Friday, 23rd May 2025

कालाष्टमी / इस दिन कालभैरव की पूजा करने से होता है भय का नाश

Thu, Nov 29, 2018 1:30 AM

रिलिजन डेस्क. शिव जी का रूप माने जाने वाले काल भैरव देव की जयंती इस साल 29 नवंबर, गुरुवार को मनाई जाएगी। हांलाकि अष्टमी 2 दिन होने के कारण इसे 30 नवंबर को भी मनाया जाएगा। काल भैरव अष्टमी को कालाष्टमी भी कहा जाता हैं। कालाष्टमी के दिन शिव शंकर के इस रूप भैरव का जन्‍म हुआ था। भैरव का अर्थ है भय को हरने वाला, इसीलिए ऐसा माना जाता है कि कालाष्टमी के दिन जो भी व्यक्ति कालभैरव की पूजा करने से भय का नाश होता है। कालाष्टमी के दिन भगवान शिव, माता पार्वती और काल भैरव की पूजा करनी चाहिए। विद्वानों का मानना है कि ये पूजा रात में की जाती है।

इसका महत्व और पूजन विधि

  1. नारद पुराण में बताया है महत्व

     

    नारद पुराण में बताया गया है कि कालभैरव की पूजा करने से मनुष्‍य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। मनुष्‍य किसी रोग से लम्बे समय से पीड़‍ि‍त है तो वह रोग, तकलीफ और दुख भी दूर होती हैं।

     

  2. काल भैरव की पूजा विधि

     

    इस दिन भगवान शिव के स्‍वरूप काल भैरव की पूजा करनी चाहिए।

     

    • कालाष्टमी के दिन सुबह ब्रह्ममुहूर्त में उठ कर नित्य-क्रिया आदि कर स्वच्छ हो जाएं।
    • संभव हो तो गंगा जल से शुद्धि करें। 
    • व्रत का संकल्‍प लें।
    • पितरों को याद करें और उनका श्राद्ध करें।
    • ह्रीं उन्मत्त भैरवाय नमः का जाप करें।
    • इसके उपरान्त काल भैरव की आराधना करें।
    • अर्धरात्रि में धूप, काले तिल, दीपक, उड़द और सरसों के तेल से काल भैरव की पूजा करें। 
    • व्रत के सम्पूर्ण होने के बाद काले कुत्‍ते को मीठी रोटियां खिलाएं।

     

  3. काल भैरव की पौराणिक कथा

     

    एक बार भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश यानि त्रिदेवों के बीच इस बात को लेकर विवाद हो गया है कि उनमें से कौन सर्वश्रेष्ठ है। विवाद को सुलझाने के लिये समस्त देवी-देवताओं की सभा बुलाई गई।

     

    • सभा ने काफी मंथन करने के पश्चात जो निष्कर्ष दिया उससे भगवान शिव और विष्णु तो सहमत हो गये लेकिन ब्रह्मा जी संतुष्ट नहीं हुए। यहां तक कि भगवान शिव को अपमानित करने का भी प्रयास किया जिससे भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गये।
    • भगवान शंकर के इस भयंकर रूप से ही काल भैरव की उत्पत्ति हुई। सभा में उपस्थित समस्त देवी देवता शिव के इस रूप को देखकर थर्राने लगे।
    • कालभैरव जो कि काले कुत्ते पर सवार होकर हाथों में दंड लिये अवतरित हुए थे ने ब्रह्मा जी पर प्रहार कर उनके एक सिर को अलग कर दिया। ब्रह्मा जी के पास अब केवल चार शीश ही बचे उन्होंने क्षमा मांगकर काल भैरव के कोप से स्वयं को बचाया। ब्र
    • ह्मा जी के माफी मांगने पर भगवान शिव पुन: अपने रूप में आ गये लेकिन काल भैरव पर ब्रह्म हत्या का दोष चढ़ चुका था जिससे मुक्ति के लिये वे कई वर्षों तक यत्र तत्र भटकते हुए वाराणसी में पंहुचे जहां उन्हें इस पाप से मुक्ति मिली।
    • भगवान काल भैरव को महाकालेश्वर, डंडाधिपति भी कहा जाता है। वाराणसी में दंड से मुक्ति मिलने के कारण इन्हें दंडपानी भी कहा जाता है।

     

  4. 2 दिन क्यों मनाई जाएगी कालाष्टमी

     

    गुरुवार को शाम 6 बजकर 44 मिनट तक सप्तमी तिथि रहेगी और इसके बाद अष्टमी तिथि लगजाएगी जो शुक्रवार को पूरेदिन रहेगी। इस कारण कालाष्टमी 29 और 30 दोनों ही दिन मनाई जाएगी।

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