रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में ऐसी कई इमारतें स्तम्भ और स्मारक हैं जो आजादी के संघर्ष की कहानी कहते हैं। इस रिपोर्ट में पढ़िए उन जगहों से जुड़े ऐतिहासिक किस्से।
पुलिस लाइन
इतिहासकार रमेन्द्र नाथ मिश्र बताते हैं कि रायपुर स्थित पुलिस लाइन, कभी ब्रिटिश आर्मी की छावनी हुआ करती थी। यहाँ सन 18 जनवरी 1858 में सैनिक हनुमान सिंह ने अंग्रेज अधिकारी सिडवेल को मार डाला था । 6 घन्टे तक सैनिक अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ प्रदर्शन करते रहे। हनुमान सिंह फरार हो गए । 17 सैनिकों को इस विद्रोह की सजा के तौर पर फांसी दी गई। हनुमान सिंह पर 500 रुपये का इनाम घोषित हुआ। लेकिन उनका कोई पता नही चल सका। अब इसी पुलिस लाइन से मुख्यमंत्री प्रदेश की जनता को स्वतंत्रता दिवस पर संबोधित करते हैं।
गांधी मैदान
आज एक पार्किग प्लेस की तरह नजर आने वाला गांधी मैदान ऐतिहासिक है। यहां रायपुर शहर का पहला 15 अगस्त मनाया गया था। तब आस पास इतनी इमारतें नही थीं। यहां सुबह सारा शहर जमा हो चुका था। वरिष्ठ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वामन राव लाखे ने इसी मैदान में पहली बार तिरंगा फहराया था। इसके बाद लोगों ने बड़े जुलूस निकाले थे। मुफ्त में सारे शहर में मिठाइयां बांटी गईं थीं। रेलवे स्टेशन के पास सुभाष चन्द्र बोस की प्रतिमा लगाई गई।
जयस्तम्भ चौक
आज रायपुर शहर का सबसे प्रमुख चौराहा उतना ही पुराना है जितनी देश की आजादी। 1947 को ही इसे यहां बनाया गया था। यह देश की आजादी की लड़ाई में मिली जीत का प्रतीक है। जयस्तम्भ चौक में तब रेलवे का बड़ा दफ्तर हुआ करता था। वो इमारत गायब है। इतिहासकार रमेन्द्र नाथ मिश्र बताते हैं कि इसी तरह आज के नगर निगम कार्यालय के पास भी अंग्रेजों के समय की इमारतें तोड़ दी गईं। अब बची इमारतों को संरक्षित करना चाहिये।
प्रो जेएन पांडे स्कूल
रायपुर में स्थित यह स्कूल 100 साल पुराना है। 1909 में अंग्रेजों में ही इसकी स्थापना की थी। तब यह प्रदेश का सबसे बड़ा सरकारी स्कूल हुआ करता था। यहां सन 1935 से 42 तक जेएन पांडे ने पढ़ाई की। इस स्टूडेंट के मन मे देश को आजादी दिलाने का जबरदस्त भाव था। इसी के चलते एक दिन स्कूल की छत से अंग्रेजों का झंडा उतार फेंका और उसकी जगह इन्होंने तिरंगा फहरा दिया था। छत्तीसगढ़ में चल रहे आजादी के आंदोलन में इस घटना की खूब चर्चा रही थी। छत्तीसगढ़ के कई मंत्री और अधिकारी इसी स्कूल के छात्र रहे है।
जॉर्ज और एडवर्ड सप्तम
जब हम ये कहते हैं कि देश मे अंग्रेजों का राज था। तब उन शासकों की जैसी छवि हमारे मन मे उभरती है ये प्रतिमाएं वैसी ही हैं। ये प्रतिमाएं ब्रिटिश राजा जॉर्ज और एडवर्ड सप्तम की हैं। ये मूर्तियां शहर के टाउनहाल के पास लगी हुईं थी। तब ये हमारे गुलाम होने का प्रतीक थीं, क्योंकि इंग्लैंड के साथ ही इनका भारत पर भी प्रभुत्व था। आजादी के बाद इन मूर्तियों को हटा दिया गया। अब ये सिविल लाइंस स्थित संस्कृति विभाग के कैम्पस में पीछे की तरफ रखी गईं हैं। इन विशाल प्रतिमाओं में ब्रिटिश कला का बेहतरीन नमूना देखने को मिलता है।
230 शहीदों के शिलालेख
रायपुर के ही संस्कृति विभाग कैंपस में स्थित महंत घासीदास म्यूजियम के सामने पांच शिलालेख स्थापित किए गए हैं। एक शिलालेख में संविधान की प्रस्तावना लिखी गई है। बाकी चार शिलालेखाें में धरसींवा विकासखंड के अंर्तगत अजादी की लड़ाई में शहीद होने वाले 230 शहीदों के नाम लिखे गए हैं। ये शिलालेख अविभाजित मध्यप्रदेश के समय बनाए गए थे।
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