बॉलीवुड डेस्क. फिल्म 'तुम्हारी सुलू' के दो साल बाद विद्या बालन ने 'मिशन मंगल' से जोरदार कमबैक किया है। यह फिल्म रिलीज के 19वें दिन ही 200 करोड़ क्लब में पहुंच गई। दिलचस्प बात यह थी कि फिल्म में उनके द्वारा निभाया आया तारा शिंदे का रोल अक्षय कुमार के किरदार के मुकाबले कहीं कमतर नहीं था। फिल्म की सफलता और अपनी आगे की ख्वाहिशों पर उन्होंने खुल कर बात की है।
इस किरदार को लेकर सबसे यूनीक तारीफ क्या मिली?
यह कि तारा शिंदे में कहीं से लोगों को विद्या बालन नजर नहीं आई। महिलाएं उस किरदार से इंस्पायर हुईं हैं। उन्हें तारा शिंदे पावरफुल और सहज दोनों लगी। फिल्म को मिली सफलता से मेरा अपने आप में भरोसा काफी गहरा हुआ है।
इंडियन रूल बुक के अलावा जुगाड़ू भी होते हैं। आपने कोई जुगाड़ किया हो?
जुगाड़ तो चलता रहता है। एक्टिंग की विधा जुगाड़ का काम ही तो है। एक्टर को इमोशन से खेलना होता है। भले उसने वह इमोशन जिया हो कि नहीं? इमोशन को मैनिपुलेट करते हैं। ताकि सीन के हिसाब से एक्टर सही एक्सप्रेस कर सकें।
आपने 'भूल भुलैया' के कैरेक्टर मंजुलिका के इमोशन को तो फील ही नहीं किया था?
सही कहा। असल जीवन में घर परिवार और वर्क प्लेस में भी इंसान को जुगाडू बनना पड़ता है। मंजुलिका का किरदार भी काफी चैलेंजिंग था।
उस पर स्पिन ऑफ बनवाना चाहेंगी?
मुझे लगता है कि मंजुलिका की बैक स्टोरी 'भूल भुलैया' में दिखाई गई थी तो उस पर स्पिन ऑफ तो नहीं बन सकती। हां, 'कहानी' में जो मेरा विद्या बागची वाला किरदार था, उस पर जरूर चाहूंगी कि स्पिन ऑफ बने। वह इसलिए कि फिल्म में उसके रिवेंज की स्टोरी ही थी। तीन साल उसने नकली पहचान के साथ जिंदगी जी थी। वैसा कुछ एक अलग तरह का इंसान ही कर सकता है। ऐसे में, विद्या बागची के स्ट्रॉन्ग वुमन बनने की अतीत की कहानी और भी इंटरेस्टिंग हो सकती है।
अक्षय कुमार तो मॉर्निंग पर्सन हैं। आप और आप के घर में लोगों के क्या हाल हैं?
अक्षय को तो मैं वर्षों से जानती हूं, वे 13 से 14 सालों से मॉर्निंग पर्सन हैं। मेरे इर्द-गिर्द भी सब मॉर्निंग पर्सन रहते हैं। मेरे पति सिद्धार्थ को जल्दी जागने की आदत है। मेरी माता-पिता सब सुबह जल्द जागने वालों में से हैं। मैं रात की रानी हूं।
अगर एक्टर नहीं होती तो किस पेशे में होतीं?
साइकेट्रिस्ट होती। वह इसलिए कि मुझे लोगों को समझना बहुत अच्छा लगता है।
इसरो के वैज्ञानिक सीमित संसाधनों में बहुत कुछ कर जाते हैं। नासा में भी ज्यादातर इंजीनियर इंडियन मूल के हैं। तो क्या आईआईटी वगैरह से प्रतिभा पलायन पर बैन लगना चाहिए?
बैन की बजाय इनसेनटिव बेहतर करना चाहिए। तभी उनको लगेगा कि उनका भला इंडिया में भी रहकर हो सकता है। बैन या फोर्स यूज करने पर लोग दूसरा जुगाड़ ढूंढने लगेंगे। ऐसे में ऐसा माहौल तैयार करना चाहिए, जिसमें इंजीनियरिंग या बाकी प्रोफेशनल्स को लगे कि देश में रहकर भी उनका भला हो सकता है। साथ ही देश का भी वे भला कर सकते हैं। देश में भी अच्छे अवसरों की कमी नहीं है।
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