Monday, 9th June 2025

डीबी ओरिजिनल / चंद्रमा की कक्षा में कल पहुंचेगा चंद्रयान-2; सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग बड़ी चुनौती क्योंकि वहां हवा नहीं

Mon, Aug 19, 2019 4:10 PM

 

  • दो अंतरिक्ष वैज्ञानिक और एक एस्ट्रोनॉमर ने भास्कर ऐप को बताई चांद पर लैंडिंग की बारीकियां
  • चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग में एक हफ्ते की देरी हुई, लेकिन यह पूर्व निर्धारित समय 7 सितंबर को ही चांद के दक्षिण ध्रुव पर उतरेगा
  • अंतरिक्ष वैज्ञानिक पीएस गोयल के मुताबिक, चांद पर पृथ्वी की तरह वायुमंडल नहीं, यही लैंडिंग के दौरान सबसे बड़ी चुनौती होगी
  • एस्ट्रोनॉमर योगेश जोशी के मुताबिक, लैंडिंग के वक्त विक्रम की स्पीड कम करना और उतरने के लिए सही जगह तलाशना आसान नहीं होगा

 

नई दिल्ली. चंद्रयान-2 चंद्रमा की कक्षा में 20 अगस्त को पहुंच जाएगा। 22 जुलाई को लॉन्च हुए इस मिशन ने इससे पहले 23 दिन पृथ्वी के चक्कर लगाए थे। इसके बाद चंद्रमा की कक्षा में पहुंचने में इसे 6 दिन लगे। चंद्रमा की कक्षा में पहुंचने के बाद यान 13 दिन तक चक्कर लगाएगा। 4 दिन बाद यानी संभवत: 7 सितंबर को वह चांद की सतह पर पहले से निर्धारित जगह पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा। वैज्ञानिकों के मुताबिक, चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग इसरो के लिए इस मिशन की सबसे बड़ी चुनौती होगी, क्योंकि वहां हवा नहीं चलती और गुरुत्वाकर्षण बल भी हर जगह अलग-अलग होता है। दैनिक भास्कर ऐप के पाठकों के लिए इससे जुड़े सवालों के जवाब बता रहे हैं अंतरिक्ष वैज्ञानिक पीएस गोयल, ओपी कल्ला और एस्ट्रोनॉमर योगेश जोशी। 


चांद की सतह पर लैंडिंग सबसे बड़ी चुनौती क्यों?
अंतरिक्ष वैज्ञानिक पीएस गोयल बताते हैं कि चांद का वातावरण पृथ्वी की तरह नहीं है। पृथ्वी पर हजारों फीट की ऊंचाई से हम पैराशूट की मदद से नीचे आ सकते हैं, क्योंकि यहां हवा है और गुरुत्वाकर्षण बल है। चांद पर हवा नहीं है। ग्रेविटेशनल फोर्स भी हर जगह अलग-अलग है। ऐसे में 1.5 किमी/सेकंड की रफ्तार से घूम रहे ऑर्बिट से चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग कैसे की जाए, यह बड़ा चैलेंज होगा। चांद के दक्षिणी ध्रुव पर बड़े-बड़े बोल्डर्स, क्रेटर्स हैं, जहां क्रैश होने का खतरा ज्यादा है। 

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चंद्रयान-2 के लिए चांद पर और कौन-कौन सी चुनौतियां होंगी?

  • एस्ट्रोनॉमर योगेश जोशी बताते हैं, "पृथ्वी से बहुत ज्यादा दूरी होने और यानों की सीमित ऊर्जा के कारण संचार के लिए उपयोग हो रहे रेडियो सिग्नल बहुत कमजोर हो जाते हैं। इन सिग्नल्स के बैकग्राउंड में काफी ज्यादा शोर भी होता है। ऐसे में इन सिग्नलों को रिसीव करना भी चुनौतीभरा होगा।"
  • "पृथ्वी के चक्कर लगाने के कारण चांद का ऑर्बिट लगातार बदलता है। इसके ऑर्बिट में यान को पहुंचाने के लिए चंद्रयान-2 और चांद की गति का एकदम सटीक पूर्वानुमान जरूरी है। यान जब चांद के ऑर्बिट के करीब होगा तो इसकी रफ्तार भी बहुत ज्यादा होगी। थ्रस्टर्स चलाकर इसकी गति को कम करके ही चांद की कक्षा में प्रवेश किया जा सकता है। यहां कैलकुलेशन में थोड़ी-सी गड़बड़ी भी मिशन को नाकाम कर सकती है।"
  • "चांद की सतह के अंदर असमान घनत्व के कारण यहां गुरुत्वाकर्षण बल भी एक समान नहीं है। इस कारण चंद्रयान-2 के लिए चांद के चारों तरफ चक्कर लगाना भी आसान नहीं होगा। इससे चंद्रयान-2 के इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम पर असर पड़ सकता है, इसलिए चांद की ग्रैविटी और वातावरण की बारीकी से गणना करनी होगी।"
  • "लैंडिंग के दौरान लैंडर जैसे ही चांद की सतह पर अपना प्रपुल्शन सिस्टम ऑन करेगा, वहां तेजी से धूल उड़ेगी। धूल उड़कर लैंडर के सोलर पैनल पर जमा हो सकती है, इससे पावर सप्लाई और सेंसर्स पर असर पड़ सकता है।"
  • "चांद का एक दिन या रात धरती के 14 दिन के बराबर है। इसकी वजह से चांद की सतह पर तापमान तेजी से बदलता है। इससे लैंडर और रोवर के काम में बाधा आ सकती है।"


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ऑर्बिटर से अलग होने के बाद लैंडर चांद की सतह पर कैसे पहुंचेगा?
ऑर्बिटर से लैंडर के अलग होने के बाद यह चांद के सर्कुलर ऑर्बिट से इलेप्टिकल ऑर्बिट में आएगा, जहां एक छोर पर इसकी दूरी चांद से 100 किमी होगी तो दूसरे छोर पर 30 किमी रहेगी। इसी 30 किमी की दूरी वाले छोर से लैंडर चांद की सतह पर पहुंचेगा। लैंडिंग के दौरान उसकी स्पीड बहुत ज्यादा होगी, चांद की सतह पर उतरने के लिए स्पीड कम करनी होगी। इसे कम करने के लिए उल्टी डायरेक्शन में थ्रस्टर चलाना होंगे। चांद की सतह पर ग्रेविटी भी अलग-अलग होती है। ऐसे में थ्रस्टर की मदद से यान के नीचे उतरने की स्पीड मैंटेन रखना होगी। इस दौरान लैंडर चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग के लिए समतल सतह स्कैन भी करेगा।


कैसे तय होता है लॉन्चिंग का समय?
15 जुलाई को चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग का समय रात 2.51 था। बाद में यह 22 जुलाई को दोपहर 2.43 पर लॉन्च हुआ। हर स्पेसक्राफ्ट की लॉन्चिग के लिए एक लॉन्च विंडो होती है। यानी उसी समयावधि में यान को लॉन्च किया जा सकता है। अंतरिक्ष वैज्ञानिक ओपी कल्ला बताते हैं कि लॉन्चिंग का समय चुनने के लिए लंबी कैलकुलेशन होती है। इसके कई पैरामीटर होते हैं। चांद पर अगर कोई मिशन भेजना है तो पृथ्वी और चांद का मूवमेंट ध्यान में रखा जाता है। चंद्रयान-2 के मामले में पृथ्वी और चांद के ऑर्बिट में घूमने से लेकर लैंडिंग में लगने वाले हर समय की गणना की गई होगी।


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चंद्रयान-1 के मुकाबले तीन गुना भारी है चंद्रयान-2
चंद्रयान-2 को भारत के सबसे ताकतवर जीएसएलवी मार्क-III रॉकेट से लॉन्च किया गया। इस रॉकेट में तीन मॉड्यूल ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) हैं। इस मिशन के तहत इसरो चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर को उतारेगा। इस बार चंद्रयान-2 का वजन 3,877 किलो होगा। यह चंद्रयान-1 मिशन (1380 किलो) से करीब तीन गुना ज्यादा है। लैंडर के अंदर मौजूद रोवर की रफ्तार 1 सेमी प्रति सेकंड रहेगी।


चंद्रयान-2 के बाद इसरो के सामने गगनयान-1 अगली चुनौती
अंतरिक्ष वैज्ञानिक पीएस गोयल बताते हैं कि गगनयान-1 के तहत भारत अंतरिक्ष में पहली बार इंसानों को भेजेगा, यह एक बड़ा मिशन है। इसे सफल बनाने में भी इसरो सक्षम है। चुनौती बस इसके लिए रखा गया टाइम फ्रेम है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मिशन के लिए 15 अगस्त 2022 की तारीख तय की है। यानी अब हमारे पास 3 साल हैं। इतने कम समय में मिशन तैयार करना सबसे बड़ी चुनौती है।

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