दुर्ग. बाल संप्रेक्षण गृह में जेजे एक्ट (किशोर न्याय अधिनियम) की गाइडलाइन की खुलकर धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। एक्ट के अनुसार 18 साल की उम्र पार कर अपचारी बालकों को अलग रखने का प्रावधान है। लेकिन इस तरह संप्रेक्षण गृह में कोई व्यवस्था नहीं है। इन्हीं अव्यवस्थाओं के चलते करीब दो साल पहले बड़ी उम्र के बालकों द्वारा दो किशोरों को घेरकर लाठी-डंडो से इतना पीटा गया कि उसमें से एक पार्थ साहू की मौत हो गई। उससे सबब लेकर भी प्रशासन ने व्यवस्थाओं में सुधार नहीं किया।
इसके चलते हाईकोर्ट में हफ्तेभर पहले एक रिट दायर की गई है, जिसमें न्यायालय से जेजे के तहत व्यवस्थाएं लागू करने की मांग की गई है। रिट दायर करने वाले अधिवक्ता का कहना है कि व्यवस्थाओं को संचालित करने के लिए संप्रेक्षण में स्टॉफ की कोई कमी नहीं है। लेकिन परमानेंट की जगह डेली वेजेस और संविदा कर्मियों की तैनाती इसका प्रमुख कारण है। इस स्थिति को पिछले 10 साल में सुधारने की कोशिश नहीं हुई है।
बाल संप्रेक्षण गृह
प्लेस ऑफ सेफ्टी
विशेष गृह
दुर्ग के बाल संप्रेक्षण गृह में लगातार घटनाएं हो रही लेकिन जिम्मेदार सबक नहीं ले रहे
हाईकोर्ट में रिट दायर करने वाले अधिवक्ता सौरभ चौबे ने बताया, उस घटना के बाद मामले की जुडीशियल इनक्वायरी हुई। घटना की असल वजह और उसमें आई कमी को सुधार करने के मकसद से इनक्वायरी की जाती है। लेकिन अभी तक उस रिपोर्ट का खुलासा नहीं हो सका है। न ही उससे कोई सबक लिया गया है।
इन सबके बावजूद हो क्या रहा है, यह भी जानिए...
पुलगांव स्थित बाल संप्रेक्षण गृह की दो बिल्डिंग में फ्लैश ऑफ सेफ्टी, आब्जर्वर रूम (संप्रेक्षण गृह) और स्पेशल रूम (विशेष गृह) का संचालन तो किया जा रहा है। ऐसे में तीन ही सेल में सोने से लेकर टॉयलेट तक अलग-अलग व्यवस्था होनी चाहिए। केवल सोने के अलावा दिनभर सभी सेल के बच्चे एक साथ दिनभर रहते हैं।
साल 2017 में एक बच्चा 345 के केस में बाल संप्रेक्षण गृह में पहुंचा। उससे विवाद की स्थिति बनने पर 6 अपचारियों की समूह ने दो किशोरों को घेर लिया। लाठी-डंडों से दोनों युवकों की जमकर पिटाई की, जिसके कारण एक ने दम तोड़ दिया। उस घटना में चार युवक 21 से 25 साल के बीच की उम्र के थे।
बाल संप्रेक्षण गृह में जेजे एक्ट का सही तरीके से पालन कराने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है। इसमें इस बात का जिक्र किया गया है कि कमियों को सुधारने के प्रयास नहीं किए गए हैं।
सौरभ चौबे, अधिवक्ता और याचिकाकर्ता
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