रामायण में श्रीराम के वनवास प्रसंग में राजा दशरथ को एहसास हुआ कि अच्छे या बुरे कर्मों के फल से ही भाग्य बनता है। भाग्य कर्म से ही बनता है। हम जैसे काम करते हैं वैसा ही हमारे भाग्य का निर्माण होता है। हम अपने कर्म पर टीके रहें। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि हम कोई काम पूरी मेहनत से करते हैं, लेकिन फिर भी नतीजे विपरीत आते हैं। ऐसे में कुछ लोगों को कहने का मौका मिल जाता है कि हमारी किस्मत में ऐसा ही लिखा था। दरअसल जब भी किसी काम का नतीजा संतुष्टि देने वाला न हो तो अतीत में देखना चाहिए कि आपसे कहां चूक हुई थी।
रामायण में श्रीराम के वनवास प्रसंग से ये सीख सकते हैं
श्रीराम को वनवास हो चुका था। राम, सीता और लक्ष्मण तीनों वन के लिए जा रहे थे। तब राजा दशरथ इस पूरी घटना को नियति का खेल बता रहे थे। वो ये सब भाग्य का लिखा मान रहे थे। राम के जाने के बाद जब वे अकेले कौशल्या के साथ थे तो उन्हें अपनी गलतियां नजर आने लगी। उनसे युवावस्था में श्रवण कुमार की हत्या हुई थी, दशरथ को याद आ गया। बूढ़े मां-बाप से उनका एकलौता सहारा छिन गया था। ये सब उसी का परिणाम है। हर परिणाम के पीछे कोई कर्म जरूर होता है। बिना कर्म हमारे जीवन में कोई परिणाम आ ही नहीं सकता। अपने कर्मों पर नजर रखें। तभी आप भाग्य को समझ सकेंगे।
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