नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने अदालत की निगरानी में राफेल डील की जांच की मांग से जुड़ी सभी याचिकाएं शुक्रवार को खारिज कर दीं। कोर्ट ने कहा कि राफेल विमान खरीद की प्रक्रिया में शक की कोई गुंजाइश नहीं है। इसमें कारोबारी पक्षपातों जैसी कोई बात सामने नहीं आई है। 14 नवंबर को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की बेंच ने याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले की 3 अहम बातें
दोबारा अपील की जा सकती है
याचिकाकर्ता प्रशांत भूषण ने कोर्ट के फैसले को गलत बताया। उन्होंने कहा कि एयरफोर्स ने कभी नहीं कहा कि 36 राफेल चाहिए। उससे पूछे बगैर मोदीजी ने फ्रांस जाकर समझौता कर लिया। तय कीमत से ज्यादा पैसा दिया गया। विमान की कीमतों पर सीलबंद लिफाफे में रिपोर्ट कोर्ट को सौंपी गई। इसकी हमें कोई जानकारी नहीं दी गई। कोर्ट ने ऑफसेट पार्टनर चुनने के तरीके को भी गलत नहीं माना। उसका कहना है कि ऑफसेट पार्टनर दसौ ने चुना जबकि रक्षा सौदे में बिना सरकार की सहमति के कोई फैसला नहीं लिया जा सकता है। उन्होंने कहा कि पुनर्विचार याचिका दायर करने के बारे में तय किया जाएगा।
इन लोगों ने दायर की थीं याचिकाएं
इस सौदे में कथित अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए सबसे पहले वकील मनोहरलाल शर्मा ने जनहित याचिका दायर की थी। इसके बाद, एक अन्य वकील विनीत ढांडा ने याचिका दायर कर शीर्ष अदालत की निगरानी में इस सौदे की जांच कराने का अनुरोध किया था। इस सौदे को लेकर आप पार्टी के सांसद संजय सिंह फिर दो पूर्व मंत्रियों और भाजपा नेताओं यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी के साथ वकील प्रशांत भूषण ने भी एक अलग याचिका दायर की थी।
इस मामले में अधिवक्ता एमएल शर्मा, विनीत ढांडा ने याचिका दायर की थी। इसके बाद आप नेता संजय सिंह ने भी याचिका दायर की।
तीन याचिकाएं दायर होने के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और प्रशांत भूषण ने याचिकाएं दायर की थीं। इसमें कहा गया था कि अदालत सीबीआई को इस मामले में एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दे।
सरकार ने अदालत और याचिकाकर्ताओं को डील के संबंध में लिए गए फैसलों के दस्तावेज सौंपे थे। राफेल की कीमत को लेकर एक अलग सीलबंद दस्तावेज सुप्रीम कोर्ट को सौंपा गया था।
सरकार ने कोर्ट को बताया था कि राफेल विमान खरीदने का फैसला सालभर में 74 बैठकों के बाद किया गया।
सरकार ने बताया था कि 126 राफेल खरीदने के लिए जनवरी 2012 में ही फ्रांस की दैसो एविएशन को चुन लिया गया था। लेकिन, दैसो और एचएएल के बीच आपसी सहमति नहीं बन पाने से ये सौदा आगे नहीं बढ़ पाया।
सरकार ने कहा कि एचएएल को राफेल बनाने के लिए दैसो से 2.7 गुना ज्यादा वक्त चाहिए था।
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