Thursday, 5th June 2025

मध्यप्रदेश / विंध्य में अजीब अंडरकरंट: बड़ी चुनौती, जो दिखता नहीं उससे कैसे लड़ा जाए

Thu, Nov 22, 2018 7:22 PM

चित्रकूट.  तुलसीदास ने लिखा है कि राम जब इन जंगलों से गुजरे थे तो उन्हें पहचान कर नदी, वन, पहाड़ और दुर्गम घाटियों ने खुद रास्ता दिया और बादलों ने आकाश में छाया की। मानस से शुरू यह सफर विंध्य की टूटी-फूटी सड़कों की धूल फांकते हुए कब राग दरबारी के विद्रूप में बदल गया, पता ही नहीं चला।

 

यह पूरा इलाका राग दरबारी के “देहात का महासागर” है। जगमगाते रीवा शहर और उसके बाहर 1,600 एकड़ में फैले विशाल सोलर पॉवर प्लांट को छोड़ दें तो 15 साल की उपलब्धियों के नाम पर भाजपा सरकार के पास बहुत कम है। सिंगरौली के पॉवर प्लांट और सतना के आस-पास के सीमेंट कारखाने तो कांग्रेसी राज में ही बन चुके थे। 


सफर के दौरान रह-रह कर एंटी इंकम्बेंसी की घंटी बजती रही। लोगों में नाराजगी की वजह थी- रोजगार की कमी, खराब सड़कें, स्थानीय विधायक के काम से असंतोष, एससी एसटी एक्ट और घोषणाओं पर आधा-अधूरा अमल। व्यापारी नोटबंदी और जीएसटी का बात करते हैं।  पर क्या नाराजगी वोट में बदलेगी? “लोग-बाग अंडरकरंट की बात करते हैं,”

 

भूतपूर्व भाजपा विधायक प्रभाकर सिंह कहते हैं। रामपुर बघेलान में अपने पुरखों की 250 साल पुरानी गढ़ी में बैठे सिंह चुनावी माहौल समझाने की कोशिश कर रहे हैं: “अब अंडरकरंट देख तो सकते नहीं, फील ही कर सकते हैं। अदृश्य से कैसे लड़ें? मरमरिंग सुन रहे हैं, जो डेंजरस हो सकती है।” सोशलिस्ट पार्टी से अपना राजनीतिक कॅरियर शुरू कर इमरजेंसी में जेल जाने वाले सिंह की गिनती इलाके के संजीदा और विचारशील नेताओं में होती है।


मिडिल क्लास भले परिवर्तन फुसफुसा रहा हो, पर गरीबी रेखा से नीचे वाला तबका भाजपा राज से खुश है। “डेढ़ पसली क मनई” शिवराज मामा को सब जानते हैं। भाजपा को कई विधान सभा क्षेत्रों में तिकोने मुकाबलों का भी फायदा है। बसपा को 30 में से केवल 2 सीट मिली थीं पर उसे 16 परसेंट वोट मिले थे। कांग्रेस का ठीक आधा। इस इलाके में आकर मालूम पड़ता है कि बसपा, सपा और गोंडवाना से हाथ नहीं मिलाकर कांग्रेस ने कितनी बड़ी गलती की। नागौद, सतना, चित्रकूट, अमरपाटन जैसी कुछ सीटों से बागी जरूर भाजपा को नुकसान पहुंचा रहे हैं।

 

जातियां यहां इतनी ज्यादा हैं कि उनका गुणा-भाग करने को कहा जाए तो शायद समाजशास्त्री एमएन श्रीनिवास का भी माथा चकरा जाए। सिंघाड़ा उगाने वाले सिंघरहा को आपने अपने पाले में कर लिया तो हो सकता है कि मिट्टी खोदने वाले मुड़हा नाराज हो जाएं। सामंती इलाका होने की वजह से अभी भी आप पान की दुकानों पर राजपूतों के बारे में लोकोक्तियां सुन सकते हैं- “पास रहे तो धन हरे, दूर रहे तो प्राण, ठाकुर-ठाकुर हे भगवान।” उम्मीदवारों की पहचान उनकी पार्टी से कम, जाति से ज्यादा होती है।

 

सामंती कायदों की लड़ाई में आम शिष्टाचार का पालन होता है। नागौद सीट के लिए भाजपा से बगावत करने वाली रश्मि सिंह सामने पड़ने पर भाजपा उम्मीदवार नागेन्द्र सिंह को प्रणाम करती हैं तो वे भी मुस्कुराकर शालीनता से उन्हें आशीर्वाद देते हैं। रैगांव के भाजपा उम्मीदवार जुगुलकिशोर बागरी के पैर छूकर कांग्रेस की कल्पना वर्मा आशीर्वाद लेती हैं।

 

ज्यादातर उम्मीदवार किसी न किसी राजनीतिक खानदान से हैं। श्रीनिवास तिवारी के परिवार की तरह कई तो आपस में रिश्तेदार हैं! याद रखें, इन्ही जंगलों में तैयार वानरसेना की मदद से राम ने रावण को परास्त किया था। यह तो जनता को तय करना है कि रावण कौन है।

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