बीजिंग. चीन ने अपनी एक रिपोर्ट 'डेमोक्रेटिक रिफार्म ऑफ तिब्बत-60 ईयर्स ऑन' में दावा किया है कि दलाई लामा के तिब्बत छोड़ने के बाद वहां की अर्थव्यवस्था में 191% की बढ़ोतरी हुई। चीनी के दबाव की वजह से दलाई लामा 1959 में तिब्बत से चले गए थे। चीन ने उस समय और मौजूदा आंकड़ों की तुलना करने के बाद बुधवार को श्वेत पत्र जारी किया। इसमें तिब्बत की जीडीपी 1 लाख 38 हजार करोड़ रुपये आंकी गई है।
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दलाई लामा के तिब्बत छोड़ने के 60 साल बाद वहां अब खुशहाली है। लोगों ने अपनी कड़ी मेहनत से कृषि, पशुपालन जैसे व्यवसायों का कायापलट कर कर दिया।
कृषि, पशुपालन, मत्स्य पालन, वन और सेवा उद्योग की कीमत 1959 में 131 करोड़ रुपये आंकी गई। श्वेत पत्र में दावा किया गया है कि अब इनका मूल्य 13.7 हजार करोड़ रुपए तक पहुंच चुका है।
चीन का कहना है कि तिब्बत के उद्योग धंधे 1959 में बदहाल थे, लेकिन सतत प्रयास के चलते अब ये तेजी से तरक्की कर रहे हैं। एक लाख से ज्यादा लोगों की मेहनत से तिब्बत अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल बन चुका है।
चीन का कहना है कि 1959 की तुलना में तिब्बत बहुत आगे निकल चुका है। तिब्बत का आधारभूत ढांचा अब बेहतरीन स्थिति में है। वहां अब रेल, सड़क और हवाई मार्ग जैसी सुविधाएं हैं।
बौद्ध धर्म के आध्यात्मिक गुरु 14वें दलाई लामा का जन्म 6 जुलाई 1935 को पूर्वोत्तर तिब्बत के ताकस्तेर क्षेत्र में हुआ था। उनका बचपन का नाम तेनजिन ग्यात्सो है। 1989 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया था।
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