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छत्तीसगढ़ / मल्हार में मिली गणपति की दुर्लभ प्रतिमाएं, यहां गणेश स्त्री वैनायकी और पंचमुखी हेरम्ब के रूप में

Tue, Sep 3, 2019 7:03 PM

 

  • हेरम्ब रूप की सबसे ज्यादा मान्यता नेपाल में, इसमें गणेश जी के पांच मुख और दस हाथ हैं
  • 10वीं-11वीं सदी में कल्चुरी शासनकाल की भव्य नगरी रही है मल्हार, बिलासपुर से है 40 किमी दूर

 

रायपुर (विश्वेश ठाकरे). गणेश जी उन कुछ देवताओं में शामिल हैं जिनकी महिमा और मान्यता पूरे देश में है। कुछ अन्य देशों में भी गणेश पूजे जाते हैं। हमारे देश के तो हर राज्य में गणेश प्रतिमाएं मिली हैं। यह प्रतिमाएं कई रूपों-विग्रहों में हैं। इन विग्रहों को लेकर अलग अलग कहानियां हैं, मान्यताएं हैं, पुराणों में जिक्र है।

छत्तीसगढ़ में भी पुरातत्व विभाग के उत्खनन में गणेश जी के कई रूपों की सैकड़ों प्रतिमाएं मिली हैं। बस्तर के बारसूर से लेकर सरगुजा के डीपाडीह, कवर्धा के पचराही से लेकर बिलासपुर के रतनपुर, ताला, मल्हार तक जहां-जहां भी पुरातत्व विभाग को प्राचीन नगरों के निशान मिले हैं गणेश प्रतिमाएं भी मिली हैं। इनमें से कुछ चौंकाने वाली प्रतिमाएं भी मिली हैं।


10वीं-11वीं सदी में कल्चुरी शासनकाल की भव्य नगरी रही मल्हार में कुछ वर्षों पहले दो हिस्सों में मिली उनकी हेरम्ब रूप की प्रतिमा ऐसी ही है। हेरम्ब रूप की सबसे ज्यादा मान्यता नेपाल में है। स्कंद पुराण, पद्म पुराण, गणेश पुराण जैसे कई शास्त्रों, प्राचीन लेखों में हेरम्ब रूप का उल्लेख है। इसमें गणेश जी के पांच मुख हैं और दस हाथ। इस रूप में वे शेर की सवारी करते हैं और निर्बलों की रक्षा करते हैं। इस रूप के पूजन का तंत्र क्रिया में बड़ा महत्व है। दक्षिणी राज्यों में भी इस रूप की मान्यता है। ओडिशा में भी हेरम्ब की एक-दो प्रतिमाएं उत्खनन के दौरान मिली हैं। 


छत्तीसगढ़ में इस रूप की प्रतिमाएं नहीं मिलती हैं और ना ही यहां हेरम्ब पूजन की परंपरा है, लेकिन मल्हार में कुछ वर्षों पूर्व गणेश जी की एक प्रतिमा का विशालकाय धड़ मिला। इसके बाद एक खेत में दबा इसका सिर का हिस्सा भी मिला। यह पंचमुखी था। करीब 11 फीट ऊंची प्रतिमा के दस हाथों में अस्त्र-शस्त्र थे। इसकी पहचान इतिहासकारों, पुरातत्वविदों ने हेरम्ब रूप में की। यह रूप यहां छत्तीसगढ़ और कल्चुरियों के यहां कैसे आया यह अभी भी रहस्य है, क्योंकि अभी तक इस क्षेत्र में ऐसी दूसरी प्रतिमा नहीं मिली।


ऐसे ही गणेश के स्त्री रूप की एक और प्रतिमा यहां पातालेश्वर मंदिर के द्वार के भीतरी हिस्से में एक पैनल में है। इसमें गणेश जी के साथ एक स्त्री है। आर्कियोलॉजिकल डिपार्टमेंट के अधिकारी और पुरातत्वविद् राहुल सिंह कहते हैं कि यह स्त्री दरअसल गणेश जी का ही स्त्री स्वरूप वैनायकी है।

मायथोलाॅजी के विशेषज्ञ देवदत्त पटनायक वैनायकी के विषय में बताते हैं कि अंधका नाम के राक्षस ने देवी पार्वती को अपनी पत्नी बनाने के लिए पकड़ने की कोशिश की। पार्वती ने शिव को आवाज दी। शिव ने त्रिशूल से अंधका की गरदन काट दी, लेकिन एक वरदान के कारण जहां-जहां उस असुर का रक्त गिरा एक अंधका फिर उत्पन्न हो गया। यह संकट देख सभी देवों ने अपनी-अपनी शक्ति से नारी स्वरूप की रचना की। इंद्र ने इंद्राणी बनाई, विष्णु ने वैष्णवी बनाई, ब्रह्मा ने ब्राह्मणी।


पटनायक बताते हैं कि मत्स्य पुराण और विष्णु धर्मोत्तरा पुराण कहते हैं कि गणेश जी ने भी अपनी शक्ति बनाई जिसका नाम वैनायकी और गणेश्वरी रखा गया। उसने भी इस युद्ध में भाग लिया। इन सभी देवियों ने अंधक के रक्त को जमीन पर गिरने से पहले ही पी लिया और इस तरह अंधक का अंत हुआ। इसी वैनायकी रूप की प्रतिमा मल्हार के पातालेश्वर मंदिर के द्वार पर बनी हुई है।

प्रदेश में अभी तक वैनायकी की ऐसी प्रतिमा नहीं मिली है। दरअसल दोनों ही प्रतिमाओं के मिलने के बाद इन्हें स्थानीय इतिहास से जोड़ने, किसी रिसर्च, किसी अध्ययन की शुरुआत नहीं की गई। यदि ऐसा होता तो निश्चित रूप से कल्चुरी शासनकाल की संस्कृति के कुछ नए अध्याय सामने आते।

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