रायपुर (पी. श्रीनिवास राव/कौशल स्वर्णबेर). रायपुर के भनपुरी में एक चाय की दुकान पर लोगों का जमावड़ा है। चर्चा विधानसभा चुनावों और आने वाले लोकसभा चुनावों की हो रही है। वहीं पर खड़े गोपाल कहते हैं कि सांसद तो पांच साल में एक बार नजर आते हैं इसलिए इस बार यहां भी जनता बदलाव करेगी। टी राव नोटबंदी और जीएसटी से नाराज नजर आते हैं। कहते हैं कि इस सरकार में दुकानदारी करना मुश्किल हो गया है। बे
रोजगारी, महंगाई, गैस-पेट्रोल के दामों की भी चर्चा हो रही है। सभी को लगता है कि जैसे विधानसभा में बदलाव हुआ, लोकसभा चुनावों में भी रुख ऐसा ही रहेगा।
पुराना ट्रेंड देखें तो राज्य बनने के बाद हुए तीनों लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी है। 11 में से 10 सीटें जीतकर भाजपा ने तीनों ही बार बेहतर प्रदर्शन किया है। पिछले चुनाव में रायपुर से रमेश बैस, राजनांदगांव से अभिषेक सिंह, बस्तर से दिनेश कश्यप, रायगढ़ से विष्णुदेव साय, बिलासपुर से लखनलाल साहू, और जांजगीर चांपा से कमला देवी पाटले लोकसभा पहुंचीं। जबकि सिर्फ दुर्ग से ही ताम्रध्वज साहू ने एक सीट जीतकर कांग्रेस की इज्जत बचा ली थी।
पिछले तीन चुनावों से लोकसभा में बेहतर प्रदर्शन कर रही भाजपा की चिंता इस बार बढ़ गई है, क्योंकि इस बार विधानसभा चुनाव में आए परिणामों के बाद से भाजपा पर अपनी सीटें बचाने का दबाव बढ़ गया है। जबकि कांग्रेस अभी से सभी 11 सीटें जीतने का दावा कर रही है।
राजनीतिक विश्लेषक दिवाकर मुक्तिबोध का कहना है कि छत्तीसगढ़ में आए विधानसभा चुनाव परिणाम का असर लोकसभा चुनाव में भी दिखेगा, क्योंकि इसका असर 6 माह तक जरूर रहेगा और निश्चित ही कांग्रेस प्लस में रहेगी। तीनों राज्यों में किसानों के मुद्दे के कारण बैकफुट पर गई भाजपा अब देशभर में किसानों का कर्जा माफ करने पर विचार कर रही है, लेकिन इसका असर छत्तीसगढ़ में नहीं होगा।
क्षेत्रीय दलों का भी सीटों के गणित पर असर रह सकता है।मुक्तिबोध का मानना है कि छत्तीसगढ़ में पहली बार मैदान में उतरे क्षेत्रीय दलों ने जिस तरह प्रदर्शन करते हुए 7 सीटें जीती हैं, उससे यह जरूर माना जा सकता है कि वे अपने प्रभाव वाली बस्तर और बिलासपुर लोकसभा सीट पर भाजपा और कांग्रेस के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती हैं। लेकिन वे सीटें जीतेगी या नहीं इस पर कुछ कह पाना अभी संभव नहीं है।
हाल में हुए विधानसभा चुनाव में मिले वोटों के गणित से भी साफ है कि छत्तीसगढ़ की बिलासपुर लोकसभा सीट पर ही भाजपा बढ़त में दिख रही है जबकि शेष सभी 10 सीटों पर भाजपा के 50 हजार से ढाई लाख वोट कम हो गए। यही भाजपा के लिए सबसे बड़ा चिंता का विषय है। भाजपा इसी गड्ढे को पाटना चाह रही है। सबसे ज्यादा मुसीबत तो कांकेर, रायगढ़ और सरगुजा में है जहां पर भाजपा दो लाख वोटों से पीछे रही। जबकि चार सीटों पर एक लाख से ज्यादा वोट कांग्रेस के खाते में गए। भाजपा विधानसभा चुनाव में हुई इसी वोटिंग को देखकर अभी से लोकसभा की तैयारी में जुट गई है।
जहां तक सवाल जातिगत समीकरणों का है तो राज्य में 11 लोकसभा सीटों में से चार अनुसूचित जनजाति और एक अनुसूचित जाति की सीटें हैं, जबकि 6 सीटें सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित हैं। इनमें से दुर्ग सीट ही कांग्रेस के पास है। प्रदेश की बस्तर आैर जांजगीर लोकसभा सीटों में आदिवासी आैर अनुसूचित जाति वर्ग के वाेटर ज्यादा हैं। यहां पर क्षेत्रीय दल के नेता इन वाेटरों को अपने पक्ष में आकर्षित कर सकते हैं।
यह रहेंगे प्रमुख मुद्दे
लोकसभा चुनाव 2014 में सीटों की स्थिति
लोकसभा सीटें | 11 |
भाजपा | 10 |
कांग्रेस | 01 |
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