क्रिस स्टोक्स, द गार्डियन. इंग्लैंड की 2015 में हार के बाद पूर्व कप्तान एंड्रयू स्ट्रॉस को टीम का डायरेक्टर बनाया गया। उन्होंने कप्तान इयॉन मॉर्गन के साथ मिलकर वह टीम बनाई, जो अब वर्ल्ड चैंपियन है। हालांकि, स्ट्रॉस 2018 में पत्नी को कैंसर डिटेक्ट होने के बाद डायरेक्टर पद छोड़ चुके हैं। उन्होंने टीम को बनाने की कहानी बताई।
वर्ल्ड कप जीत इंग्लैंड में खेल के कल्चर को ही बदलने की ताकत रखती है: स्ट्रॉस
स्ट्रॉस ने कहा, ‘टीम का 2015 वर्ल्ड कप में प्रदर्शन देखकर मैं काफी निराश था, नाराज था। बाद में ठंडे दिमाग से सोचा तो समझ आया कि हमारा खेलने का तरीका तो छोड़िए, सोचने का तरीका भी गलत था। ये कमी कोई 2015 की नहीं, बल्कि 2011 और 2007 के वर्ल्ड कप में भी झलकी थी, जब मैं भी टीम में था। हमने उस वक्त इन कमियों को नजरअंदाज किया और वर्ल्ड कप में करारी हार के साथ इसका अंजाम भी भुगता। हम क्रिकेटरों की आदत होती है कि अगर हम कोई काम नहीं कर पाते हैं, उसे अजीब-अजीब तर्क देकर सही साबित करने की कोशिश में लग जाते हैं। मुझे अब भी 2007 वर्ल्ड कप के दौरान टीम के सामने कही अपनी बात याद है- ‘चौके- छक्के ना मार पाने पर निराश होने की जरूरत नहीं है। 2-3 रन भी बराबर अहमियत रखते हैं।’
‘अब अपनी कही बात याद करता हूं तो समझ आता है कि हम अपने ओल्ड फैशन खेल की वकालत कर रहे थे, और कुछ नहीं। टेस्ट खिलाड़ियों से भरी टीम लेकर हम वनडे वर्ल्ड कप जीतने उतर रहे थे। वो भी तब, जब वनडे पर टी-20 का असर आने लगा था। 2015 वर्ल्ड कप खत्म होने पर मैं टीम डायेरक्टर था। इयान मॉर्गन कप्तान थे। हमने टीम को ऐसे ही खिलाड़ियों से लैस करने की ठानी, जो मॉडर्न-डे क्रिकेट की जरूरतों को पूरा कर सकें। ऐसे गेंदबाज, जो अपने पेस और स्विंग से बल्लेबाज के मन में खौफ पैदा करें और ऐसे बल्लेबाज, जो किसी भी परिस्थिति से अपने आक्रामक के बूते मैच का रुख पलट सकें। हम कामयाब रहे।’
‘एक और बात- जब हम 2005 में एशेज जीते थे, तब भी देश में क्रिकेट को लेकर ऐसा ही जुनूनी माहौल बना था, जैसा आज है। लेकिन हम ये महसूस नहीं कर सके कि हमारी जीत खेल के मैदान से बाहर भी इंपैक्ट डाल सकती है। आज फिर हमारे पास वो मौका है और हमें कोशिश करनी चाहिए कि देश में खेल को लेकर एक कल्चर पैदा कर सकें, ताकि हमारी ये जीत आने वाले समय में कई और ऐतिहासिक जीत की नींव रख सके।’
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