चंडीगढ़ (ननु जोगिंदर सिंह). करीब 4 माह पहले चंडीगढ़ में रहने वाले देवेंद्र अग्रवाल को भोजन करते समय लौकी कुछ कड़वी लगी। उन्होंने उसे कच्चा खाकर भी देखा लेकिन उसका स्वाद ठीक नहीं था। तीन तक पेट भी खराब रहा। इलाज के लिए अपने ही कजिन डॉ.सचिन गुप्ता से परामर्श लेने पहुंचे। वहां उनका इलाज तो हुआ लेकिन एक योजना भी बन गई। योजना थी कि बाजार में मिलनी वाली सब्जियों में अब जमकर पेस्टीसाइड इस्तेमाल हो रहा है, इसलिए हमें खुद ही खेती कर सब्जी उगानी चाहिए।
दरअसल मोहाली के कैंसर स्पेशलिस्ट डॉ.सचिन गुप्ता खुद भी दूसरे लोगों से संपर्क में रहकर अपनी सब्जी उगाने की तैयारी कर रहे थे। इसके अब लगभग 20 परिवारों ने मिल कर एक ग्रुप बनाया और जमीन ठेके पर लेने की तैयारी शुरू की। ये तैयारियां चल ही रही थीं कि देखते-देखते इस समूह से 40 परिवार जुड़ गए। इन जैविक सब्जियों की खेती के लिए उन्होंने ना सिर्फ मजदूर रखे बल्कि खुद भी सभी अपनी-अपनी सुविधानुसार वहां पर काम करते हैं। इन 40 परिवारों में कई डॉक्टर्स, इंजीनियर और दूसरे प्रोफेशनल शामिल हैं। इन परिवारों ने करीब तीन एकड़ जमीन ली है जिसका सालभर का किराया 50 हजार रुपए होता है। खास बात यह है कि जमीन के मालिक खुद भी यहां की सब्जी खाते हैं। चार महीने बाद अब सब्जियां होनी शुरू हो गई हैं।
ग्रुप से जुड़ी इंजीनियर वंदना कहती हैं कि वह बेटी और पति के साथ हर सप्ताह खेत पर जाती हैं।
उनके युवा हो चुके बच्चों ने वहां पर खुद बीज भी लगाए। वे बताती हैं कि हर रविवार को कुछ परिवार इकट्ठे होकर वहां जाते हैं। इससे पिकनिक के साथ ही खेती भी हो जाती है। उन्होंने अब अपने घरों में भी मशरूम की खेती शुरू कर दी है। सभी परिवारों ने 15 हजार रुपए प्रति परिवार इकट्ठे किए थे। इसी फंड में से वर्कर्स, लीज वाले की पेमेंट और बीज-खाद आदि का काम करना शुरू किया है। चंडीगढ़, पंचकूला और मोहाली में पांच सेंटर्स पर ये सब्जियां पहुंचती हैं जो सभी परिवारों को नजदीक पड़ता है। गांव से ही आने वाले एक ड्राइवर को इसकी अदायगी की जाती है। सब मिल-जुल कर एक दूसरे तक पहुंचा देते हैं। वंदना कहती हैं कि बाजार से सब्जियां खरीदने पर भी लगभग इतना ही खर्च आता था। लेकिन अब ये मेथी, मूंगरे और मटर आदि लाते हैं तो परिवार के लोग खुश होकर खा लेते हैं।
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