स्टार रेटिंग | 2.5/5 |
स्टारकास्ट | शाहरुख खान, अनुष्का शर्मा, कटरीना कैफ, तिग्मांशु धूलिया और जीशान अयूब |
डायरेक्टर | आनंद एल. राय |
प्रोड्यूसर | गौरी खान |
म्यूजिक | अजय-अतुल |
जॉनर | ड्रामा |
रनिंग टाइम | 2 घंटे 44 मिनट |
शुभा शेट्टी/बॉलीवुड डेस्क.जीरो में अच्छा पोटेंशियल था। यहां सुपरस्टार शाहरुख खान अपनी रोमांटिक स्टार की इमेज से निकल कर बौने बने हैं, और डायरेक्टर आनंद एल राय ने अपने कंफर्ट ज़ोन से बाहर निकलकर कुछ अलग करने की कोशिश की। लेकिन दोनों ही सफल नहीं हो सके। स्टार और डायरेक्टर ने फिल्म के आइडिया पर इस तरह काम किया कि यह बनावटी लगने लगती है।
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फिल्म की शुरुआत बउआ (शाहरुख खान) की दुनिया से होती है। बउआ बौना है और वह जिस परिस्थिति में है उसके लिए भगवान और अपने पेरेंट्स (तिग्मांशू धूलिया और शीबा चड्ढा) से खफा है। उसका एक बचपन का दोस्त (जीशान अयूब) है। बउआ शारीरिक चुनौतियों की वजह से अपनी महत्वाकांक्षाओं को सीमित नहीं होने देता। वह एक स्टार बबिता कुमारी (कैटरीना कैफ) के साथ रहने का सपना देखता है। इसी बीच पर आफिया भिंडर (अनुष्का शर्मा) नाम की वैज्ञानिक से मिलता है, जो कि सेरिब्रल पल्सी से पीड़ित हैं। इसके पहले कि आप उसे जान पाते हो बउआ रोमेंटिक ट्राएंगल में फंस जाता है। फिल्म की कहानी हिमांशु शर्मा ने लिखी है।
बउआ का किरदार सम्माननीय नहीं है। वह अभिमानी, भ्रमित होने के साथ ही उन लोगों के लिए बुरा है, जो उसे प्यार करते हैं। इसलिए उसके इमोशंस भी आपको झंझोड़ते नहीं हैं। वह हमेशा शराब पीने वाली एक्ट्रेस बबीता कुमारी के करीब है, जिसका दिल टूटा हुआ है। फिल्म का फर्स्ट हाफ आपको बांधे रखता है, लेकिन सेकंड हाफ में जब मंगल ग्रह पर रॉकेट में चिंपाजी को भेजने की बारी आती है और वो न जाने के लिए हरकतें करने लगता है तो फिल्म वियर्ड लगने लगती है। इसके बाद साइंटिस्ट विकल्प के तौर पर ह्यूमन वॉलेंटियर की तलाश करते हैं और इसके लिए बउआ कतार में है। लेकिन अचानक से कुछ ऐसा होता है जिसपर यकीन करना मुश्किल है।
फिल्म में शाहरुख खान भले ही बौने बने हैं लेकिन उनका अट्रेक्शन और एनर्जी बरकरार है। अनुष्का शर्मा ने किरदार को निभाने के लिए बहुत मेहनत की है लेकिन उनकी परफॉरमेंस कमजोर है। कटरीना ने सेंसटिव परफॉर्मेंस दी है। उन्होंने ऐसी लड़की किरदार निभाया है, जिसका लाइफ पर कोई कंट्रोल नहीं है और जो नहीं जानती कि आगे क्या होने वाला है।
आनंद एल. राय के किरदारों के बीच वो कनेक्शन नहीं दिखाई देता, जिसकी उम्मीद की थी। फिल्म का अंत खीझ दिलाने वाला और दिल दुखाने वाला है। यहां तक कि पूरी फिल्म इंडस्ट्री द्वारा फिल्म में किए गए छोटे-छोटे रोल भी इसका भला नहीं कर पाते।
फिल्म का बेस्ट पार्ट इसका म्यूजिक है जिसे नेशनल अवॉर्ड विनर म्यूजिक डायरेक्टर्स अजय और अतुल ने दिया है। अगर आप शाहरुख खान के फैन हैं तो यह फिल्म एक बार देख सकते हैं।
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