शिव दुबे। रायपुर. छत्तीसगढ़ की 90 सीटों में फंसी सीटों पर नजर डालें तो पहला नंबर महासमुंद का आता है। चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में भी यहां की तस्वीर साफ नहीं हो पा रही है। यहां तक कि किसी भी पार्टी में महासमुंद को लेकर एक राय नहीं बन पा रही है। महासमुंद ऐसी सीट है, जहां पर एक, दो या तीन नहीं, पांच-पांच प्रत्याशी मजबूती के साथ ताल ठाेंक रहे हैं।
निर्दलीय विधायक की जीत के लहजे से देखा जाए तो यह राज्य की इकलौती सीट है। निर्दलीय विधायक डॉ. विमल चोपड़ा शहरी वोटों के ध्रुवीकरण के साथ फिर से सभी के लिए बड़ी मुसीबत बने हुए हैं। इस बार निर्दलीय मनोज कांत साहू और जोगी कांग्रेस के त्रिभुवन महिलांग उनके शहरी वोटरों में सेंध लगाने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं।
इन सबके साथ भाजपा के पूनम चंद्राकर कुर्मी वोटोें के ध्रुवीकरण की कोशिश में हैं। भाजपा के परंपरागत वोटों के साथ वे दूसरी जीत तलाश रहे हैं। वैसे यह सीट कांग्रेस के लिए भी अबूझ नहीं है। कांग्रेस के अग्नि चंद्राकर यहां से जीत चुके हैं। कांग्रेस ने अग्नि के बदले विनोद चंद्राकर को उतारा है। विनोद भी कुर्मी वोटों को बड़ा सहारा मान रहे हैं। कांग्रेस के परंपरागत वोट भी इनके साथ हैं।
इस तरह मनोज कांत और त्रिभुवन शहरी राजनीति में पहले से काफी पैठ रखते हैं, इसलिए उनकी उपस्थिति बराबर दिख रही है। इसी ने महासमुंद का मुकाबला रोचक बना दिया है। कोई बड़ा स्थानीय मुद्दा हावी नहीं हो पाया, लेकिन आसपास के ग्रामीण, किसान अजीब सी खामोशी ओढ़े हुए हैं। किसानों की खामोशी ने ही कई प्रत्याशियों को चिंता में डाल रखा है। सिवाय कांग्रेस के। वह इस खामोशी को अपने लिए फेवरेबल मान रही है।
2003 में तीसरे नंबर पर थे मनोज कांत: 2003 में भाजपा के पूनम चंद्राकर जीते थे। तब कांग्रेस अग्नि चंद्राकर दूसरे और एनसीपी उम्मीदवार मनोज कांत साहू तीसरे नंबर पर थे। 2008 में अग्नि जीते तो भाजपा के मोतीलाल साहू दूसरे नंबर पर थे। 2013 में चोपड़ा जीते। अग्नि दूसरे और पूनम तीसरे नंबर पर पहुंच गए। जोगी कांग्रेस के प्रत्याशी महिलांग भाजपा छोड़कर आए हैं। पूर्व नगर पालिका उपाध्यक्ष महिलांग की पत्नी राशि महिलांग नगर पालिका की अध्यक्ष रहीं हैं।
बिल्हा: अकेली सीट जहां भाजपा, कांग्रेस व जोगी कांग्रेस के साथ आप भी ठोंक रही ताल
विपुल गुप्ता। बिलासपुर. कांग्रेस के सियाराम कौशिक और भाजपा के धरमलाल कौशिक बारी-बारी से जीत रहे हैं। इस फॉर्मूले से देखें तो इस बार भाजपा की बारी थी लेकिन इसमें ही ट्विस्ट आ गया। सियाराम अब कांग्रेस से नहीं, जोगी कांग्रेस से लड़ रहे हैं। कांग्रेस से पूर्व जिलाध्यक्ष राजेंद्र शुक्ला मैदान में हैं। चौथा कोण है आम आदमी पार्टी से जसबीर सिंह, जो करीब आठ महीनों से इलाके में मेहनत कर रहे हैं।
अब समीकरण समझिए। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष धरमलाल कौशिक पिछली हार का बदला लेने के लिए पूरे पांच साल तैयारी करते रहे। सरकार जो थी भाजपा की। हर मंच पर रहे। सभी शिलान्यास, भूमिपूजन कर खूब श्रेय लिया। प्रचार भी यही है कि उन्होंने काम कराया है क्षेत्र में। सो कुछ बढ़त तो है उनके खाते में। बारी के आधार पर देखें तो नंबर भी उनका है।
लेकिन कांग्रेस विधायक सियाराम कौशिक की तरह वे आम लोगों के साथी नहीं रहे। अपने क्षेत्र में भी भाजपा के मुखिया ही रहे हैं वे। सियाराम जमीन से जुड़े नेता हैं। कहते हैं जमीन बेचकर ही चुनाव लड़ते हैं। जोगी कांग्रेस में जाने से कांग्रेस वोट छूटेगा, लेकिन उनका खुद का जनाधार मजबूत है।
कांग्रेस से राजेंद्र शुक्ला ने कुछ साल तैयारी की है टिकट के लिए। संगठन का पद तक छोड़ा। भाजपा सरकार के खिलाफ एंटी इन्कम्बेंसी का उन्हें फायदा मिलेगा। वर्तमान सियाराम का स्वाभाविक विरोध उन्हीं के साथ जोगी कांग्रेस चला गया। लेकिन यह भी तय है कि सियाराम इन्हीं के वोट काटेंगे। चौथे कोण आम आदमी पार्टी के जसबीर हैं। मेहनत उन्होंने भी खूब की है। अगर नहीं जीत तो किसी की जीत-हार का बड़ा कारण जरूर बन जाएंगे।
मुद्दे तो कई हैं, लेकिन मुद्दों पर चुनाव कहां...: एससी बहुल सीट है। बोडसरा कांड यहीं हुआ था। वोट साधने के लिए (ऐसा कहा जाता है) उससे जुड़े केस भाजपा सरकार ने वापस ले लिए। लेकिन सतनामी गुरु बालदास कांग्रेस में शामिल हो गए। यानी ये फायदा कांग्रेस को। दूसरी तरफ साहू और लोधी वोट काफी हैं। अंबालिका साहू और जागेश्वरी वर्मा के नाम कांग्रेस से टिकट की दौड़ में थे। ऐसे में कांग्रेस को विरोध झेलना पड़ सकता है।
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