Saturday, 24th May 2025

एक तरफ जापान-अमेरिका तो दूसरी तरफ रूस-चीन के साथ भारत ने की रणनीतिक बैठक

Sat, Jun 29, 2019 4:58 PM

 नई दिल्ली। ओसाका में चल रहे समूह-20 देशों की बैठक में भाग लेने गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वैश्विक कूटनीति के संदेश स्पष्ट निकलकर सामने आए। इसके तहत 'भारत अमेरिका के साथ है, लेकिन चीन विरोधी खेमे में भी नहीं है।' वैश्विक मंच पर जब आर्थिक, कूटनीतिक अनिश्चितता बढ़ रही है तब भारत ने बहुत ही जोरदार तरीके से संकेत दिया है कि वह खेमेबाजी में विश्वास नहीं रखता।

मोदी ने एक तरफ जापानी प्रधानमंत्री शिंजो एबी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ जापान-अमेरिका-भारत (जय) संगठन के शीर्ष नेताओं की बैठक में हिस्सा लिया तो इसके कुछ ही देर बाद उन्होंने रूस-भारत-चीन (आरआईसी) की शीर्ष स्तरीय बैठक में शिरकत की। इन दोनों बैठकों के बीच मोदी ने ब्रिक्स देशों (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) के राष्ट्राध्यक्षों के साथ अलग-अलग बैठक में भी हिस्सा लिया।

उक्त तीनों बैठकों को मोदी ने भारत के लिए समान रूप से अहम करार दिया और इनकी अलग-अलग बैठकें आगे भी जारी रखने को लेकर भी अपनी प्रतिबद्धता जताई। एबी और ट्रंप के साथ मोदी ने पिछले वर्ष भी 'जय' के शीर्ष नेताओं की बैठक की थी और यह इनका दूसरा सम्मेलन था। इसके बारे में विदेश सचिव विजय गोखले ने बताया कि मुख्य तौर पर यह बैठक हिंद-प्रशांत क्षेत्र से जुड़ी रही। तीनों नेता इस बात के पक्षधर रहे कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र सिर्फ इन तीनों देशों के लिए ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए शांति व समान अवसर वाला होना चाहिए।

जाहिर है कि अमेरिका व जापान के साथ मिलकर भारत ने चीन को हिंद-प्रशांत क्षेत्र के हालात पर सीधा संकेत दिया कि उसकी भौगोलिक विस्तारवादी नीतियों को लेकर वह दुनिया के दिग्गज देशों के साथ है। आरआईसी सम्मेलन में मुख्य तौर पर वैश्विक स्तर पर छाए मंदी के बादल और कारोबार में संरक्षणवादी नीतियों को मिल रहे प्रश्रय का मुद्दा सबसे अहम रहा। विश्व व्यापार संगठन (डब्लूटीओ) के नियमों की अनदेखी करने वाले राष्ट्रों पर भी भारत ने रूस और चीन के साथ मिलकर निशाना साधा। साफतौर पर यह निशाना अमेरिका की तरफ था। अमेरिका जिस तरह से अपने कारोबार को बढ़ावा देने को लेकर आक्रामक हुआ है उससे चीन और भारत सबसे ज्यादा परेशान हैं

इन दोनों बैठकों के बीच मोदी ने ब्रिक्स प्रमुखों की एक अलग बैठक में भी शिरकत की। ब्रिक्स की स्थापना भी चीन और रूस ने भारत के साथ मिलकर अमेरिका की बढ़ती ताकत के सामने एक वैकल्पिक व्यवस्था के तौर पर की थी। हर साल पांचों राष्ट्रों के प्रमुखों की एक शीर्ष बैठक होती है जो इस वर्ष ब्राजील में होनी है। इसके अलावा मौका मिलने पर इन देशों की दूसरे मौकों पर भी इस तरह की संक्षिप्त बैठक हो जाती है जहां रणनीति की समीक्षा की जाती है।

ब्रिक्स देशों की तरफ से जारी विज्ञप्ति में वैश्विक अर्थव्यस्था में छाई मंदी को उठाते हुए कहा गया है कि सदस्य देशों के बीच सुधारों को लेकर और ज्यादा सामंजस्य होना चाहिए। इसमें भी कारोबार को लेकर संरक्षणवाद की नीतियों का विरोध किया गया और सदस्य देशों के बीच कारोबारी रिश्तों को बढ़ाने के और उपाय करने की सहमति बनी। पांचों देशों ने डब्लूटीओ को बेहद जरूरी बताते हुए इसकी निगरानी में भी वैश्विक कारोबार को बढ़ावा देने की अपील की। ब्रिक्स देशों ने आतंकवाद के खिलाफ भी कड़ी अपील जारी की है। इसमें कहा गया है कि सभी देश अपनी जमीन से आतंकवाद का सफाया करने में और गंभीरता दिखाएं। खास तौर पर आतंकवाद को मिलने वाली वित्तीय मदद को निशाने पर लिया गया है। माना जा रहा है कि यह एफएटीएफ में फंसे पाकिस्तान की तरफ इशारा है।

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