Sunday, 8th June 2025

मध्यप्रदेश से ग्राउंड रिपोर्ट / पहले चरण की 6 सीटों में से 2 पर भाजपा, एक पर कांग्रेस मजबूत

Wed, Apr 24, 2019 5:17 PM

 

  • सीधी, शहडोल और जबलपुर में कड़ा संघर्ष, वोटर किसी भी दल की ओर जा सकता है
  • प्रज्ञा को भोपाल से उतार भाजपा वोटों के ध्रुवीकरण की ओर, पूरे हिंदी बेल्ट पर नजर

भोपाल. कांग्रेस के दिग्गज और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से मुकाबले के लिए भाजपा ने साध्वी प्रज्ञा सिंह को भोपाल से उम्मीदवार बनाकर चुनावी बहस को नया मोड़ दे दिया है। मध्यप्रदेश भाजपा और संघ का गढ़ है और पिछले चुनाव में 29 में से 27 सीटें भाजपा ने जीती थी। मध्यप्रदेश में चार चरण में मतदान होगा। पहला चरण 29 अप्रैल को है। इसमें 6 सीटों सीधी, शहडोल, जबलपुर, मंडला, बालाघाट और छिंदवाड़ा में वोट पड़ेंगे। इनमें से 2 मंडला और बालाघाट में भाजपा जबकि छिंदवाड़ा में कांग्रेस मजबूत है। सीधी, जबलपुर और शहडोल में लड़ाई कांटे की है।

चौथे चरण में प्रदेश में मतदान होने से सियासी पारा अभी गरमा ही रहा है। 2014 के चुनाव में भाजपा ने 27 सीटें जीती थीं, लेकिन विधानसभा चुनाव में उसे केवल 17 पर ही बढ़त हासिल थी। हालांकि उसका मैदानी वोट अभी भी बरकरार है। लेकिन प्रचार बिखरा-बिखरा सा है। कांग्रेस के कर्जमाफी और न्याय योजना का जवाब उसके पास नहीं है। कांग्रेस से जुड़े लोगों पर आयकर छापों का मुद्दा भी चलता नहीं दिख रहा है। 

प्रज्ञा से भाजपा को उम्मीद

बालाकोट के बाद राष्ट्रवाद की हवा है लेकिन वह ‘बड़ी जीत’ के लिए काफी नहीं है। मध्यप्रदेश में भाजपा पहली बार असहाय नजर आ रही है। ऐसे में प्रज्ञा उम्मीद की किरण हैं। सवाल सिर्फ यह है कि प्रज्ञा मंझे नेता की तरह लड़ें। दिग्विजय को भाजपा की परंपरागत सीट भोपाल से उतारकर कांग्रेस ने जोखिम लिया है और इसका फायदा पार्टी पूरे प्रदेश में लेने की कोशिश में है। उनके खिलाफ प्रज्ञा को लाकर भाजपा ने ध्रुवीकरण की कोशिश भी की है। पार्टी नेतृत्व का मानना है कि हिंदू वोट संगठित हुए तो फायदा न सिर्फ भोपाल बल्कि पूरे हिंदी बेल्ट में मिलेगा। भाजपा का यह फैसला कितना सही है यह तो आने वाले दिनों में ही पता चलेगा, लेकिन यह तय है कि भोपाल का चुनाव वाराणसी, अमेठी और रायबरेली से भी ज्यादा रोचक हो गया है।

कांग्रेस का भरोसा न्याय योजना और कर्जमाफी पर है। दिग्विजय सिंह तो विकास के अलावा कोई बात ही नहीं कर रहे हैं। भोपाल के लिए उन्होंने विजन डॉक्यूमेंट जारी किया है। जहां तक टिकट का सवाल है तो कांग्रेस ने सावधानी दिखाई है। भोपाल में दिग्विजय सिंह, जबलपुर में विवेक तन्खा, सीधी से अजय सिंह, गुना से ज्योतिरादित्य सिंधिया, खंडवा से अरुण यादव, झाबुआ से कांतिलाल भूरिया और छिंदवाड़ा से मुख्यमंत्री कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ मजबूत उम्मीदवार दिखाई देते हैं।

भाजपा ने इंदौर में शंकर ललवानी को उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस से पंकज संघवी हैं जो विधानसभा से लेकर लोकसभा तक हार चुके हैं। इंदौर संसदीय क्षेत्र की 9 विधानसभा सीटों में से ग्रामीण क्षेत्र की 4 सीट में से 3 सांवेर, राऊ और देपालपुर अभी कांग्रेस के पास हैं इसलिए इन वोटों को संघवी का माना जा रहा है। जबकि शंकर ललवानी को इंदौर शहर की 5 सीटों और ग्रामीण क्षेत्र की महू सीट के भाजपा के परंपरागत वोट बैंक से उम्मीद है।

मप्र में संगठन महामंत्री पर बड़ी जिम्मेदारी

भाजपा इस वक्त प्रदेश में नेतृत्व के संकट से भी गुजर रही है। चुनाव लड़वाने का जिम्मा मुख्य रूप से संगठन महामंत्री पर है। क्योंकि प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह जबलपुर में विवेक तन्खा से कड़े मुकाबले में फंसे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की भूमिका भी सीमित है। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का ध्यान मुरैना सीट निकालने में है। उन्हें पार्टी ने ग्वालियर से मुरैना में शिफ्ट किया है। भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय पश्चिम बंगाल में भाजपा के लिए दम लगा रहे हैं। इनकी अनुपस्थिति में पार्टी की उम्मीद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की सभाओं पर है। भाजपा को लगता है कि इनके दौरे होते ही 2014 की तरह प्रदेश में मोदी लहर शुरू होगी। कांग्रेस में प्रचार का जिम्मा मुख्यत: मुख्यमंत्री कमलनाथ ने संभाला है। ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर-चंबल में व्यस्त रहेंगे तो दिग्विजय भोपाल का चुनाव होने के बाद मालवा बेल्ट में लगेंगे।

मुद्दों का सवाल है तो जमीन पर अभी भी कर्जमाफी सबसे बड़ा मुद्दा है। भाजपा इसे छलावा बता रही है। कांग्रेस का कहना है कि लोकसभा चुनाव के बाद 2 लाख रुपए तक की कर्ज माफी होगी। केंद्र में कांग्रेस आई तो न्याय योजना के तहत 72 हजार का लाभ भी मिलेगा। ग्रामीण इलाकों में इस पर खासी चर्चा चल रही है। दूसरा मुद्दा कांग्रेस सरकार आने के बाद हो रही बिजली कटौती है। भाजपा  इसे कांग्रेस शासन से जोड़ रही है। पार्टी नेताओं का कहना है कि कांग्रेस के आते ही कटौती शुरू हो गई है। 1993 से 2003 तक कांग्रेस सरकार में कटौती आम बात थी। कांग्रेस का कहना है कि अघोषित कटौती भाजपा समर्थकों का राजनीतिक षड्यंत्र है।

मालवा-निमाड़: कुल 08 सीट- इंदौर, उज्जैन, धार, रतलाम-झाबुआ, मंदसौर, खंडवा, खरगोन, शाजापुर-देवास
कड़ा मुकाबला: इंदौर में सांसद सुमित्रा महाजन का टिकट कटने से मुकाबला कड़ा हो गया है। रतलाम-झाबुआ कांग्रेस की परंपरागत सीट है। यहां कांतिलाल भूरिया और पूर्व नौकरशाह जीएस डामोर के बीच संघर्ष की स्थिति है। देवास में कांग्रेस उम्मीदवार प्रहलाद सिंह टिपानिया और पूर्व जज महेंद्र सिंह सोलंकी ने मुकाबले को रोचक बना दिया है।

ग्वालियर-चंबल: कुल 04 सीट- ग्वालियर, गुना, भिंड, मुरैना
कड़ा मुकाबला: ग्वालियर में महापौर विवेक शेजवलकर का मुकाबला कांग्रेस के अशोक सिंह से है। अगर सिंधिया राजघराने का समर्थन मिला तो अशोक सिंह बेहतर स्थिति में आ जाएंगे।

बुंदेलखंड: कुल 04 सीट-खजुराहो, टीकमगढ़, सागर, दमोह
कड़ा मुकाबला: दमोह सीट पर सांसद प्रहलाद पटेल के सामने कांग्रेस से प्रताप सिंह हैं। यहां जातिगत समीकरण असर डालते हैं। क्षेत्र में ब्राह्मण और ठाकुर वोटर महत्वपूर्ण भूमिका में हैं।

महाकौशल: कुल 04 सीट- जबलपुर, छिंदवाड़ा, मंडला, बालाघाट
कड़ा मुकाबला: छिंदवाड़ा में नकुलनाथ के सामने भाजपा के नथन शाह कमजोर है। जबलपुर में विवेक तन्खा के आने से सीट हॉट हो गई है।

विन्ध्य: कुल 04 सीट- सीधी, सतना, रीवा, शहडोल
कड़ा मुकाबला: सीधी में कांग्रेस के अजय सिंह का सामना भाजपा की रीति पाठक से है। ठाकुर, ब्राह्मण और कुर्मी का समीकरण हावी है, ऐसे में चुनाव जातिगत आधार पर होगा।

मध्यभारत: कुल 5 सीट- भोपाल, होशंगाबाद, राजगढ़, विदिशा, बैतूल
कड़ा मुकाबला: यह क्षेत्र भी आरएसएस के प्रभाव वाला है और इसे हिंदुत्व का गढ़ माना जाता है। भाजपा को यहीं से उम्मीदें हैं।

  • मुद्दा: मालवा-निमाड़ में बेरोजगारी, महाकौशल में खेती-किसानी तो विन्ध्य में जाति पर डलेंगे वोट
  • 2014: भाजपा ने पहली बार 54.8% वोट लेकर 27 सीटें जीतीं। कांग्रेस को केवल 35.4% वोट मिले। वह केवल दो सीट पर सिमटकर रह गई।
  • 2009: कांग्रेस को 40.1% वोट और 12 सीटें मिलीं। भाजपा 43.4 फीसदी वोट लेकर 16 सीट पर सिमटी। बसपा को 5.9% वोट और एक सीट मिली थी।

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