जीवन मंत्र डेस्क। मंगलवार, 7 मई को वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया है। इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है। प्राचीन समय में इसी तिथि पर भगवान विष्णु के अवतार परशुराम का जन्म हुआ था। ऋषि जमदग्नि और रेणुका परशुराम के माता-पिता थे। उनके तीन बड़े भाई थे, जिनके नाम रुक्मवान, सुषेणवसु और विश्वावसु था। परशुराम अष्टचिरंजीवियों में से एक माने गए हैं। यहां जानिए परशुराम से जुड़ी 10 खास बातें...
प्रचलित कथाओं एक बार महिष्मती देश का राजा कार्तवीर्य अर्जुन युद्ध जीतकर जमग्नि मुनि के आश्रम के पास से निकला। तब वह थोड़ा आराम करने के लिए आश्रम में ही रुक गया। उसने देखा कामधेनु ने बड़ी ही सहजता से पूरी सेना के लिए भोजन की व्यवस्था कर दी है तो वह कामधेनु के बछड़े को अपने साथ बलपूर्वक ले गया। जब यह बात परशुराम को पता चली तो उन्होंने कार्तवीर्य अर्जुन की एक हजार भुजाएं काट दी और उसका वध कर दिया।
कार्तवीर्य अर्जुन के वध का बदला उसके पुत्रों ने जमदग्नि मुनि का वध करके लिया। क्षत्रियों का ये नीच कर्म देखकर भगवान परशुराम बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने कार्तवीर्य अर्जुन के सभी पुत्रों का वध कर दिया। जिन-जिन क्षत्रिय राजाओं ने उनका साथ दिया, परशुराम ने उनका भी वध कर दिया। इस प्रकार भगवान परशुराम ने 21 बार धरती को क्षत्रिय विहिन कर दिया था।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार एक बार परशुराम जब भगवान शिव के दर्शन करने कैलाश पहुंचे। तब भगवान शिव ध्यान में बैठे थे। तब श्रीगणेश ने परशुरामजी को शिवजी से मिलने नहीं दिया। इस बात से क्रोधित होकर परशुरामजी ने फरसे से श्रीगणेश पर वार कर दिया। वह फरसा स्वयं भगवान शिव ने परशुराम को दिया था। श्रीगणेश उस फरसे का वार खाली नहीं जाने देना चाहते थे। इसलिए उन्होंने उस फरसे का वार अपने दांत पर झेल लिया, इसकारण उनका एक दांत टूट गया। तभी से गणेशजी को एकदंत कहा जाता है।
महाभारत के अनुसार भीष्म पितामह परशुराम के ही शिष्य थे। भीष्म काशीराज की बेटियों अंबा, अंबिका और अंबालिका को अपने छोटे विचित्रवीर्य भाई से विवाह कराने के लिए हरण कर लिया। तब अंबा ने भीष्म को बताया कि वह राजा शाल्व से प्रेम करती है, तब भीष्म ने उसे छोड़ दिया, लेकिन शाल्व ने अंबा को अस्वीकार कर दिया। जब अंबा ने यह बात परशुराम को बताई तो उन्होंने भीष्म को उससे विवाह करने के लिए कहा। भीष्म ने इस बात के लिए मना कर दिया, क्योंकि उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य पालन करने की प्रतिज्ञा ली थी। ऐसा न करने पर परशुराम और उनके बीच युद्ध हुआ। अंत में पितरों की बात मानकर परशुराम ने अपने अस्त्र रख दिए। इस तरह युद्ध में न किसी की हार हुई न किसी की जीत।
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