चाणक्य नीति के सालहवें अध्याय के पंद्रहवें श्लोक में मांगने वाले लोगों को सबसे ज्यादा निंदित या हल्का माना गया है। चाणक्य बताते हैं कि बिना सोचे-समझे किसी से कोई भी चीज नहीं मांगनी चाहिए। दोस्ती या कोई भी रिश्ता हो, ऐसी आदत वालों से अन्य लोग भी चिढ़ने लगते हैं और बात करने से भी कतराते हैं। ऐसे लोगों का अपमान करने से कोई भी नहीं चुकता। चाणक्य नीति में इस तरह के लोगों को तिनके और रुई से भी हल्का बताया है।
याचक से सभी डरते हैं। सगे-संबंधित और मित्र भी उसका साथ छोड़ देते हैं। अभावग्रस्त लोगों की सहायता करने से लोग कतराते हैं। चाणक्य कहते हैं कि सबसे हल्का तिनका होता है, वहीं तिनके से भी हल्की रुई होती है। लेकिन इन दोनों से भी हल्का याचक होता है। यानी कोई भी चीज मांगने वाला। हवा का एक झोंका तिनके और रुई को उड़ा सकता है, लेकिन मांगने वाले को नहीं उड़ा सकता। इस पर चाणक्य मांगने वाले लोगों की निंदा करते हुए कहते हैं कि हवा भी ये सोचकर अपना रूख मोड़ लेती है कि कहीं याचक कुछ मांग न लें। इस तरह मांगने वाले लोग हर जगह अपमानित होते रहते हैं।
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