भोपाल . अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स)। सालाना बजट करीब 300 करोड़ रुपए। अभी यहां 35 डिपार्टमेंट चल रहे हैं। अस्पताल में 540 बिस्तरों की सुविधा है और करीब 2000 मरीज यहां रोजाना इलाज के लिए पहुंचते हैं। भारी-भरकम बजट को खर्च करने के लिए तमाम तरह की सुविधाओं का दावा तो एम्स प्रबंधन करता है। लेकिन इन सबके बावजूद यहां सिर्फ एक एंबुलेंस है और उसमें भी लाइफ सपोर्ट सिस्टम नहीं है।
सोमवार शाम करीब 4 बजे एम्स में पदस्थ और अस्पताल परिसर के क्वाटर्स में ही रहने वाले डॉक्टर रमेशचंद चौहान को हार्ट अटैक आता है। परिजन एम्स में एंबुलेंस के लिए कॉल करते हैं लेकिन ड्राइवर नहीं होने के कारण यह सुविधा नहीं मिल पाती है। ऐसे में परिजन पड़ोसियों की मदद से करीब 500 मीटर दूर एम्स की इमरजेंसी यूनिट में उन्हें लेकर पहुंचते हैं। इस पूरी मशक्कत में करीब 30 मिनट का समय लग जाता है और इलाज के दौरान रात करीब 12:30 बजे डॉक्टर की मौत हो जाती है।
अब सवाल उठता है कि तमाम सुविधाओं का दावा करने वाले एम्स के पास सिर्फ एक एंबुलेंस है और वो भी समय पर मरीजों को नहीं मिल पाती है। डॉ. चौहान की मौत के बाद मंगलवार को एम्स प्रबंधन ने आनन-फानन में बैठक बुलाई और तीन एंबुलेंस खरीदने पर विचार-विमर्श किया गया। बैठक में तय किया गया है कि तीन एंबुलेंस 10 साल के लिए अाउटसोर्स की जाएंगी। इसके लिए 36 लाख का प्रावधान करने की योजना है।
सिर्फ 500 मी. का था फासला, देर रात इलाज के दौरान मौत : अस्पताल से करीब 500 मीटर की दूरी पर स्थित स्टाफ क्वार्टर में 40 वर्षीय डॉ. रमेशचंद चौहान रहते थे। वे एम्स के कम्युनिटी मेडिसिन विभाग में पदस्थ थे। उनकी पत्नी भी डॉक्टर है। साेमवार शाम करीब 4 बजे डॉ. चौहान को सीने में अचानक तेज दर्द होता है।
उनकी पत्नी तुरंत उन्हें सीपीअार देती हैं और 9 वर्षीय बेटी को मदद के लिए पड़ोस में भेजती है। इसी दौरान एम्स की एंबुलेंस केे लिए काॅल भी किया जाता है लेकिन ड्राइवर न होने एंबुलेंस नहीं पहुंचती है। ऐसे में पड़ोसी कार से डॉ. चौहान को लेकर एम्स की इमरजेंसी यूनिट में पहुंचे थे।
इस पूरी मशक्कत में करीब आधा घंटा लगा। डॉक्टरों ने सीपीआर किया ताे डॉ. चौहान की हालत में सुधार भी हुआ था, लेकिन इलाज के दौरान रात करीब साढ़े बारह बजे उनकी मौत हो गई। डॉ. चौहान मूलत: पलवल, हरियाणा के रहने वाले थे। मंगलवार दोपहर करीब साढ़े ग्यारह बजे परिजन उनके शव को हरियाणा के लिए लेकर रवाना हो गए।
अभी सिर्फ योजना के स्तर पर है एंबुलेंस खरीदी... अस्पताल प्रबंधन ने महीनेभर पहले चार एंबुलेंस की सुविधा शुरू करने की योजना बनाई थी। अाउटसोर्स के तहत आने वाली एंबुलेंस में दो एडवांस लाइफ सपोर्ट वाली एंबुलेंस भी आनी थी। इसके लिए दो महीने की समय सीमा तय की गई थी। लेकिन, अब तक एंबुलेंस नहीं आई हैं।
जितनी जल्दी अस्पताल पहुंचे उतना बेहतर : जीएमसी के कार्डियोलॉजी डिपार्टमेंट के पूर्व प्रोफेसर डॉ. योगेश वर्मा ने बताया कि सीने में दर्द, पसीना आना, बाएं हाथ में दर्द, घबराहट के साथ सांस फूलना। ऐसा हार्ट अटैक के दौरान होता है। व्यक्ति को अगर इस तरह की शिकायत हो रही है, तो वह तत्काल नजदीकी अस्पताल में जाकर जांच कराए। मोटापा, डायबिटीज, लो और हाई ब्लड प्रेशर एवं जिनके परिजनों की कार्डियक अटैक की हिस्ट्री है, उन्हें हार्ट अटैक के लक्षणों को लेकर अलर्ट रहने की जरूरत है।
एंबुलेंस जाती तो भी इतना ही समय लग जाता
सवाल : एम्स में एंबुलेंस के लिए कॉल किया, लेकिन नहीं पहुंची?
जवाब : एंबुलेंस तो अस्पताल में थी, लेकिन ड्राइवर नहीं होने के कारण नहीं पहुंच पाई।
सवाल : क्या इस कारण डॉ. चौहान को इलाज मिलने में देरी नहीं हुई?
जवाब : एंबुलेंस जाती तो भी आने-जाने में समय तो लगता। उनकी पत्नी पड़ोसियों की मदद से उन्हें लेकर एम्स आ गई थीं।
सवाल : इतने बड़े अस्पताल में सिर्फ एक एंबुलेंस, क्या इनकी संख्या नहीं बढ़नी चाहिए?
जवाब : हां, एंबुलेंस खरीदी जा रही हैं, प्रक्रिया जारी है, जल्द एंबुलेंस आ जाएंगी।
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