डिंडोरी. गोरखपुर गांव में सोमवार का बाजार भरा हुआ था और डिंडोरी-अमरकंटक को जोड़ने वाली इस सड़क पर भारी भीड़ थी। गरीब आदिवासी और मध्यमवर्गीय थोड़े शहरी खरीददारी में लगे थे। इसी बाजार के बीच सरपंच के मकान के पास की छत से भाजपा उम्मीदवार जयसिंह मरावी का जोरदार भाषण चल रहा था। ज्यादातर जनता कुछ भी नहीं सुन रही थी।
मंच के ठीक नीचे सड़क पर एक ठेले पर पकोड़े तले जा रहे थे और लोग मजे लेकर खा रहे थे। पकोड़े वाले से जब पूछा कि मरावी का भाषण सुना क्या? तो बोला-‘हां’। जब पूछा: क्या कहा? तो बोला बाद में बताएंगे। मरावी से जब बात करने की कोशिश की तो बोले – सभा के बाद। सभा के बाद बोले : रैली के बाद। और रैली के बाद बोले- अभी बात नहीं हो पाएगी। मरावी पिछली बार भी कांग्रेस उम्मीदवार ओमकार सिंह मरकाम से लगभग छह हजार मतों से हारे थे। बताते हैं कि इस बार भी स्थिति हारने जैसी ही है। ओमकार सिंह मरकाम पहले भी दो बार जीत चुके हैं। हो सकता है कि विधानसभा जीतने के बाद लोकसभा का चुनाव भी लड़ लें। पिछले लोकसभा चुनाव में फग्गन सिंह कुलस्ते को जोरदार टक्कर दी थी।
गोरखपुर से निकलकर डिंडोरी चले तो रास्ते के एक गांव गीधा में मरकाम अपने कार्यकर्ताओं से बातचीत करते मिल गए और बिना किसी मान-मनौवल के बातचीत के लिए तैयार भी हो गए। मरकाम कहते हैं कि भाजपा विघटन की राजनीति कर रही है। लोग परेशान हो गए हैं। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने जा रही है, देख लेना। डिंडोरी का महत्व इसी बात से लगाया जा सकता है कि सात विधानसभा क्षेत्रों को केंद्रबिंदु बनाकर अमित शाह ने यहां पिछले दिनों चुनावी सभा की थी।
शिवराज भी दो बार डिंडोरी आ चुके हैं। मरावी की जब सभा चल रही थी, तभी गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के लोग रैली लेकर गुजरने लगे। गोंडवाना पार्टी इस इलाके की दोनों सीटों (डिंडोरी और शहपुरा) के साथ ही अनूपपुर जिले में भी बड़ा फैक्टर है। पिछली बार इस पार्टी को डिंडोरी में अठारह हजार से ज्यादा वोट मिले थे। डिंडोरी और शहपुरा दोनों विधानसभा क्षेत्रों की आबादी आठ लाख के करीब है। डिंडोरी के शहरी क्षेत्रों में भाजपा और ग्रामीण में कांग्रेस का जोर है।
डिंडोरी सीट की दो और खासियतें हैं। पहली तो यह कि मरकाम पर आरोप है कि वे पार्टी को साथ लेकर नहीं चलते। पहले खुद भी जिलाध्यक्ष रह चुके हैं। मरकाम आरोप को नकारते हैं और यह दावा भी करते हैं कि वे फिर से जीतेंगे। क्षेत्र में इस तरह की चर्चाएं भी हैं कि शहपुरा में भाजपा के उम्मीदवार और शिवराज मंत्रिमंडल के सदस्य ओमप्रकाश धुर्वे के साथ उनकी कोई ‘अंडरस्टैंडिंग’ है। वह यह कि धुर्वे ने भाजपा आलाकमान को डिंडोरी के लिए मरावी को ही भाजपा की ओर से फिर से लड़वाने की सिफारिश की, जिससे कि मरकाम जीत जाएं। दूसरी तरफ मरकाम ने राहुल गांधी से सिफारिश करके धुर्वे के खिलाफ लड़ने के लिए एक नए उम्मीदवार भूपेंद्र सिंह मरावी को टिकट दिलवा दिया। मरावी युवा हैं और पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं। अंटरस्टैंडिंग यह है कि इस तरह जिले की दोनों सीटों पर इन दोनों (धुर्वे और मरकाम) का ही कब्जा बना रहे। यानी एक सीट पर कमल और दूसरी पर पंजा।पर धुर्वे के लिए शहपुरा में स्थिति इतनी आसान भी नहीं है।
भाजपा में कोई बागी खुले तौर पर तो नहीं है पर 2003 से 2008 तक विधायक रहे चैन सिंह भवैदी और पार्टी के कार्यकर्ता अंदर ही अंदर विरोध कर रहे हैं। धुर्वे को बाहरी उम्मीदवार माना जाता है। कांग्रेस के उम्मीदवार के प्रति सहानुभूति की हवा भी है। धुर्वे पूर्व में डिंडोरी से चुनाव हार चुके थे। इसीलिए बाद में उन्हें शहपुरा शिफ्ट कर दिया गया।
अगर धुर्वे शहपुरा में हार गए तो डिंडोरी जिले की दोनों सीटें कांग्रेस के खाते में चली जाएंगी। कांग्रेस को जीतने के लिए कुछ करना ही नहीं है। उसका काम तो सभी जगह भाजपा के टिकट न मिलने से नाराज दावेदार और बागी ही कर दे रहे हैं।
और अंत में यह कि नर्मदा के किनारे बसे इस शहर में सड़क के एक तरफ ही नदी का पानी पीने के लिए मिलता है, दूसरी तरफ के लोगों को नहीं। और यह भी कि जिले की सारी गंदगी सात-आठ नालों से बहती हुई ‘जीवनदायिनी’ में समा जाती है जो बहती हुई खंभात की खाड़ी तक यात्रा करती है। रास्ते में जबलपुर का कचरा और गंदगी भी उसके साथ जुड़ जाता है।
डिंडोरी का महत्व इसलिए है कि यहां के बाद का मंडला और जबलपुर में ‘एक ही मिजाज’ की राजनीति है, जो अमरकंटक और डिंडोरी क्षेत्र से पूरी तरह अलग है।
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