नई दिल्ली. चुनाव से पहले मोदी सरकार की लोक-लुभावन घोषणाओं से देश की अर्थव्यवस्था पर 1 लाख करोड़ रुपए का बोझ बढ़ सकता है। न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने सूत्रों के हवाले से यह रिपोर्ट दी है। इसके मुताबिक अतिरिक्त खर्चों और राजस्व के नुकसान का बोझ चुनाव के बाद नई सरकार को उठाना पड़ेगा। चुनाव पूर्व घोषणाओं की वजह से सरकार की वित्तीय घाटे को कम करने की योजना में भी देरी के आसार हैं।
सरकारी सूत्रों के हवाले से रॉयटर्स ने जानकारी दी है कि अंतरिम बजट में सरकार किसानों के लिए बड़े ऐलान कर सकती है। किसानों के खातों में सीधे रकम ट्रांसफर और ब्याज मुक्त कर्ज की घोषणा किए जाने के आसार हैं।
ब्याज मुक्त कर्ज की योजना लागू की जाती है तो सरकारी खजाने पर सालाना 12,000 करोड़ रुपए का भार बढ़ेगा। इसके अलावा दूसरी योजनाओं के लिए 40,000 करोड़ रुपए की जरूरत पड़ेगी।
रिपोर्ट के मुताबिक सरकार किसानों को प्रति हेक्टेयर जमीन के हिसाब से 2,000 से 4,000 रुपए देने की योजना पर भी विचार कर रही है। यह स्कीम फायदेमंद साबित होगी लेकिन बेहद खर्चीली भी होगी। सरकार इस योजना को लागू करती है तो ब्याज मुक्त कर्ज जैसी दूसरी योजनाएं नहीं लाएगी।
निजी और व्यावसायिक टैक्स छूट की घोषणाओं से 25,000 करोड़ रुपए तक का वित्तीय घाटा उठाना पड़ सकता है। सीमेंट पर जीएसटी की दर 28% से घटाकर 18% किए जाने का प्रस्ताव है। ऐसा करने से सालाना 13,000 करोड़ रुपए का राजस्व घाटा होगा।
पिछले महीने राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा की हार के बाद मोदी सरकार की चिंताएं बढ़ी हैं। फसलों की कम कीमतों की वजह से किसानों की नाराजगी विधानसभा चुनावों में अहम मुद्दा रहा था।
भाजपा के आर्थिक मामलों के प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने रॉयटर्स से बातचीत में कहा कि किसानों की समस्याओं का समाधान सबसे अहम है। इकोनॉमी में वित्तीय घाटे जैसे पैमाने नहीं बल्कि ग्रोथ देखी जाती है।
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