मनोज व्यास|रायपुर . राजधानी रायपुर से 100 किमी की दूरी पर है पिथौरा ब्लॉक का गोड़बहाल गांव। यहां कुछ समय पहले तक खेतिहर मजदूरी करने वाले 105 किसान परिवार 2000 लीटर प्रतिदिन दूध का उत्पादन कर रहे हैं। कुछ समय पहले तक आर्थिक कमजोरी से जूझने वाले इन किसानों ने दुग्ध सहकारी समिति बनाकर हालात बदले। मुनाफा हुआ तो समिति ने गांव के ही कुछ गंभीर कुपोषित बच्चों को कुपोषण मुक्त करने का बीड़ा उठाया। अब समिति द्वारा बच्चों को दूध, दलिया और पौष्टिक आहार खिलाया जाता है। समिति के अध्यक्ष सादराम पटेल बताते हैं कि जब सहकारी समिति बनी, तब बड़ी मुश्किल से 11 लोग जुड़े थे।30-40 लीटर दूध का ही उत्पादन होता था। अब 105 परिवार जुड़ गए हैं और हर दिन हम 2000 लीटर दूध का उत्पादन कर रहे हैं। हमारा सालाना कारोबार एक करोड़ रुपए से ऊपर है।
अब तो गोड़बहाल के साथ-साथ अर्जुनी और कोकोभाठा के भी किसान जुड़ गए हैं।
आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ तो लोगों ने ट्रैक्टर, मेटाडोर, कार और बाइक भी खरीद ली हैं। समिति 6.50 लाख रुपए के मुनाफे में है। अर्जुनी के नरसिंह पटेल के पास 60 से ज्यादा गौवंश है।
यहां के किसानों के पास साहीवाल, गिर, हॉस्टन फ्रीजियन, जर्सी, जर्सी क्रॉस नस्ल गौवंश है। आधा दर्जन से ज्यादा लोगों के पास दूध निकालने के लिए मशीन हैं। दूध ठंडा करने के लिए चिल्लर भी हैं। इसके अलावा गौवंश के रिहायशी शेड को धोने के लिए इलेक्ट्रिक पंप हैं। हर डेयरी किसानों के घर में गोबर गैस प्लांट लगा है, उनके घरों में भोजन इसी से बनाता है। इससे लकड़ी और गैस का भी उपयोग नहीं होता।
युवाओं ने की थी पहल : 1988 में तत्कालीन डीएफओ राकेश चतुर्वेदी ने गांव के लोगों को डेयरी फार्मिंग के बारे में बताया, लेकिन ज्यादातर बुजुर्गों ने मना कर दिया। पर कुछ युवाओं की इसमें रुचि जागी और डेयरी पालन शुरू हो गया। 2018 में वन विभाग ने किसानों को न्यूनतम शर्तों पर आर्थिक मदद दी, इससे उत्पादन बढ़ गया। समिति शुरू की गई थी तब एक हेल्पर और सचिव को कुल 390 रुपए वेतन दिया जाता था, जो अब बढ़कर 22,500 रुपए हो गया है। समिति में 4 कर्मचारी काम करते हैं।
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