भोपाल. मध्य प्रदेश के वरिष्ठ भाजपा नेता बाबूलाल गौर (89) का बुधवार को राजधानी के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। गौर 2004 में उमा भारती के पद छोड़ने के बाद मुख्यमंत्री बने थे। उमा ने उन्हें गंगाजल हाथ में रखकर उन्हें कसम दिलाई थी कि जब कहूं तब सीएम की कुर्सी छोड़ देना। लेकिन, बाद में उमा ने जब उनसे इस्तीफा मांगा तो गौर ने साफ इनकार कर दिया था। उमा ने गौर को कसम याद दिलाई तो गौर ने कोई जवाब नहीं दिया। इसके बाद कुछ ऐसा हुआ कि भाजपा में शक्ति परीक्षण की स्थिति बन गई।
2003 में मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में उमा भारती के नेतृत्व में भाजपा भारी बहुमत से 10 साल बाद सत्ता में लौटी थी। उमा भारती मुख्यमंत्री बनीं। एक साल के अंदर ही उनके नाम कर्नाटक के हुबली की अदालत से 10 साल पुराने मामले में वॉरंट जारी हो गया। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के कहने पर उमा को इस्तीफा देना पड़ा था। तब उमा ने गौर को ये सोचते हुए मुख्यमंत्री बनवाया कि वे जब कहेंगी तो गौर त्यागपत्र दे देंगे। कुछ महीने बाद कोर्ट ने उमा के खिलाफ मामला खारिज कर दिया। इसके बाद उमा ने गौर से इस्तीफा देने कहा था।
पार्टी में उपेक्षा से आहत रहते थे गौर
दरअसल, उमा भारती मानती थी कि बाबूलाल गौर का भोपाल से बाहर आधार नहीं है। गौर भाजपा में अपनी उपेक्षा से उस समय काफी आहत भी रहते थे। वे कई बार बैठकों तक में नहीं जाते थे। ये भी कहा जाता है कि उमा इसलिए गौर को सीएम बनाने राजी हो गई थी, क्योंकि वे पिछड़ी जाति के थे। इसके बाद गौर ने 23 अगस्त 2004 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी।
मुख्यमंत्री बनने के 3 महीने बाद हुई थी बेटे की मौत
मुख्यमंत्री बनने के बाद बाबूलाल गौर श्यामला हिल्स स्थित मुख्यमंत्री निवास में शिफ्ट हुए। इसके तीसरे महीने ही उनके इकलौते बेटे पुरुषोत्तम गौर की हार्ट अटैक से मौत हो गई। कुछ दिन बाद उन्होंने पुत्रबधू कृष्णा गौर को पर्यटन निगम का अध्यक्ष बना दिया। इसका भाजपा में काफी विरोध हुआ। नतीजतन कृष्णा को 13 दिन में पद छोड़ना पड़ा। इसके बाद कृष्णा गौर भोपाल के महापौर का चुनाव जीतीं। 2018 के विधानसभा चुनाव में गोविंदपुरा सीट से विधायक बनीं।
भाजपा ने गौर को घर बैठा दिया था
जून 2016 में भाजपा आलाकमान ने उम्र का हवाला देकर बाबूलाल गौर को मंत्री पद छोड़ने के लिए कहा था। तब वे 86 साल के थे। गौर पार्टी के इस निर्णय से स्तब्ध और दुखी थे। 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा न तो उन्हें टिकट देना चाहती थी न ही उनकी पुत्रबधू कृष्णा गौर को। गौर ने पार्टी के खिलाफ बयानबाजी शुरू कर दी। आखिरकार पार्टी ने कृष्णा गौर को टिकट दे दिया।
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