उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से 76 किलोमीटर दूर एक ग्राम सभा बल्तिर में भगवान शिव का प्रसिद्ध मंदिर एक हथिया देवाल स्थित है। इसे अभिशप्त शिवालय कहा जाता है। माना जाता है कि ये मंदिर एक ही रात में बना है और इसे बनाने वाले कारिगर का एक ही हाथ था। उसने एक ही हाथ से पूरा मंदिर बनाया है। इसलिए इसे एक हथिया देवाल कहा जाता है। इस मंदिर में भोलेनाथ के दर्शन करने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं पर पूजा कोई नहीं करता। मान्यता है कि जो भी इस शिवलिंग की पूजा करेगा, उसके लिए यह फलदायक नहीं होगी।
ऐसा कहा जाता है कि मंदिर को बनाने वाले कारीगर ने केवल एक हाथ से रातों रात मंदिर को तैयार कर दिया था। बाद में जब पंडितों ने शिवलिंग को देखा तो पाया कि अरघा यानी जलाधारी विपरित दिशा में बनी हुई है। बाद में उसे ठीक करने का बहुत प्रयास किया गया पर अरघा सीधा नहीं हुआ। तब पंडितों ने घोषणा की कि जो भी इस शि वलिंग की पूजा करेगा, उसके लिए यह फलदायक नहीं होगी। इस पूजा से भारी कष्ट भी हो सकता है, क्योंकि दोषपूर्ण मूर्ति का पूजन अनिष्ट कारक भी हो सकता है। इसी के चलते रातों रात स्थापित हुये उस मंदिर में विराजमान शिवलिंग की पूजा नहीं की जाती। पास ही बने जल सरोवर में, जिसे स्थानीय भाषा में 'नौला' कहा जाता है, वहां मुंडन आदि संस्कार के समय बच्चों को स्नान कराया जाता है।
1. शिवलिंग का अरघा यानी जलाधारी उत्तर दिशा की आेर होनी चाहिए।
2. शिवलिंग की परिक्रमा आधी ही की जाती है। पूरी परिक्रमा करना से दोष लगता है।
3. शिवलिंग की परिक्रमा बांए हाथ की ओर से शुरू करनी चाहिए।
4. शिवलिंग पर केवड़ा और चंपा के फूल नहीं चढ़ाए जाते हैं।
5. घर में शिवलिंग की स्थापना नहीं करनी चाहिए।
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