कोलंबो. श्रीलंका की एक अदालत ने सोमवार को प्रधानमंत्री के रूप में महिंदा राजपक्षे के अधिकार निलंबित कर दिए। साथ ही, आदेश दिया कि वैधता साबित होने तक उनकी कैबिनेट काम नहीं कर सकती है। विपक्षी दलों ने अदालत से अपील की कि करीब एक महीने पहले राजपक्षे को विवादास्पद रूप से प्रधानमंत्री नियुक्त करके राजनीतिक संकट को जन्म दिया गया। अगर उन्हें सरकार का मुखिया बने रहने की अनुमति दी गई तो श्रीलंका को ‘गंभीर नुकसान’ हो सकता है।
अधिकांश सांसदों ने अदालत को बताया कि संसद में अविश्वास प्रस्ताव पेश होने के बाद भी राजपक्षे प्रधानमंत्री का कार्यभार संभाल रहे हैं। वकील और सांसद एमए सुमनथिरन ने बताया कि राजपक्षे के खिलाफ 122 सांसदों ने याचिका दायर की है। दो बार अविश्वास प्रस्ताव पास होने के बाद राजपक्षे प्रधानमंत्री बने रहने के लिए वैध नहीं हैं।
श्रीलंका में राजनीतिक संकट की शुरुआत 26 अक्टूबर को हुई थी। उस दौरान राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे की सरकार को बर्खास्त करके महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया।इसके बाद सिरिसेना ने संसद भंग कर दी और राजपक्षे को बहुमत साबित करने के लिए वक्त दे दिया। हालांकि पिछले महीने संसद में दो बार राजपक्षे के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पास हुआ, लेकिन उन्होंने पद छोड़ने से इनकार कर दिया।
विक्रमसिंघे ने अपनी बर्खास्तगी को गलत बताते हुए प्रधानमंत्री आवास खाली करने से इनकार किया। ऐसे में राष्ट्रपति ने 5 जनवरी को आकस्मिक चुनाव कराने का फैसला सुनाया। यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। अदालत ने राष्ट्रपति सिरिसेना का फैसला पलटते हुए आकस्मिक चुनाव पर रोक लगा दी। ऐसे में राजपक्षे ने सिरिसेना की पार्टी से 50 साल पुराना गठबंधन तोड़ दिया और पिछले साल बनी श्रीलंका पीपुल्स पार्टी में शामिल हो गए।
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