रायपुर . एक्सप्रेस-वे के निर्माण में हुई लापरवाही और गड़बड़घोटाले की पोल दूसरे दिन मॉइश्चर सेंपल की टेस्टिंग से भी खुल गई है। अफसरों ने सड़क पर एक बाई एक फीट का गड्ढा खोदकर करीब दो फीट नीचे की मुरुम निकाली और वहां का माइश्चर टेस्ट किया तो नमी 9.5 प्रतिशत से ज्यादा निकली। जबकि सड़क के नीचे नमी 5.5 फीसदी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। जानकारों के मुताबिक सड़क इतने सतही तरीके से बनाई गई है कि बारिश का पानी 6 इंच के डब्ल्यूबीएम और करीब 17 इंच की मुरुम-गिट्टी की लेयर को पार करके नीचे की मुरुम तक पहुंच रहा है। जांच में यह बात भी सामने अाई कि फ्लाईओवर से नीचे उतरने वाली सड़क में पर्याप्त मात्रा में मुरुम डालने के बाद रोलर चलाकर उसे हार्ड करना चाहिए था, जो नहीं किया गया।
अफसरों ने बताया कि पूरी 12 किलोमीटर की सड़क की जांच तीन स्तर पर की जा रही है। यह चार-पांच दिन में पूरी होगी। इसके बाद जांच रिपोर्ट तैयार होगी। तभी स्पष्ट होगा कि सड़क बनाने में कितनी लापरवाही बरती गई है। शुक्रवार को जांच टीम ने फाफाडीह और देवेंद्र नगर में तीन जगहों पर सैंपल लिए। डब्ल्यूबीएम की मोटाई के तीन में से दो सेंपल फेल हो गए। एक जगह का डब्ल्यूबीएम मानकों के अनुरूप मिला। अभी फाफाडीह और देवेंद्र नगर में ही फ्लाईओवर से नीचे उतरने वाली सड़क का सैंपल लिया गया है। एेसे अन्य सैंपल एक्सप्रेस-वे के हर फ्लाईओवर से लिए जाएंगे।
रेत ज्यादा पर गिट्टी कम : डब्ल्यूबीएम के नीचे करीब 17 इंच की मोटाई में गिट्टी और रेत को मिक्स कर इसकी परत बिछाई जाती है। अफसरों का कहना है कि यह लेयर डब्ल्यूबीएम की परत को नीचे धसने से रोकती है। प्रारंभिक जांच में यह बात सामने अा रही है कि सड़क में गिट्टी और रेत के मिक्चर अानुपातिक नहीं है। यह लेयर जितनी ठोस होगी, सड़क उतनी ही मजबूत होगी। गड्ढे से निकले इस हिस्से के मटेरियल की जांच लैब में होगी। इसके बाद स्पष्ट होगा कि वास्तव में सड़क निर्माण में लगाया गया मटेरियल मापदंडों के कितना अनुरूप है।
ऐसे बनती है अच्छी मजबूत सड़क, इन्हीं लेयर की जांच से तय होगा कि एक्सप्रेस-वे मजबूत या नहीं
1. सरफेस कोर्स: ऊपरी सतह जिस पर वाहन दौड़ते हैं। अच्छे बिटुमनी का उपयोग इस लेयर को मजबूत रखता है। जानकारों का अनुसार अच्छे बिटुमनी से सड़क चार तरह की खामियों से बचती है।
यह दरारें नहीं पड़ने देता, मौसम यानी बारिश, ठंड और धूप से बचाता है, भीतर जाने से नमी को रोके रखता है और वाहनों की सुविधाजनक (स्मूद राइडिंग) में मदद करता है।
2. बेस कोर्स: सरफेस कोर्स के ठीक नीचे की इस परत पर पूरी सड़क का भार रहता है, इसलिए इसकी क्वालिटी जरूरी है। इस लेयर का निर्माण भी चार अलग-अलग तरह से किया जाता है।
खास तौर पर इस बात का ध्यान रखा जाता है कि इसमें उपयोग में आने वाले पत्थर का साइज कितना होनी चाहिए, किस तरह से रोल कर पत्थरों के टुकड़ों को फिक्स किया गया है इत्यादि।
3. सब बेस: बेस कोर्स के नीचे दानेदार मटेरियल जैसे मुरुम और कंकड़ों की लेयर सब बेस बनाती है। यह लेयर सड़क के तनाव को नियंत्रित करता है। इस लेयर के निर्माण के अलग मापदंड हैं।
फ्लाईओवर से जमीन की तह तक ऊंचाई ज्यादा होती है। इस ऊंचाई को इसी मटेरियल से भरते हैं। इसकी मजबूती पर इसलिए फोकस रहता है क्योंकि यह कमजोर होने से सड़क धंसती है।
4. सब ग्रेड: यह जमीन के ठीक ऊपर और सड़क के नीचे की लेयर है। यह प्राकृतिक रूप से मिलने वाले मटेरियल की लेयर होती है। यह फिल मटेरियल होता है। यह जितना ठोस होगा, सड़क की गुणवत्ता उतनी ही अच्छी होगी। एक्सप्रेस वे की जांच में इन चारों चीजों की जांच जरूरी है। अफसर हर लेयर के सैंपल निकालकर उनके मापदंड के अनुरूप होने का पता लगा रहे है।
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