Saturday, 24th May 2025

अमेरिका / अश्वेत होने के कारण लूसी को अलबामा यूनिवर्सिटी ने निष्कासित किया था, 63 साल बाद उपाधि दी

Wed, May 15, 2019 4:56 PM

 

  • लूसी को एडमिशन के 3 बाद ही विरोध का सामना करना पड़ा, जान से मारने तक की धमकी भी मिली
  • लूसी के सम्मान में यूनिवर्सिटी ने क्लॉक टॉवर बनवाया, उनके नाम पर स्कॉलरशिप शुरू की

लाइफस्टाइल डेस्क. ऑथरीन लूसी फॉस्टर पहली अश्वेत हैं जिन्हें अमेरिका की अलबामा यूनिवर्सिटी में एडमिशन मिला था, लेकिन प्रवेश के तीन दिन बाद ही निष्कासित कर दिया गया था। कारण, लूसी के अश्वेत होने के कारण यूनिवर्सिटी में बढ़ता विवाद और दंगे बताए गए थे। हाल ही में यूनिवर्सिटी ने 63 साल बाद इन्हें मानद उपाधि से सम्मानित किया है। 

कोर्ट में जंग जीतने के बाद भी यूनिवर्सिटी से निकाला गया

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    लूसी 89 साल की हैं। 1952 में जब इन्होंने प्रवेश के लिए अलबामा यूनिवसिर्टी में आवेदन किया तो इसे खारिज कर दिया गया। लूसी इसके खिलाफ कोर्ट गईं और करीब पांच साल बाद फैसला उनके पक्ष में आया। जब यूनिवर्सिटी में पढ़ाई शुरू की तो महज तीन दिन बाद अश्वेत होने के कारण विरोध का सामना करना पड़ा। उन्हें जान से मारने तक की धमकी दी गई। लगातार विरोध और नस्लीय विवाद के कारण उन्हें यूनिवर्सिटी से निकाल दिया गया था। 

     

  2. रंग लाई लूसी की लड़ाई

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    सालों चले संघर्ष के बाद स्कूल से उनकी बर्खास्तगी को 1988 में रद्द किया गया। 1991 में लूसी ने अलबामा यूनिवर्सिटी से मास्टर डिग्री पूरी की। कई दशक बाद यूनिवर्सिटी ने लूसी को मानद उपाधि से सम्मानित किया है। यूनिवर्सिटी ने इस पर एक बयान जारी किया है। बयान के मुताबिक, एजुकेशन सिस्टम को अलग बनाने के लिए लूसी ने बहादुरी दिखाई। लूसी फॉस्टर को उस दौर में भले ही एडमिशन नहीं मिला, लेकिन दशकों तक चले उनके संघर्ष के बाद कई अश्वेत छात्रों को यहां एडमिशन दिया गया। इतना ही नहीं लूसी के सम्मान में यूनिवर्सिटी ने नवंबर 2010 में लूसी क्लॉक टॉवर का निर्माण कराया। यूनिवर्सिटी ने लूसी के नाम पर एक स्कॉलरशिप भी शुरू की है।

     

  3. मैं वहां नाखुश नहीं, हंसते हुए चेहरे देख रही थी

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    लूसी ने मानद उपाधि के अनुभव को शेयर करते हुए कहा, मैं रो नहीं रही थी, लेकिन आंसू मेरी आंखों से निकलते जा रहे थे। यह काफी अलग और खास तरह का अनुभव था। फर्क ये था कि कभी मुझे देखकर यहां लोग मुंह बनाते थे और नाखुश दिखते थे ऐसा आज नहीं है। मैं वहां हंसते हुए चेहरों को देख रही थी।

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