भोपाल. नर्मदा, चंबल, सोन व तवा समेत अन्य नदियों से रेत निकालने का काम एक बार फिर ठेके पर देने की तैयारी है। 14 महीने पहले नवंबर 2017 में तत्कालीन शिवराज सिंह सरकार ने रेत खनन का काम पंचायतों को सौंपा था। रॉयल्टी की राशि भी पंचायतों को जाने लगी, लेकिन कांग्रेस सरकार बनते ही दो माह के भीतर ही यह पॉलिसी बदल रही है।
खनिज मंत्री प्रदीप जायसवाल के सामने विभाग ने राजस्थान और तेलंगाना समेत तीन मॉडल का प्रेजेंटेशन दिया है। दो फरवरी को मुख्य सचिव एसआर मोहंती सामने इसे रखा जाएगा। इसके बाद किसी एक मॉडल को मुख्यमंत्री कमलनाथ से चर्चा के बाद मंजूरी दे दी जाएगी। खनिज मंत्री प्रदीप जायसवाल का कहना है कि पंचायतों के हाथ में रेत का काम जाने के बाद से इसकी चोरी बढ़ गई है। जनता को कोई फायदा नहीं हो रहा है।
सरकार का मानना है कि खदानों का काम पंचायतों को सौंपने से सरकार को हर साल मिलने वाले 250 करोड़ रुपए के रेवेन्यू का नुकसान हो रहा है। इसी को देखते हुए रेत की नई पॉलिसी लाई जा रही है।
अभी 200 से ज्यादा चलित रेत खदानें, बंद खदानें भी शुरू होंगी :
इस समय प्रदेश में 200 से ज्यादा चलित रेत खदान हैं। इसमें से कुछ बड़ी खदानें ऐसी हैं, जिन्हें तत्कालीन शिवराज सरकार में 2019, 2020 अथवा 2021 तक के लिए नीलाम किया गया है। इतनी ही संख्या में ऐसी खदानें भी हैं, जो पर्यावरण मंजूरी नहीं मिलने के कारण बंद पड़ी हैं। कांग्रेस सरकार इसे भी तत्काल चालू करना चाह रही है।
15 साल पहले दिग्विजय शासन में ठेके देते थे :
जनपद वार नीलामी अथवा टेंडर से रेत के ठेके दिए जाते थे। इसी मॉडल पर जाने का विचार किया जा रहा है। टेंडर प्रक्रिया अपनाई जाए या खुली नीलामी हो, इस पर मंथन जारी है।
मशीनें पूरी तरह प्रतिबंधित रहेंगी :
‘पंचायतों में जाने से रेत की चोरी बढ़ गई है। न जनता को फायदा है और न ही सरकार को। रेत माफिया लाभ ले रहे हैं। इस खराब हो चुकी व्यवस्था को ही सुधारने जा रहे हैं। लेकिन नई व्यवस्था में भी नदियों में पोकलेन या अन्य मशीनें नहीं उतरेंगी। डंपर भी नहीं जाएगा। ट्रैक्टर ट्रालियां जाएंगी और पंचायतों व स्थानीय लेबर से ही रेत निकलवानी पड़ेगी। रेत कारोबारियों का सिंडीकेट न बने, इसके प्रावधान भी नई पॉलिसी में होंगे।’ - प्रदीप जायसवाल, मंत्री, खनिज
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