नई दिल्ली. मोदी सरकार ने अयोध्या मामले में मंगलवार को एक बड़ा कदम उठाया। उसने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर कर मांग की कि अयोध्या की विवादित जमीन छोड़कर 67 एकड़ की गैर-विवादित जमीन उनके मूल मालिकों को लौटा दी जाए। विवादित ढांचा गिराए जाने से पहले 1991 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने विवादित स्थल और उसके आसपास की करीब 67 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर यथास्थिति बरकरार रखने के निर्देश दिए थे। विश्व हिंदू परिषद ने मोदी सरकार के इस कदम का स्वागत किया है। संगठन ने कहा है कि सरकार ने अब सही दिशा में कदम उठाया है।
अयोध्या में 2.77 एकड़ की जमीन पर राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद का विवाद है। रामलला अभी इसी जमीन पर विराजमान हैं। केंद्र ने इसी 2.77 एकड़ के आसपास की 67 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था। केंद्र ने अपनी याचिका में कहा है कि 1991 में अधिग्रहित की गई जमीन उनके मूल मालिकों को लौटाने की मांग राम जन्मभूमि न्यास की है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने 30 सितंबर 2010 को 2:1 के बहुमत से 2.77 एकड़ जमीन के मालिकाना हक को लेकर फैसला सुनाया था। यह जमीन तीन पक्षों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला में बराबर बांट दी गई थी। हिंदू एक्ट के तहत इस मामले में रामलला भी एक पक्षकार हैं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा था कि जिस जगह पर रामलला की मूर्ति है, उसे रामलला विराजमान को दे दिया जाए। राम चबूतरा और सीता रसोई वाली जगह निर्मोही अखाड़े को दे दी जाए। बचा हुआ एक-तिहाई हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया जाए।
इस फैसले को निर्मोही अखाड़े और सुन्नी वक्फ बोर्ड ने नहीं माना और उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। शीर्ष अदालत ने 9 मई 2011 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट में यह केस तभी से लंबित है।
सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय बेंच मंे इसकी 29 जनवरी को होने वाली सुनवाई भी टाल दी गई थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जस्टिस रंजन गोगोई ने 25 जनवरी को अयोध्या विवाद की सुनवाई के लिए बेंच का पुनर्गठन किया था। अब बेंच में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर शामिल हैं।
इससे पहले 10 जनवरी को 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने इस मामले पर सुनवाई शुरू की थी, लेकिन कोर्ट में सुनवाई शुरू होते ही सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील राजीव धवन ने पांच जजों की बेंच में जस्टिस यूयू ललित की मौजूदगी पर सवाल उठाए। इसके बाद जस्टिस ललित खुद ही बेंच से अलग हो गए।
Comment Now