अमरकंटक . यहां पहुंचकर जब तक शिव के कंठ से निकलने वाली जीवनदायिनी नर्मदा के जल का उसके उद्गम स्थल पर स्पर्श नहीं कर लिया जाए, पता नहीं चलता कि जिस नदी के जल के पश्चिमी निमाड़ के बड़वानी में दर्शन किए थे, वह भी अलग है और जिस चुनावी राजनीति से निमाड़ क्षेत्र में साक्षात्कार हुआ था, वह भी भिन्न है।
मरकंटक में नर्मदा जितनी साफ और पारदर्शी नजर आती है, मध्यप्रदेश की सीमाएं छोड़कर गुजरात में प्रवेश करते-करते उसके जल की पवित्रता तो कायम रहती है पर उसका रंग बदलता जाता है। अमरकंटक पहुंचकर ही यह भी पता चलता है कि नर्मदा तो दुबली होती जा रही है पर उसकी घाटी के किनारे के जिलों में राजनीति का वजन लगातार बढ़ता जा रहा है। नर्मदा राजनीति नहीं करती और जो राजनीति करते हैं उन्हें नर्मदा की चिंता नहीं है। चुनाव जीतने के बाद सत्ता ही उनकी जीवनदायिनी बन जाती है।
अमरकंटक तीर्थक्षेत्र अनूपपुर जिले की तीन विधानसभा क्षेत्रों (अनूपपुर, कोतमा और पुष्पराजगढ़) के पुष्पराजगढ़ में आता है। नर्मदा किसी भी पार्टी और उम्मीदवार के एजेंडे में नहीं है। एजेंडे में केवल उसके जल के ज्यादा से ज्यादा दोहन को लेकर दिए जाने वाले आश्वासनों के कभी न पूरे होने वाले बांध ही हैं।
न तो किसी पार्टी को इस बात की कोई परेशानी है कि क्षेत्र में कम वर्षा के कारण नर्मदा के जलस्तर में लगातार कमी हो रही है (अनूपपुर जिले में लगभग 28 प्रतिशत कम बारिश हुई है), साल के वृक्षों की कटाई के कारण अमरकंटक के पर्यावरण पर फर्क पड़ रहा है, नर्मदा में उसके तटों से लगे शहरों के नालों का गंदा पानी लगातार छोड़ा जा रहा है या पौधरोपण के नाम पर जो करोड़ों पौधे लगाए गए थे, वे नर्मदा के उद्गम स्थल पर ही गिनती के बचे हैं। नर्मदा का जलग्रहण क्षेत्र लगातार कम होता जा रहा है पर उसके नाम पर राजनीति करने वालों के ‘कैचमैंट एरिया’ में लगातार विस्तार हो रहा है।
राजधानी भोपाल के नजदीक और राजनीतिक रूप से इन दिनों चर्चित नर्मदा नदी के क्षेत्र होशंगाबाद तक पहुंचने से पहले अमरकंटक से नरसिंहपुर तक की चुनावी राजनीति को समझना जरूरी है। अमरकंटक से नरसिंहपुर तक नर्मदा नदी पांच विधानसभा क्षेत्रों (अनूपपुर, डिंडौरी, मंडला, जबलपुर और नरसिंहपुर) से होकर गुजरती है।
नौ सीटों को नर्मदा सीधे प्रभावित करती है। पांच जिलों की कुल बीस सीटों पर नर्मदा का असर है। वर्तमान में भाजपा के पास 14 और कांग्रेस के कब्जे में छ: सीटें हैं। चुनावी माहौल को देखते हुए लगता है कि इस बार काफी उलटफेर हो सकते हैं। कई विधानसभा क्षेत्रों में लड़ाई के मुद्दों के साथ-साथ उम्मीदवारों के चेहरे तो बदल गए हैं पर अमरकंटक से बड़वानी के बीच एक चीज जो कॉमन नजर आती है वह है बागियों की मौजूदगी और उनका दोनों ही दलों के उम्मीदवारों की जीतने की संभावनाओंं पर आतंक। एक अन्य उल्लेखनीय तथ्य तीसरी शक्ति के रूप में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की कुछ क्षेत्रों में सशक्त मौजूदगी है।
मंडला जिले की एक सीट पर तो गोंगपा भी दो फाड़ है। पूर्वी और पश्चिमी निमाड़ में जयस और सपाक्स को लेकर पूर्व में काफी संभावनाएं व्यक्त की जा रही थीं पर अब वे केवल मनावर और खंडवा तक सिमटकर रह गई हैं। मनावर में तो जयस के नेता डॉ. हीरालाल अलावा ने कांग्रेस का पंजा थाम लिया है। सपाक्स की मौजूदगी केवल खंडवा में ही उल्लेखनीय तौर पर है। पर नर्मदा के इस क्षेत्र में गोंगपा काफी प्रतिबद्ध तरीके से मैदान में है और उसकी शुरुआत पुष्पराजगढ़ विधानसभा क्षेत्र से ही हो जाती है। नर्मदा की इस पट्टी में जहां कई स्थानों पर दोनों ही दलों के वर्तमान विधायकों के टिकट काट दिए गए हैं वहीं टिकट के दूसरे दावेदारों की तरफ से भी भितरघात की आशंकाएं बढ़ गई हैं।
यह स्थिति अनूपपुर और डिंडौरी जिलों के साथ ही मंडला, जबलपुर और नरसिंहपुर जिलों में भी पाई जा सकती है। नरसिंहपुर विधानसभा क्षेत्र में तो तेंदूखेड़ा से भाजपा के वर्तमान विधायक संजय शर्मा कांग्रेस में शामिल होकर काफी सुर्खियां बटोर चुके हैं। जहां एक ओर पांचों जिलों की बीस सीटों में भाजपा अपनी 14 सीटों को बचाने की जुगत में है, कांग्रेस अपनी छ: सीटों का आंकड़ा दोगुना हो जाने की आस लगाए हुए है।
कांग्रेस को उम्मीद अपने द्वारा किए गए कामों पर कम और एंटी-इंकम्बेंसी तथा भाजपा के बागियों से मिलने वाले फायदे पर ज्यादा है। राजनीति में ही इतनी गंदगी जमा हो गई है कि नर्मदा के बढ़ते प्रदूषण की तरफ किसी को ध्यान देने की जरूरत भी नहीं दिखाई पड़ती। नर्मदा पट्टी में एक भी बंदा यह कहते हुए नहीं मिला कि शिव तेरी नर्मदा मैली हो रही है, पार्टियों के आश्वासनों को ढोते-ढोते।
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