बिलासपुर . चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली तीन जजों की फुल बेंच ने शुक्रवार को अहम फैसला दिया है। 2012 से स्टे के आधार पर हैड मास्टर के पद पर कार्यरत हजारों शिक्षाकर्मी अब इस पद पर बरकरार रहेंगे। फुल बेंच ने 2012 में दिए गए सिंगल बेंच के आदेश को निरस्त कर दिया है। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच द्वारा 2010 में समान मामले पर निर्णय दिया था, लेकिन 2012 में सिंगल बेंच ने इसके विपरीत निर्णय दे दिया। विरोधाभासी निर्णय के कारण मामला फुल बेंच को रेफर कर दिया गया था।
राज्य शासन ने 2009- 2010 में प्रदेश की प्राथमिक शालाओं में प्रधान पाठक के रिक्त पदों पर शिक्षाकर्मियों को नियुक्ति देने के लिए सीमित विभागीय परीक्षा आयोजित की थी। परीक्षा में सफल होने वाले शिक्षाकर्मियों को विभिन्न प्राथमिक शाला में प्रधान पाठक के पद पर नियुक्ति दी गई। स्कूल शिक्षा विभाग के नियमित शिक्षकों ने इसके खिलाफ हाईकोर्ट में
याचिका प्रस्तुत कर कहा कि शिक्षा विभाग के नियमित शिक्षकों के बजाय पंचायत विभाग के शिक्षाकर्मी को प्रधान पाठक के पद पर नियुक्ति नहीं दी जा सकती है। साथ ही यह पद पदोन्नति का है, जिसे नियमित शिक्षकों से ही भरा जा सकता है।
सिंगल बेंच ने 2012 में दिए गए फैसले में शिक्षाकर्मियों को प्रधान पाठक के पद पर नियुक्त करने के आदेश को निरस्त कर दिया। इसे प्रधान पाठक बन चुके शिक्षाकर्मियों कमल नारायण वर्मा, शैल पटेल, घनश्याम प्रसाद साहू सहित अन्य ने सीनियर एडवोकेट डॉ. निर्मल शुक्ला, एडवोकेट राजीव श्रीवास्ताव, सुनील ओटवानी, सुदीप श्रीवास्तव, मलय श्रीवास्तव, बीडी गुरु सहित अन्य के जरिए डिवीजन बेंच में चुनौती दी थी। सिंगल बेंच के फैसले के खिलाफ कुल 59 अपीलें प्रस्तुत की गई थीं। मामले पर वर्ष 2012 में ही कुछ दिनों तक सुनवाई के दौरान डिवीजन बेंच ने पाया कि सिंगल बेंच ने इस मामले पर 2010 में डिवीजन बेंच द्वारा दिए गए फैसले के विपरीत निर्णय दिया है, जबकि नियमित शिक्षकों की याचिका पर प्रभावित शिक्षाकर्मियों को पक्षकार ही नहीं बनाया गया था। जाहिर है प्रभावित पक्ष की सुनवाई किए बगैर ही सिंगल बेंच ने आदेश जारी किया था।
अंतरिम राहत देते हुए सिंगल बेंच के आदेश पर रोक लगा दी गई थी। साथ ही एक समान मामले में डिवीजन बेंच और सिंगल बेंच के फैसलों में विरोधाभास होने के कारण डिवीजन बेंच ने इसे फुल बेंच को रेफर कर दिया था। अपील करने वाले शिक्षाकर्मी से प्रधान पाठक बने हजारों पिछले 7 सालों से स्टे के आधार पर प्रधान पाठक के पद पर कार्य कर रहे थे। इस मामले पर चीफ जस्टिस पीआर रामचंद्र मेनन, जस्टिस गौतम भादुरी और जस्टिस आरसीएस सामंत की फुल बेंच ने शुक्रवार को महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए सिंगल बेंच के आदेश को निरस्त कर दिया है। हाईकोर्ट के फैसले से प्रधान पाठक के पद पर अब तक स्टे के आधार पर कार्यरत हजारों शिक्षाकर्मी अब नियमित तौर पर कार्य करेंगे।
सिंगल बेंच ने न्यायिक अनुशासन का पालन नहीं किया : फुल बेंच ने मुख्य रूप से जिन बिंदुओं के आधार पर निर्णय दिया है, उसमें सिंगल बेंच के समक्ष प्रस्तुत याचिकाओं में प्रधान पाठक बनने वाले शिक्षाकर्मियों को पक्षकार नहीं बनाया गया था। सिंगल बेंच ने उनका पक्ष सुने बगैर निर्णय दिया था। दूसरा पूर्व में डिवीजन बेंच से फैसला होने के कारण सिंगल बेंच को समान मामले पर निर्णय देने में न्यायिक अनुशासन का पालन करना था। न्यायिक अनुशासन का पालन करते हुए मामले को फुल बेंच को रेफर करना था, लेकिन ऐसा नहीें किया गया।
हाईकोर्ट के दो फैसलों में था विरोधाभास : राज्य शासन ने नीतिगत निर्णय लेते हुए प्रदेश में प्रधान पाठक के रिक्त पदों को शिक्षाकर्मियों के लिए सीमित विभागीय परीक्षा के जरिए भरने का निर्णय लिया था, ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि नियमित शिक्षक के पद को डाइंग कैडर घोषित कर दिया गया था, लेकिन इसके खिलाफ 2010 में हाईकोर्ट में याचिकाएं प्रस्तुत कर दी गईं। परदेशी राम वर्मा व अन्य के मामले में डिवीजन बेंच ने राज्य शासन के निर्णय को नियमों के मुताबिक बताते हुए याचिकाएं खारिज कर दी थीं। इसके बाद भर्ती प्रक्रिया और चयन सूची जारी होने के बाद इस मामले पर दोबारा याचिकाएं प्रस्तुत की गईं, जिसमें 2012 में सिंगल बेंच ने डिवीजन बेंच द्वारा पूर्व में दिए गए निर्णय के विपरीत निर्णय दिया।
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