Friday, 6th June 2025

इंटरव्यू / नोटबंदी के कुछ समय बाद ही समझ आया कि मेरा भाग्य खुल गया है -विजय शेखर

Fri, Nov 30, 2018 11:03 PM

 

  • मुझे यह समझ नहीं आया कि 500 और 1000 के नोट बंद होने पर क्या होगा। 
  • हमने तत्काल मोदी के फोटो के साथ अखबारों में विज्ञापन जारी करके मोदी का धन्यवाद देने का निश्चय किया

 

भोपाल. प्रेरणा दिवस के उपलक्ष्य में अायाेजित कार्यक्रम में मॉडरेटर सिद्धार्थ जराबी के साथ पेटीएम के संस्थापक विजय शेखर शर्मा का संवाद।

 

सवाल- आप स्वयं को कैसे डिस्क्राइब करोगे? 
विजय-कैपटलिटस्ट हिप्पी। हिप्पी इसलिए कि वह आपकी तरह फार्मल ड्रेस नहीं पहनता। वह पार्टी में संस्कृत में गाने गाता है। 

 

सवाल- आप नो एक्जिट की बात करते रहते हैं। नो एक्जिट महाभारत में हुआ था अभिमन्यू का। क्या आप इससे नो एक्जिट मानते हैं?

विजय -नहीं। हमारे लिए एक्जिट रूट के मायने हैं। अगर आपने ओखली में सिर दिया है तो ओखली से निकलने का रास्ता बना लें।  

 

सवाल-वारेन बूफे और जेक मा ने आपकी ही कंपनी में लाखों डॉलर क्यों निवेश किए? 
विजय-भगवान की कृपा है। मैं चाहूंगा कि यह कृपा ऐसी ही बनी रहे। मैं ऊपर वाले से कहता हूं कि हे ऊपर वाले हमेशा ऐसी ही कृपा बनाए रखना। अगर कुछ होना हो तो पहले ही बता देना। मैं खुद ही नया रास्ता बना लूंगा। फिर मुझसे बेहतर कहने वाले तुमसे बेहतर सुनने वाले दूसरे कई आ जाएंगे।  

 

सवाल- अच्छा आप यह बताएं कि आपकी सफलता में भाग्य का कितना और परिश्रम का कितना योगदान है? 
विजय-अगर आप भाग्यशाली होंगे तो कठिन परिश्रम करके भाग्य का दरवाजा अपने आप खोल लेेंगे। 8 नवंबर 2016 को जो हुआ वह मेरा भाग्य था, उसके बाद मैने जो किया वह मेरा परिश्रम था।  

 

सवाल-आप नोटबंदी वाली रात यानी 8 नवंबर 2016 को कहां थे? 
विजय-पता नहीं यह सवाल कब मेरा पीछा छोड़ेगा। मैं फोर्ब्स के कार्यक्रम में था। वहां मुझे एक अवार्ड मिलने वाला था। में आरपीजी के हर्ष (गोयनका) के साथ बैठा था। मेरा फोन मेरे पास नहीं था। मैंने कुछ देर बाद देखा तो उसमें 70 मेसेज थे। ये अलग-अलग जगह से आए थे। इनमें कहा गया था कि 500 और 1000 के नोट बंद हो गए। मुझे कुछ समझ नहीं आया कि इसके मायने क्या हैं। मैंने हर्ष से पूछा उसे भी कुछ समझ नहीं आया कि आखिर नोट कैसे बंद हो सकते हैं। उस समय मंच पर सेबी के तात्कालीन चेयरमैन एम दामोदरन कार्पोरेट गवर्नेंस पर भाषण दे रहे थे। उसके बाद एक इंटरेक्टिव सेशन था। उसमें मैने उन्हीं से पूछ लिया कि सर प्रधानमंत्री ने 500 और 1000 के नोट बंद कर दिए हैं। इसका कार्पोरेट गवर्नेंस पर क्या असर होगा? उन्होंने, कहा यह सवाल आउट ऑफ सिलेबस है। वहां कार्पोरेट वकील जिया मोदी भी थी। मैंने उनसे पूछा, तो उन्होंने बस इतना बताया कि पुराने नोट बंद हो रहे हैं। अब पेमेंट कैसे होगा, चेक और ड्रॉफ्ट से। अचानक मेरा दिमाग खुला। मेरे मुह से अचानक निकला, वाह यह मेरे लिए रॉकेट है। 

 

सवाल-अब आपका अगला मुकाम क्या होगा? 
विजय-हमारे देश में कई टेक्नोलॉजी कंपनियां हैं लेकिन कोई कंज्यूमर प्रॉडक्ट टेक्नोलॉजी ऐसी नहीं है जो हमने बनाई हो। हम जिन टेक्नोलॉजी की बात करते हैं वे या तो कोरियन हैं,जापानीज हैं या अमेरिकन। हम चाहते हैं कि अमेरिका में सेनफ्रांसिस्को में लोग पेमेंट करें और कहें कि यह प्रॉडक्ट इंडियन हैं। 

 

गिरीश अग्रवाल - जैसा आपने बताया कि आप ऐसे स्कूल में जाते वहां पर टाट फट्‌टी होती थी। दोस्तों के पास चप्पल नहीं होती थी।  अब आपकी कंपनी की कीमत 1 लाख करोड़ रुपए है। मुझे बताइए कि आपके जो स्कूल टाइम के दोस्त थे, रिश्तेदार थे। उनमें आज और उस वक्त में कुछ परिवर्तन दिखा आपको ।
विजय- देखिए, जब आप कुछ नहीं होते तो आपके दोस्त होते हैं। यह रियल फैक्ट है। जब आप कुछ हो जाते हैं तो आपको यह नहीं पता कि यह रियल फ्रेंड है या फिर बस ऐसे ही है। दुनिया यदि मिल भी जाए तो क्या है? यह वही वाला स्टेटमेंट है। 

 

गिरीश अग्रवाल - तो यह कहा जाए कि दोस्त दाेस्त न रहा ।
विजय- दोस्त दोस्त न रहा। यह बड़ा शब्द है। लेकिन मेरा कहना यह है कि जैसे गिरीश और मैं बहुत अच्छे दोस्त है। लेकिन, पता नहीं पैसे के फ्रेंड हैं या दोस्त दोस्त के। इसका मतलब यह है इसमें कि फ्रेंडशिप डिफ्रेंट हैं। 

 

 

गिरीश अग्रवाल - अच्छे लोग अच्छे कांट्रेक्ट करते हैं।  दुनिया की सारी कंपनियों को छोड़कर वारेन वफे अलीबाला जैक मा ने इंडिया की आपकी कंपनी में इनवेस्ट किया। इनमें विजय शर्मा का चार्म था या कुछ और ?
विजय- यह सब भगवान के हाथ में है। वह आपके अंदर 
चार्म ले आएगा। कलर, आर्ट ले आएगा। आपकी सफलता कहानी ऊपर वाले के हाथ में है। भगवान ऐसे ही सब कुछ बनाए रखना जब तक आपकी मर्जी हो, आपकी कुछ और मर्जी हो तो मुझे पहले बता देना। वो सब कुछ ऊपर से आ रहा है। जिस दिन तक अपनी टिकट लिखी हुई है,वहां तक टिकट चलेगी।

 

 श्रोताओं के सवाल -

हेमंत कुमार: आप कारोबार में आने वाली तकलीफों का सामना कैसे करते हैं? 
विजय- तकलीफें बिलकुल आती हैं। फेआप एक्जिट रूट मत खोजिए। सामना कीजिए। हल जरूर निकलेगा 

 

विश्वमोहन उपाध्याय: कारोबार में हम अमेरिका की बराबरी कब कर सकेंगे? अभी तो उसकी दादागिरी है। 
विजय- हम बराबरी कर रहे हैं। 6 अरब डॉलर का हमने भी अमेरिका पर सेंक्शन लगा रखा है।  

 

अनिल धूपर: कारोबार में आपका प्रतिद्वंद्वी कौन है? 
विजय- हमारी प्रतिस्पर्धा खुद से है। हम क्रिएटर हैं। हम कुछ और नया क्रिएट करके जाएंगे।

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