मुंबई. अगले साल 1 अप्रैल से होम और ऑटो लोन पर लगने वाले ब्याज की व्यवस्था बदल जाएगी। अभी बैंक खुद ही तय करते हैं कि ब्याज दर कब बढ़ानी-घटानी है। लेकिन, अप्रैल से वे आरबीआई द्वारा रेपो रेट घटाने के तुरंत बाद ब्याज दर घटाने को बाध्य होंगे। यही व्यवस्था छोटे कारोबारियों को दिए जाने वाले कर्ज पर भी लागू होगी।
अभी बैंक एमसीएलआर यानी मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड बेस्ड लेंडिंग रेट के आधार पर कर्ज देते हैं। अब इसकी जगह नया मानक होगा, जिसे बैंक खुद नहीं तय कर सकेंगे। ये मानक या तो रेपो रेट के हिसाब से तय होगा या सरकारी बॉन्ड पर मिलने वाले रिटर्न के आधार पर। इस बारे में विस्तृत दिशा-निर्देश इस महीने के अंत तक जारी होंगे। आरबीआई का कहना है कि इससे लोन देने की व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी। ये व्यवस्था फ्लोटिंग रेट पर लिए गए सभी तरह के कर्ज पर लागू होगी।
मानक तय करने के चार विकल्प होंगे
बदलाव की जरूरत क्यों पड़ी?
बैंक रेपो रेट बढ़ने पर तो ब्याज दर तत्काल बढ़ा देते हैं, लेकिन रेपो रेट कम होने पर वे कर्ज तत्काल सस्ता नहीं करते। इसलिए पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन ने हर महीने एमसीएलआर तय करने की व्यवस्था लागू की थी। मौजूदा गवर्नर उर्जित पटेल भी कह चुके हैं कि बैंक ग्राहकों को पूरा फायदा नहीं दे रहे हैं।
लोगों को नुकसान कैसे हो रहा है?
अप्रैल 2016 में रेपो रेट 0.25% घटकर 6.5% और अक्टूबर में 6.25% हुआ। यानी कुल 0.5% की कटौती हुई। लेकिन, अप्रैल से दिसंबर 2016 तक बैंकों ने एमसीएलआर 0.3% ही घटाया। इससे पहले बेस रेट की व्यवस्था में भी ऐसा ही होता था।
अब फायदा कैसे होगा?
रेपो रेट के आधार पर ब्याज दर भी बदल जाएगी। यानी रेपो रेट घटने पर बैंकों को तत्काल ब्याज घटाना होगा। अगर वे सरकारी बॉन्ड के आधार पर दर तय करते हैं तो भी तत्काल फायदा देना होगा। क्योंकि, रेपो रेट बदलने का बॉन्ड मार्केट पर तत्काल असर होता है।
अभी बैंक ब्याज कैसे तय करते हैं?
बैंक एमसीएलआर के आधार पर कर्ज दे रहे हैं। हर महीने इसकी घोषणा करते हैं। गणना भी खुद करते हैं। इसलिए यह पारदर्शी नहीं है।
क्या पुराने ग्राहकों को लाभ होगा?
तत्काल नहीं। पुराने ग्राहकों को अभी इंतजार करना पड़ेगा। एमसीएलआर की व्यवस्था में भी दर कुछ समय के लिए फिक्स्ड होती है। जैसे, अभी एक महीने से तीन साल तक के लिए फिक्स्ड है।
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