच को आरोपी बताया था
परीक्षा के बाद स्कैनिंग के दौरान शासकीय आर्ट्स एवं कॉमर्स कॉलेज और शासकीय हमीदिया कॉलेज से मिलीं ओएमआर शीट्स में एक-एक शीट कम थीं। 15 जून को व्यापमं के कंप्यूटर शाखा प्रभारी ने एमपी नगर थाने में इसकी एफआईआर दर्ज कराई। तब व्यापमं ने बताया था कि रीतेश और शंकर से पूछताछ हुई तो उन्होंने तरुण और राकेश की शीट छिपाने और उनमें हेराफेरी की बात कबूली और इसमें गार्ड आशीष भी शामिल था। मामले में सीबीआई ने पांचों को आरोपी बनाया था।

जबकि अदालत ने इनमें से दो को ही दोषी माना
व्यापमं ने जिन पांच को आरोपी बताया था, उनमें से तीन को कोर्ट ने बरी कर दिया। कोर्ट ने फैसले में कहा कि व्यापमं के तत्कालीन अधिकारियों ने जो गवाही और सबूत पेश किए, उससे साफ है कि अधिकारियों की मिलीभगत के बिना ओएमआर शीट तक पहुंचना नामुकिन था। सीबीआई ने जांच में दो चपरासी और गार्ड को मोहरा बनाते हुए इस मामले में सहआरोपी बना दिया। जबकि परीक्षार्थी तरुण और राकेश ओएमआर शीट चोरी करने के षड्यंत्र में शामिल थे। 

गड़बड़ी कहां... सीबीआई की जांच पर बड़े सवाल
व्यापमं के मिनी स्ट्रांग रूम में ओएमआर शीट के बाॅक्स को सीलबंद करने के बाद उसकी चाबी एक लिफाफे में रखकर लॉकर में जमा होती है। रूम की चाबी परीक्षा नियंत्रक के पास रहती है। उसके तालों को सीलबंद करने के बाद उस पर व्यापमं के दो अधिकारियों के हस्ताक्षर होते थे। स्ट्रांग रूम की निगरानी सीसीटीवी कैमरों से होती थी। 

अब सवाल :

सीबीआई को व्यापमं अधिकारियों ने सीसीटीवी फुटेज क्यों नहीं दिए? जब व्यापमं के अधिकारियों के पास चाबियां रहती थीं और ताले नहीं टूटे तो उनकी मदद के बिना आरोपी शीट तक कैसे पहुंचे?

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