Friday, 23rd May 2025

आंवला नवमी / ब्रम्हाजी के आंसुओं से हुई थी आंवले की उत्पत्ति, इस दिन संतान की मंगलकामना के लिए की जाती है पूजी

Fri, Nov 16, 2018 7:25 PM

रिलिजन डेस्क. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला (अक्षय) नवमी कहते हैं। इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है। इस बार ये पर्व 17 नवंबर, शनिवार को है। यह प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का भारतीय संस्कृति का पर्व है। मान्यता है कि इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठने और भोजन करने से रोगों का नाश होता है। मान्यता के अनुसार इस दिन महिलाएं संतान प्राप्ति और उसकी मंगलकामना के लिए आंवले के पेड़ की पूजा करती हैं।

जानें आंवला नवमी की खास बातें

  1. पूजन विधि

     

    महिलाएं आंवला नवमी के दिन स्नान आदि करके किसी आंवला वृक्ष के समीप जाएं। उसके आसपास साफ-सफाई करके आंवला वृक्ष की जड़ में शुद्ध जल अर्पित करें। फिर उसकी जड़ में कच्चा दूध डालें।

     

    • पूजन सामग्रियों से वृक्ष की पूजा करें और उसके तने पर कच्चा सूत या मौली 8 परिक्रमा करते हुए लपेटें। कुछ जगह 108 परिक्रमा भी की जाती है।
    • इसके बाद परिवार और संतान के सुख-समृद्धि की कामना करके वृक्ष के नीचे ही बैठकर परिवार सहित भोजन किया जाता है।

     

  2. आंवला नवमी की कथा

     

    काशी नगर में एक निःसंतान धर्मात्मा वैश्य रहता था। एक दिन वैश्य की पत्नी से एक पड़ोसन बोली यदि तुम किसी पराए लड़के की बलि भैरव के नाम से चढ़ा दो तो तुम्हें पुत्र प्राप्त होगा। यह बात जब वैश्य को पता चली तो उसने अस्वीकार कर दिया। परंतु उसकी पत्नी मौके की तलाश में लगी रही।

     

    • एक दिन एक कन्या को उसने कुएं में गिराकर भैरो देवता के नाम पर बलि दे दी, इस हत्या का परिणाम विपरीत हुआ। लाभ की जगह उसके पूरे बदन में कोढ़ हो गया तथा लड़की की प्रेतात्मा उसे सताने लगी। वैश्य के पूछने पर उसकी पत्नी ने सारी बात बता दी। 
    • इस पर वैश्य कहने लगा गौवध, ब्राह्यण वध तथा बाल वध करने वाले के लिए इस संसार में कहीं जगह नहीं है। इसलिए तू गंगा तट पर जाकर भगवान का भजन कर तथा गंगा में स्नान कर तभी तू इस कष्ट से छुटकारा पा सकती है। 
    • वैश्य की पत्नी पश्चाताप करने लगी और रोग मुक्त होने के लिए मां गंगा की शरण में गई। तब गंगा ने उसे कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला के वृक्ष की पूजा कर आंवले का सेवन करने की सलाह दी थी। 
    • जिस पर महिला ने गंगा माता के बताए अनुसार इस तिथि को आंवला वृक्ष का पूजन कर आंवला ग्रहण किया था और वह रोगमुक्त हो गई थी। इस व्रत व पूजन के प्रभाव से कुछ दिनों बाद उसे संतान की प्राप्ति हुई। तभी से हिंदुओं में इस व्रत को करने का प्रचलन बढ़ा। तब से लेकर आज तक यह परंपरा चली आ रही है।

     

  3. कैसे हुई आंवला की उत्पत्ति

     

    मान्यता के अनुसार जब पूरी पृथ्वी जलमग्न थी और इस पर जिंदगी नहीं थी, तब ब्रम्हा जी कमल पुष्प में बैठकर परब्रम्हा की तपस्या कर रहे थे। वह अपनी कठिन तपस्या में लीन थे।

     

    • तपस्या के करते-करते ब्रम्हा जी की आंखों से ईश-प्रेम के अनुराग के आंसू टपकने लगे थे। ब्रम्हा जी के इन्हीं आंसूओं से आंवला का पेड़ उत्पन्न हुआ, जिससे इस चमत्कारी औषधीय फल की प्राप्ति हुई। इस तरह आंवला वृक्ष सृष्टि में आया ।

     

  4. ये है आंवले का औषधीय महत्व 

     

    हमारे धर्म में हर उस वृक्ष को जिसमें बहुत अधिक औषधीय गुण हों, उनकी किसी विशेष तिथि पर पूजे जाने की परंपरा बनाई गई है।

     

    • आंवला नवमी की परंपरा भी इसी का हिस्सा है। चिकित्सा विज्ञान के अनुसार, आंवला प्रकृति का दिया हुआ ऐसा तोहफा है, जिससे कई सारी बीमारियों का नाश हो सकता है। 
    • आंवला में आयरन और विटामिन सी भरपूर होता है। आंवले का जूस रोजाना पीने से पाचन शक्ति दुरुस्त रहती है। त्वचा में चमक आती है, त्वचा के रोगों में लाभ मिलता है। आंवला खाने से बालों की चमक बढ़ती है। 
    • हम आंवले के महत्व को समझें व उसका संरक्षण करें। इसी भावना के साथ हमारे बुजूर्गों ने आंवला नवमी का त्योहार मनाने की परंपरा बनाई।

Comments 0

Comment Now


Videos Gallery

Poll of the day

जातीय आरक्षण को समाप्त करके केवल 'असमर्थता' को आरक्षण का आधार बनाना चाहिए ?

83 %
14 %
3 %

Photo Gallery